एक दिन सुल्तान मीर मुर्तजा ने सेनापति शेखजी को नीचा दिखने के लिए एक अजीब प्रश्न पूछा -“क्यों सेनापति जी! दुनिया में सबसे बड़ा राजा कौन है ?” “अंग्रेजों की रानी एलिज़ाबेथ और रानी विक्टोरिया ।” शेखचिल्ली ने जवाब दिया । “क्या मतलब?” सुल्तान ने आश्चर्य से पूछा । “उनके राज्य में कभी सूरज नहीं डूबता ।
उनका राज्य पूरब से पश्चिम तक फैला हुआ है ।”
सुनकर सुल्तान चुप हो गए। एक दिन सुल्तान और शेखचिल्ली शिकार खेलते खेलते जंगल में चले गए । दोपहर के समय एक झील से कुछ दूर पेड़ों की घनी छाँव में वे आराम करने लगे । “घोड़ों को भी पानी दिखा आओ ।” सुल्तान ने शेखचिल्ली से कहा । शेखजी घोड़ों को लेकर चल दिए । घोड़ों को झील पर ले जाकर शेखजी ने पानी दूर से ही दिखाया और वापस ले आये । घोड़े प्यासे ही रह गए । प्यासे घोड़ों की और देखकर सुल्तान ने कहा – “इन्हें पानी नहीं पिलाया ?” “नहीं”
“क्यों?”
“आपका आदेश था कि घोड़ों को पानी दिखाना है सो दिखा लाया हूँ । पिलाने का हुक्म नहीं मिला था ।” “तुम महामूर्ख हो सेनापति शेख्चिल्लीजी बहादुर।” कहकर सुल्तान हंस पड़े और हंसकर बोले – “तुम युद्ध कौशल में जितने आगे हो, तुम्हारा व्यावहारिक ज्ञान उतना ही कम है ।” “मेरी हाजिर जवाबी को मूर्खता समझते हैं आप, यह आपका नज़रिया है । मैं क्या कह सकता हूँ ।
“अब तो पानी पिला लाओ ।” सुल्तान ने मुस्कुराते हुए कहा ।
“पिलाने को अब कहा है ।” “समझ का फेर है वर्ना अक्लमंद आदमी तो एक काम बताने पर दो करते हैं ।”
“एक बताने पर दो ?”
हाँ!
अगर मैंने पानी दिखने के लिए कहा था तो पानी पिला भी लाना चाहिए था ।” “आइन्दा मैं एक काम बताने पर दो काम करूँगा ।” “जाओ, अब पानी पिला लाओ, घोड़े प्यासे होंगे ।” शेखजी पानी पिला लाये । बहुत दिनों बाद एक दिन सुल्तान कि बेगम बीमार हो गयी । सुल्तान के पास थे शेख्चिल्लीजी क्योंकि उनकी सुल्तान से अच्छी मित्रता हो गयी थी । हर वक़्त वे साथ ही रहने लगे थे ।
सुल्तान शेखजी से बोले – “बेगम बीमार है, एक अच्छा सा वैद्य या हकीम बुलवाओ, जल्दी से भेज दो किसी को ।”
“अभी लीजिये ।” शेखजी ने कहा ।
शेखचिल्ली ने तीन नौकर बुलवाए और उन्हें अलग ले जाकर कुछ समझाया । नौकर चले गए । कुछ देर बाद वैद्यजी भी आ गए । उन्होंने नाड़ी देखनी शुरू कि ही थी कि कफ़न लेकर एक नौकर आ गया और तीसरा कब्र खोदने वालों को ले आया । “यह सब क्या है?” सुल्तान क्रोधित होते हुए बोले । “सेनापति बहादुर चिल्ली साहब के आदेश से कफ़न लाया हूँ ।” एक बोला । “चिल्ली बहादुर ने मुझे आदेश दिया था कि कब्र खोदने वालो बुला लाऊं । नाप लेने आये है ये मुर्दे का।”
“कमबख्त! यहाँ शेखचिल्ली का बाप नहीं मारा है।”
“गुस्ताखी माफ़ हो हुजूर!” आगे आकर शेखचिल्ली बोले – “मेरा बाप तो बहुत पहले ही मर गया था, बेचारा स्वर्ग में है । अब रही बात बेगम साहिबा की तो जैसा आपने एक बार कहा था की हर बुद्धिमान आदमी एक काम बताने पर दो करता है, आगे तक की सोचता है । यह सोचकर हमने वैद्यजी भी बुला लिए हैं, कफ़न
भी मंगवा दिया और कब्र खोदने वाले भी आ गए हैं । हमने आगे की सोची है । आपने एक काम बताया था, हमने तीन कर दिए हैं, फिर बात ये है कि खुदा न खस्ता बेगम को कुछ भी हो सकता है ?”
सुल्तान चुप हो गए ।
शेखचिल्ली के जवाब अनूठे थे । सुल्तान समझ गए थे कि शेखचिल्ली को हराना असंभव है । “शेखजी कोई गप्प सुनाओ ।” एक दिन सुल्तान ने चिल्ली से कहा ।
“अजी गप्प क्या सुनाऊं, हमारे पास सच्ची ही इतनी बातें हैं कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेतीं ।
“तो फिर सुनाओ ।” “सुनिए ।”
शेखजी कहानी सुनाने लगे —- “एक बार हम गर्मियों में घूमने के इरादे से मंसूरी चले गए । बर्फ में हम खूब नाचे । खूब नंगे पाँव बर्फ के मैदान में खेलते रहे, परन्तु, तभी एक दिन…” “क्या हुआ ?”सुल्तान ने चौंककर पूछा । “अजी साहब हमें हिमालय ने देख लिया और हमें मरने को दौड़ पड़ा । अब आप सोचिये,
कहाँ हम और कहाँ हिमालय । हम डर गए । भाग लिए नंगे पैर, लेकिन हिमालय हमारे पीछे था और हमसे आ भिड़ा । हमने उसे ऐसा पटक मारा कि वह रो पड़ा, परन्तु डर तो हम भी रहे थे । तभी हमारी निगाह मटर के दरख़्त पर पड़ गयी। हमने हिमालय को मटर के दरख़्त से बाँध दिया । उसे वहीँ बांधकर हम चल दिए पर हिमालय बड़ा हरामी निकला ।
पेड़ को उखाड़कर हमारा पीछा करने लगा । जब हमें गुस्सा आया तो हमने भी हिमालय को मजा चखाना तय कर लिया । हम जहाँ थे वहीँ रुक गए हुजूर, रुक गए । तनकर खड़े हो गए । हिमालय हमारे काफी करीब आ गया । हमने दोनों हाथों से हिमालय को पकड़ा और घुमाकर उछाल दिया । पूरे साथ दिन, पांच घंटे और सैंतालीस मिनट, दस सेकंड में उत्तर कि और जा गिरा, जहाँ आज भी मारा पड़ा है ।” सुल्तान और उनकी बेगम हँसते हँसते लोटपोट हो गए । “गप्प क्यों सुनाएं जब ऐसी सच्ची बातें हैं, हमारे पास । ऐसे वाकिये गुजरे हुए हैं ।”
शेखचिल्ली ने मुस्कुराकर कहा ।
“बड़ी अच्छी गप्प है ।” सुल्तान
खिलखिलाकर हंस पड़े ।
“तो क्या आपने मान लिया यह अच्छी गप्प है ।”
“हाँ ।”
“शुक्रिया, यही तो मैं चाहता था ।”
सुलतान मेरे के चेहरे पर हंसी उभर आई । शेखचिल्ली उनके यहाँ तब तक रहे, जब तक सुल्तान मीर मुर्तजा जीवित रहे । उनके निधन के बाद वह अपने बीवी बच्चों को लेकर अपने पुश्तैनी गाँव चले गए ।