जब कॉलेज में पहले दिन तुम्हें पहली दफा देखा था,
तो ऐसा लगा था कि जिंदगी थम सी गई हो.
मैं मेरे दोस्तों के साथ क्लास की आखरी बेंच पर, कोने की आखिरी सीट पर बैठा हुआ था. ताकि, मुझे पूरी क्लास का view मिल सके और उस view के center में तुम रहो, जिससे मेरा फोकस सिर्फ तुम पर बना रहे. Mam जोर से चिल्ला कर कुछ पढ़ाने की कोशिश कर रही थी, मगर तुम्हारी धड़कनों से उनकी आवाज मेरे लिए कहीं गुम सी हो गई थी.
क्या वो प्यार था??
मुझे नहीं आता प्यार का इजहार करना, काश तुम आंखों की भाषा समझ लेती. मैं जो कहना चाहता था, वो कह नहीं पाया. दिल में जो बात थी वह जुबान पर आती तो थी, लेकिन लफ्जों में तब्दील होने से पहले ही पता नही कहां खो जाती थी.
क्या वो प्यार था??
आंखों से आंखें मिल गई,
बातों से बातें मिल गई.
बातों के लिए मुलाकातें बढ़ गई,
और वो मुलाकातें धीरे-धीरे दोस्ती में तब्दील हो गई…
तब तुमने मुझसे एक बात कही थी “शुभम !!! लड़की का हाथ हमेशा धीरे से पकड़ते हैं” और मैं पगला मन ही मन में मुस्कुरा कर कह गया कि – “मैं तुम्हारे हाथ को जिंदगी भर पकड़कर रखना चाहता हूं”
क्या वो प्यार था??
उस दिन से पढ़ाई के लिए कॉलेज आना फिजूल सा लगता था, और जिस दिन तुम नहीं आती थी तो पूरा कॉलेज ही बंजर-वीरान सा लगता था. तब से तुम मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गयी. हम साथ-साथ में मुस्कुराते थे, बस फर्क इतना होता था कि तुम खुशी से मुस्कुराती थी और मैं तुम्हें देख कर मुस्कुराता था.
क्या वो प्यार था??
इन आंखों को तेरी आदत सी हो गई थी,
इन होठों को तुम्हारी इबादत सी हो गई थी.
एक लाइन में तुम्हारी तारीफ क्या करूं,
पानी तुम्हें देखे तो प्यासा बन जाए और आग तुम्हें देखे तो उसे खुद से ही जलन हो जाए.
क्या वो प्यार था??
तुम्हारे फोन पर रिचार्ज मैं कराता था,
और तुम घंटों बातें किसी और से करती थी.
तुम प्यार से किसी और का हाथ पकड़ती थी,
और यहाँ गुदगुदी मेरे हाथों में होती थी.
तुम किसी और को गले लगाती थी,
और यहां धड़कने मेरी तेज हो जाती थी.
क्लास में Mam तुम्हें डांटती थी,
और गुस्सा मुझे आता था.
तुम किसी और के कंधे पर सर रख के रोती थी,
लेकिन तकलीफ मेरे दिल को होती थी.
क्या वो प्यार था??
ना जाने वो क्या था…? प्यार था या कुछ और था, लेकिन जो भी तुमसे था, वो किसी और से नहीं था. दोस्तों!! उसने मुझसे कहा था कि – “उसे प्यार की दीवारों से नफरत है” और कुछ महीनों बाद वो किसी और के साथ, अपनी मोहब्बत का महल सजा रही थी. साला! मुझे लगता था कि जिंदगी का एक उसूल है. मतलब प्यार के बदले हमेशा प्यार ही मिलता है, लेकिन जब हमारी बारी आई तो साला जिंदगी ने अपने उसूल ही बदल दिए.
तो आज से हम भी बदलेंगे अंदाज जिंदगी का,
राब्ता सबसे होगा, लेकिन वास्ता किसी से नहीं.
इस तरह में गजल सुनाकर महफिल में खड़ा था,
सभी लोग अपने-अपने चाहने वालों में खो गए थे.
माना एक तरफा ही सही…
मगर हां वो प्यार था।।