आज मैं आपके साथ तीन प्रेरणात्मक incidents/ stories share करूँगा| इन कहानियों को Horain Fayyaz ने भेजा है| Horain जी कोचीन, केरला की रहने वाली हैं और Tourism Industry से जुडी हुई हैं| उन्हें लिखने, पढने के साथ साथ गाने सुनने और घूमने का भी शौक है| वह समाज कार्य से भी जुडी हुई हैं और ”War on Dowry” नामक संस्था चलाती हैं|
- अच्छाई से क्यूँ बाज़ आऊं ?
एक बार हजरत बायेजीद बुस्तामी अपने कुछ दोस्तों के साथ दरिया के किनारे बेठे थे, उनकी नज़र एक बिच्छू पर पड़ी जो पानी में डूब रहा था| हजरत ने उसे डूबने से बचाने के लिए पकड़ा तो उसने डंक मार दिया| कुछ देर बाद वो दोबारा पानी में जा गिरा , इस बार फिर हज़रत उसे बचने के लिए आगे बढे, पर उसने फिर डंक मार दिया| चार बार ऐसा ही हुआ, तब एक दोस्त से रहा न गया तो उसने पूछा हुजुर आपका ये काम हमारी समझ के बाहर है, ये डंक मार रहा है और आप इसे बचने से बाज़ नहीं आते| उन्होंने बहुत तकलीफ में मुस्कुराते हुए कहा कि जब ये बुराई से बाज़ नहीं आता तो मैं अच्छाई से क्यूँ बाज़ आऊं!
- मजदूरों जैसी ज़िन्दगी
हजरत सिद्दीक अकबर रज़ी० खलीफा हो गए थे. उनके वेतन पर विचार किया जा रहा था| उन्होंने कहा कि मदीने में एक मजदूर की रोजाना की कमाई कितनी है… उतनी ही रक़म मेरे लिए भी तय कर दी जाये| यह सुन, साथियों में से कोई बोला- सिद्दीक इतनी कम रक़म में आपका गुज़ारा कैसे होगा? हजरत सिद्दीक ने जवाब दिया- मेरा गुज़ारा उसी तरह होगा जिस तरह एक मजदूर का होता है| अगर न हुआ तो मैं मजदूरों की आमदनी बढ़ा दूंगा ताकि मेरा वेतन भी बढ़ जाये| जैसे-जैसे मजदूरों की मजदूरी बढ़ेगी मेरी ज़िन्दगी का स्तर भी बढ़ता जायेगा|
- पडोसी
इमाम अबू हनीफ के पड़ोस में एक मोची रहता था| वह दिन भर तो अपनी झोंपड़ी के दरवाज़े पर सुकून से बैठकर जूते गांठता रहता मगर शाम को शराब पीकर उधम मचाता और जोर-जोर से गाने गाता| इमाम अपने मकान के किसी कोने में रात भर हर चीज़ से बेपरवा इबादत में मशगूल रहते| पडोसी का शोर उनके कानो तक पहुँचता मगर उन्हें कभी गुस्सा नहीं आता| एक रात उन्हें उस मोची का शोर सुनाई नहीं दिया | इमाम बेचैन हो गए और बेचैनी से सुबह का इंतज़ार करने लगे| सुबह होते ही उन्होंने आस-पड़ोस में मोची के बारे में पूछा| मालूम हुआ कि सिपाही उसे पकड़ कर ले गए हैं क्यूंकि वह रात में शोर मचा मचा कर दूसरों कि नींदें हराम करता था|
उस समय खलीफा मंसूर की हुकूमत थी. बार-बार आमंत्रित करने पर भी इमाम ने कभी उसकी देहलीज़ पर कदम नहीं रखा था| मगर उस रोज़ वह पडोसी को छुड़ाने के लिए पहली बार खलीफा के दरबार में पहुंचे| खलीफा को उनका मकसद मालूम हुआ तो वह कुछ देर रुका फिर कहा – “हजरत ये बहुत ख़ुशी का मौका है कि आप दरबार में तशरीफ़ लाये| आपकी इज्ज़त में हम सिर्फ आपके पडोसी नहीं बल्कि तमाम कैदियों कि रिहाई का हुक्म देते हैं|“ इस वाकये का इमाम के पडोसी पर इतना गहरा असर हुआ कि उसने शराब छोड़ दी और फिर उसने मोहल्ले वालों को कभी परेशान नहीं किया|