एक दिन शेखजी नौकरी की तलाश में दिल्ली आये। वे घुमते-घामते कुतुबमीनार पहुंचे। उन्होंने देखा क़ुतुबमीनारके पास खड़े दो आदमी आपस में बात कर रहे थे। उनमें से एक कह रहा था – “यार कमाल है! पुराने जमाने में लोग काफी लम्बे होते थे तभी तो इतनी ऊंची कुतुबमीनार बना ली। तू गधा है।
दुसरे ने कहा – अबे पहले इसे लिटाकर बना लिया होगा और जब क़ुतुबमीनार बन गयी तो इसे उठाकर खड़ा कर दिया होगा। पहले व्यक्ति को अपने साथी का तर्क पसंद नहीं आया। उसने उसकी बात कर विरोध किया। दूसरा व्यक्ति भी हार मानने वाला नहीं था।
वह भी अपने तर्क पर अड़ गया । जनाब शेखचिल्ली एक ओर खड़े उनकी बात बड़े ध्यान से सुन रहे थे। उन्हें उनकी मूर्खतापूर्ण बातों पर तरस आने लगा तो वह उनके करीब आकर बोले – तुम दोनों ही महामूर्ख हो, जो इतनी सी बात पर लड़ रहे हो। इतना भी नहीं जानते, पहले कुआं खोदकर पक्का बना दिया गया था और जब कुआं बनकर तैयार हो गया तो उसे पलटकर खड़ा कर दिया गया और इस प्रकार कुतुबमीनार तैयार हो गयी।