“मेरा पहला प्यार” एक प्रेम कहानी

बात बरसों पुरानी है,
पर मुझे तुम्हें सुनानी है,
यह मेरी कहानी है और शायद तुम्हारी भी….!

पहली बार देखा था उसे, उसी की बालकनी में
गीले बाल, सफेद कुर्ता, सलवार लाल
गुलाब को पानी देता हुआ, मेरा गुलाब थी वो.
यूं तो हमारे बीच दो घरों का फासला था,
पर लगता था हर पल मेरे सामने थी वो.
उसके घर का दरवाजा अक्सर खटखटाया मैंने,
कभी चीनी, चायपत्ती, नमक मांगने के लिए.
फिर सोचा मैंने अगली बार दिल की बात कह दूंगा,
हिम्मत जुटाई उठक-बैठक भी लगाई,
भला हो उन दोस्तों का जिन्होंने रिहर्सल करवाई.

रविवार का था वो दिन, पूरी तैयारी के साथ पहुंचा उसके घर के सामने “खट खट खट” उसके दरवाजे के खुलने के इंतजार में थोड़ा शरमाता मुस्कुराता मेरा दिल सोच रहा था कि आज मिलेगी मंजिल..!!

“खट खट खट” मैंने फिर से दरवाजा खटखटाया, फिर से उछलते दिल को समझाया. तभी एक ख्याल मेरे दिल में आया, कभी भी एक दस्तक से ज्यादा दूरी न थी उसके मेरे बीच में. लगता था, कि वो दरवाजे पर मेरी ही दस्तक का इंतजार करती थी.

लेकिन इस बार अंदर न कोई हलचल न कोई आवाज दरवाजे पर ताला नहीं था. मैंने देखा कि मेरे अंदर एक अजीब सा डर आया, मेरे मन ने घबराकर फिर से दरवाजा खटखटाया. इस बार मेरे दिल की घबराहट मेरी उंगलियों तक आ पहुंची. उसके दरवाजे पर लगातार दस्तक मेरे दिल का हाल बयां कर गई. मन में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे, दरवाजा क्यों बंद है, क्या बात है, अंदर सब ठीक है, कहीं कुछ हो तो नहीं गया…!! सवेरे तो ठीक बालकनी में दिखी थी वो. तभी अचानक दरवाजा खुलने की आवाज आई.

वो सामने खड़ी थी मेरे. शुक्र है! खुदा का मेरी सांस में सांस आई. पर आज हर रोज से कुछ अलग था, आज उसके बाल बिखरे क्यों थे?? क्यों आंखें ना खुली न बंद थी उसकी, क्या उसके होठ हमेशा इतने लाल थे और गर्दन पर यह लाल निशान कैसा था.

मुझे ऐसे ताकता देखकर उसने अपना उतरता आंचल संभाला. उसकी नजर चुराती नजरों में अनजाने में सब कुछ कह डाला.

“कुछ चाहिए” जैसे उसके इन लब्जो ने मेरे अरमानों को छीन दिया हो. मेरे सीने में खौफ और सुकून से नफरत का सफर तय करता मेरा दिल समझ नहीं पाया कि रोए, हँसे, मर जाए या मार दे. उसने फिर कहा – “कुछ चाहिए”, लेकिन कुछ कह न पाया मैं.

बस पलट गया, क्योकि कहीं मेरी गीली आंखें मेरे दिल का हाल न कह डालें. वह दिन ऐसे बीता जैसे पूरा साल हो. उसे कोशा, खुद को कोशा और खुदा को भी न छोड़ा. क्या गलती थी मेरी जो यह दिन नसीब हुआ. लगता था जैसे उसके गर्दन के निशान ने मेरे एहसासों को नोच दिया हो.

तभी अचानक मेरे दरवाजे से खटखटाने की आवाज आई. हाँ!!! सही सोचा तुमने, वहीं खड़ी थी मेरे सामने. अब बारी मेरी थी मैंने उससे पूछा – “कुछ चाहिए”.

उसने कहा – “हां!! में तुमसे कहना चाहती हूँ कि मैंने बहुत इंतजार किया तुम्हारा. मुझे हर बार लगता था कि तुम कह दोगे अपने दिल का हाल सारा. 4 महीने तक जब तुमने कुछ ना कहा मुझे लगा मेरा ही भ्रम था. शायद!! तुम यूं ही बालकनी में दिखते थे यूं ही किसी पड़ोसी की तरह घर पर आ जाते थे. मेरी क्या गलती थी जो तुमने इतना इंतजार करवाया”.

उसका यह सवाल मेरे अंदर इतना गूंजा कि मैं पलक तक ना झपका पाया. इस बात के बाद हमारी कुछ गलतफहमियां दूर हुई और आज वह मेरी पत्नी हैं.

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