शेखचिल्ली ने कमर कसी और उस सेठ के पास नौकरी मांगने पहुंच गया। उसने सेठ को ये नहीं बताया कि वो उस युवक का भाई है जिसके सेठ ने नाक कान काटे हैं। सेठ ने शेखचिल्ली के सामने भी वही शर्त दोहरा दी। शेखचिल्ली ने सेठ की पूरी शर्त मान ली। अगले दिन से शेखचिल्ली का काम शुरू हो गया। सेठ ने पहले दिन शेखचिल्ली से कहा- जा, जाकर बैलों को पानी दिखा लो।
शेखचिल्ली गया और दोनों बैलों को तालाब के किनारे खड़ा करके लौटा लाया। शाम तक बैलों का प्यास के कारण बुरा हाल हो गया और उनमें से एक बैल मर गया।
सेठ ने शेखचिल्ली से पूछा- ये बैल हांफते-हांफते मर कैसे गया?
क्या तुमने इनको पानी नहीं पिलाया था?
शेखचिल्ली ने कहा- नहीं तो!
सेठ ने पूछा- फिर मैंने तुमको किसलिए भेजा था इन्हें लेकर?
शेखचिल्ली ने कहा- आपने बोला था कि पानी दिखा ला, सो मैं पानी दिखाकर लौटा लाया।
सेठ ने कहा- हाय मेरे कर्म! अबे गधे, जब कोई काम कहा जाए तो एक काम बढ़कर करना चाहिए एकदम बातों पर नहीं जाना चाहिए। समझा!
इसके बाद शेखचिल्ली का खाने का समय हो गया। वो जंगल में गया और अपने लिए एक बड़ा सा केले का पत्ता तोड़ लाया।
सेठ ने पूछा- ये क्या है?
शेखचिल्ली बोला- पत्ता है सेठ जी। खाना दो। पूरा भरकर।
सेठ भौचक्का रह गया। खैर शर्त के मुताबिक उसको खाना देना पड़ा। पत्ता इतना बड़ा था कि उसको भरते-भरते घर का खाना खत्म हो गया। शेखचिल्ली ने पूरा पत्ता भरकर दाल-चावल खाए।
अगले दिन सेठ ने एक नया बैल खरीदा और शेखचिल्ली को आदेश दिया- जा आज इन दोनों को पानी जरूर पिला देना। इसके बाद हल लेकर पूरा खेत जोत आना। वहां से जब शाम को वापस लौटे तो शिकार करके थोड़ा गोश्त ले आना। घर में खाना पकाने की लकडि़यां खत्म हो गई हैं, लौटते समय लकड़ियाँ भी लेते आना।
शेखचिल्ली हल और बैल लेकर खेतों पर चला गया। खेत की जुताई करने के बाद वो थक गया। ईंधन की लकडि़यों के लिए उसने हल को ही काटकर छोटे-छोटे टुकड़े कर दिये। जब गोश्त के लिए कोई शिकर नहीं मिला तो उसने सेठ के कुत्ते को काटकर गोश्त निकाल लिया। शाम को शेखचिल्ली सारा सामान और अपना केले का पत्ता लेकर सेठ के घर पहुंच गया। सेठ की बीवी ने खाना पकाया। जब खाना खाने का समय आया तो शेखचिल्ली ने कहा-
मैं केवल दाल-चावल खाऊंगा, मैं मांस नहीं खाता।
शेखचिल्ली को केले के पत्ते पर दाल-चावल दे दिये गए।
सेठ ने जब पका हुआ गोश्त खाने के बाद बोटी डालने के लिए अपने कुत्ते को आवाज लगाई तो कुत्ता नहीं आया। बार-बार बुलाने पर भी जब वो नहीं आया तो सेठ को हैरानी हुई,
उसने शेखचिल्ली से पूछा- आज शेरू कहां है।
शेखचिल्ली ने कहा- जब मुझे कोई शिकार नहीं मिला तो मैंने शेरू को काटकर गोश्त निकाल लिया।
सेठ को बहुत गुस्सा आया। वो खूब चिल्लाया। पर शेखचिल्ली पर कोई असर नहीं पड़ा।
अगले दिन सेठ ने जब शेखचिल्ली से खेत जोतने के लिए कहा तो शेखचिल्ली बोला- खेत तो जोत दूं, लेकिन हल कहां है?
सेठ ने पूछा- क्यों हल कहा गया? कल ही तो तू लेकर गया था।
शेखचिल्ली बोला- अरे मुझे ईंधन के लिए लकड़ियाँ नहीं मिल रही थीं, इसलिए हल को काटकर ही तो कल मैं ईंधन जुटा कर लाया।
सेठ ने अपना माथा धुन लिया। एक तो इतने बड़े पत्ते पर खाना खाता है। ऊपर से सारे काम बिगाड़ता है। सेठ को लगा कि नया नौकर उसको बहुत महंगा पड़ रहा है। वो सोचने लगा कि आखिर कौन सी घड़ी में उसने शेखचिल्लीको अपने यहां काम पर रखा।
कुछ दिन बाद सेठ की सेठानी बीमार पड़ गई। सेठ ने शेखचिल्ली से कहा जा पड़ोस के गांव जाकर वैध जी को खबर कर दे कि आकर दवा-दारू कर देंगे। शेखचिल्ली ने अपना गमछा उठाया और पड़ोस के गांव में जाकर वैध जी को खबर कर दी। वैध जी अपनी दवाओं का झोला लेकर सेठ के यहां चल दिया। लौटते वक्त शेखचिल्ली ने पूरे इलाके में खबर कर दी कि सेठ की सेठानी मर गई है। सेठ के बाग में जाकर ढेर सारी लकड़ियाँ काट डाली और बैल गाड़ी में भरकर सेठ के घर पहुंच गया। वहां सेठानी की मौत कर खबर सुनकर पूरा गांव सेठ के यहां जमा हो गया था। सेठ सबको समझा रहा था कि सेठानी मरी नहीं है, बस थोड़ा बीमार है। इतने में वहां शेखचिल्ली लकड़ियों से भरी बैलगाड़ी लेकर वहां पहुंच गया।
सेठ ने पूछा- अरे कमबख्त अब ये लकड़ियाँ क्यों उठा लाया?
शेखचिल्ली ने पूछा- क्यों सेठ जी। सेठानी को फूंकने के लिए लकड़ियों की जरूरत नहीं पड़ेगी क्या?
सेठ का चेहरा तमतमा रहा था- अबे फूंकुंगा तो तब जब वो मरी होगी, अभी तो वो जिंदा।
शेखचिल्ली बोला- तो थोड़ी-बहुत देर में मर जाएंगी।
सेठ को बहुत गुस्सा आया- मैं तेरा सिर फोड़ दूंगा। ये सब तू मेरे साथ क्यों कर रहा है?