शेखचिल्ली की ससुराल यात्रा

एक बार शेखचिल्ली की माँ ने शेखचिल्ली से कहा बाज़ार से मिठाई खरीद लाओ और ससुराल जा कर बहु का गौना करवा लाओ।

शेखचिल्ली बाज़ार गया और मिठाई खरीदी और बाज़ार में यह कहता हुआ भागने लगा, “चल गई, चल गई!” बात क्या थी?

एक दिन शेखचिल्ली बाजार में यह कहता हुआ भागने लगा, “चल गई, चल गई!” उन दिनों शहर में शिया-सुन्नियों में तनाव था और झगड़े की आशंका थी।

उसे ‘चल गई, चल गई’ चिल्लाते हुए भागते देखकर लोगों ने समझा कि लड़ाई हो गई है। लोग अपनी-अपनी दूकानें बंद कर भागने लगे। थोड़ी ही देर में बाजार बंद हो गया।

कुछ समझदार लोगों ने शेखचिल्ली के साथ भागते हुए पूछा, “अरे यह तो बताओ, कहां पर चली है? कुछ जानें भी गई हैं क्या?”

शेखचिल्ली थोड़ा ठहरा और हैरान होकर पूछा, “क्या मतलब?”

“भाई, तुम्हीं सबसे पहले इस खबर को लेकर आए हो। यह बताओ लड़ाई किस मुहल्ले में चल रही है।”

“कैसी लड़ाई?” शेखचिल्ली ने पूछा।

“अरे तुम्हीं तो चिल्ला रहे थे कि चल गई चल गई।”

“हां-हां”, शेखचिल्ली ने कहा “वो तो मैं इसलिए चिल्ला रहा था कि बहुत समय से जेब में पड़ी एक खोटी दुअन्नी, आज लाला की दुकान पर चल गई है।”

सब लोगों ने सर पीट लिया इस भगदड़ में एक बुढ़िया किसी गाड़ी से टकरा गई। वह बेहोश होकर गिर पड़ी। लोगों की भीड़ ने उसे घेर लिया। कोई बेहोश बुढ़िया की हवा करने लगा तो कोई सिर सहलाने लगा।

गाड़ीवाला टक्कर मारते ही भाग गया था। वहीं शेखचिल्ली जनाब भी खड़े थे। एक आदमी बोला, ‘जल्दी से बुढ़िया को अस्पताल ले चलो’ दूसरे ने कहा, ‘हाँ, ताँगा लाओ और इसे अस्पताल पहुँचाओ।’ ‘हमें इसे यहीं पर होश में लाना चाहिए। भई, कोई तो पानी ले लाओ।’ तीसरा बोला। ‘पानी के छींटे देने पर यह होश में आ जाएगी।’

‘हाँ, हमें इसकी जिंदगी बचानी चाहिए।’ ‘लेकिन यह तो होश में नहीं आ रही। इसे अस्पताल ही ले चलो। वहीं होश में आएगी।’ वहीं खड़ा शेखचिल्ली बोला, ‘इसे होश में लाने का तरीका तो मैं बता सकता हूँ।’ ‘बताओ भाई?’, लोग बोले।

‘इसके लिए गर्म-गर्म जलेबियाँ लाओ। जलेबियों की खुशबू इसे सुँघाओ और फिर इसके मुँह में डाल दो। जलेबियाँ इसे बड़ा फायदा करेंगी।’ शेखचिल्ली ने बताया। शेखचिल्ली की बात बुढ़िया के कानों में पड़ गई।

वह बेहोशी का बहाना किए पड़ी थी। शेखचिल्ली की बात सुनते ही वह बोल उठी, ‘अरे भाइयों, इसकी भी तो सुनो! देखो यह लड़का क्या कह रहा है।’ लोग चौंक पड़े। उन्होंने बुढ़िया को बुरा-भला कहा और चल दिए। बहानेबाज बुढ़िया भी चुपचाप उठकर चली गई।

शेखचिल्ली ने भी ससुराल का रुख पकड़ा । ट्रैन में बहुत भीड़ थी जल्दी जल्दी में वह जनाना डिब्बे में बैठ गया । टी.टी. आया तो उसने शेखचिल्ली की फटकार लगाई और अगले स्टेशन पर उतार दिया शेखचिल्ली दुसरे दरवाजे से फिर चढ़ लिये।

अबकी बार उसने अपनी वेगम के लिये जो कपड़े ले जा रहा था वो पहन लिये । नाकाब के कारण मुह तो नहीं दिख रहा था मगर जूते साफ़ दिख रहे थे । टी.टी थोड़ी देर बाद फिर आया जनाना लिवाज़ और मर्दाना जूते देख उसे शक हुआ। उसने नाकाब हटाने के लिये कहा । नाकाब हटाते ही शीखचिल्ली पकडे गए । अब तो शेखचिल्ली की टी.टी ने खूब धुनाई की। अगले स्टेशन पर फिर उतार दिया । नसीब से यही उनकी बेगम का गाँव था ।

जनाब शेखचिल्ली दुनिया में सिर्फ दो चीजों से डरते थे. घर में अपनी बीवी से और बाहर कुत्तों से.
शेख़चिल्ली दुबले-पतले और नाटे तो थे ही उनका चश्मा अजीब ढंग से उनकी नाक पर टिका रहता था.
गाँव के अजनबी कुत्तों ने ऐसी अजीब शक्ल-सूरत वाला इंसान पहले कभी नहीं देखा था. आज जब पहले-पहल उन्हें ऐसा मौक़ा नसीब हुआ तो वे जोर-जोर से भौंकने लगे. वे इस अजीब इंसान का पीछा छोड़ने को तैयार न थे. जहां भी शेख़ चिल्ली जाते कुत्ते भी पीछे-पीछे भौंकते हुए लगे रहते.

शेख़ चिल्ली ने कुत्तों को पीछा करते देख अपनी चाल बढ़ा दी. लेकिन वह जितना तेज चलते कुत्ते उतनी ही जोर से भौंकते.

आखिरकार शेख़ चिल्ली के सब्र का बाँध टूट गया. उन्हें लगा कि ये बदमाश कुत्ते ऐसे नहीं मानने वाले, कुछ करना ही पड़ेगा. उन्होंने किसी हथियार की तलाश में इधर-उधर नजर फिराई. बगल में ही एक ईंट पड़ी थी. वह झुक कर उसे उठाने लगे. लेकिन ईंट हिल भी नहीं रही थी, वह तो जमीन में गड़ी थी. पूरी ताकत लगा देने के बाद भी शेख़ चिल्ली उसे उठाने में कामयाब नहीं हुए. वे नाराज़ हो गए और गुस्से से भरकर गाँव वालों को गालियाँ देने लगे.

एक गाँव वाला उधर से गुजर रहा था. उसने शेख़ चिल्ली से उनकी नाराजगी का सबब पूछा.

” बड़ा अजीब गाँव है तुम्हारा.” शेख़ चिल्ली गुस्से में ही चिल्लाए, ” यह भी कोई तरीका है. तुम लोग कुत्तों को खुला रखते हो और ईंटों को बांध कर.”

उस आदमी ने कुत्ते को भगा दिया अब शेखचिल्ली को भूख लग आई । माँ ने कहा था भूख लगे तो कुछ ले कर खा लेना।

शेखचिल्ली परचून की दूकान पर पहुंचे कहा कुछ दे दो । दुकानदार बोला क्या दे दूँ ? शेखचिल्ली ने फिर कहा कुछ दे दो काफी देर यही सिलसिला चलता रहा आखिरकार थक कर दुकानदार बोला मेरे पास कुछ नहीं है ।

फिर फल वाले से भी ऐसी ही बहस हुई । उसने भी तंग आ कर शेखचिल्ली को भगा दिया । अब शेखचिल्ली सब्जीवाले के पास गए । सब्जीवाले से भी कुछ माँगा । सब्जीवाला बहुत देर से शेखचिल्ली को देख रहा था । उसने सोचा कोई पागल लगता है । जब शेखचिल्ली ने उससे कुछ माँगा तो सब्जीवाले ने जिमीकंद काटकर खाने के लिये दे दिया । शेखचिल्ली खुश हो गया । मगर जैसे ही शेखचिल्ली ने जिमीकंद खाया उसके पूरे मुँह में खुजली होने लगी । शेखचिल्ली का हाल बेहाल हो गया । शेखचिल्ली ने ढेरों गालियाँ सब्जीवाले को दीं । सभी लोग बहुत हँसे ।

जैसे तैसे शेखचिल्ली ससुराल पहुँच गए । मगर माँ ने उन्हें बचपन से समझा रखा था रात को किसी के घर नहीं जाते और ससुराल पहुँचते पहुँचते रात हो गई थी । सो घर के पिछवाड़े अपना अड्डा जमा लिया। जमाई राजा के लिये अलग अलग तरह के पकवान बनाए जा रहे थे । शेखचिल्ली को रहा नहीं जा रहा था ।माँ ने सत्तू बाँध कर दिया था वही खा कर बैठे थे तभी सास ने अपनी बहू को चिल्लाया कैसे टेढ़े बड़े बना रही हो जमाई राजा क्या सोचेंगे बड़े बनाने भी नहीं आते । शेखचिल्ली के मुँह में पानी आ गया उसे दही बड़े बहुत पसंद थे ।

रात जैसे तैसे गुजर गई।सुबह होते ही शेखचिल्ली घर में घुसे । सब ने पूछा आप तो कल आने वाले थे हम सब आपका इन्तजार कर रहे थे। शेखचिल्ली ने बात टाल दी ।ससुराल में बहुत खातिरदारी हुई खाना परोसा गया मगर दहीबड़े नहीं दिये गए । शेखचिल्ली को दहीबड़े खाने थे ।शेखचिल्ली ने कहा दही बड़े भी दो टेढ़े बना तो क्या हुआ दहीबड़े का स्वाद थोड़ी बदल गया।

सभी सोचने लगे जमाई राजा तो ज्योतिष जानते हैं । पूरे नगर में बात फैल गई।

गाँव में उसी रात चोरी हुई थी । सभी ने शेखचिल्ली को घेर लिया और चोर के बारे में पूछने लगे ।शेखचिल्ली की इज्जत पर बन आई उनहोंने एक रात का समय माँगा । रात भर नींद नहीं आई रात भर बड़बड़ाते रहे “कैसे कटियौ रात, भोरहि कटियही नाक” । उस चोर का नाम भोरा था बह बहुत परेशान हो गया उसने शेखचिल्ली को सारा सामान ले कर दे दिया और माफ़ी मांग ली । सुबह होते ही शेखचिल्ली ने सामान गाँव बालों को दे दिया और चोर को माफ़ करने को कहा । और फ़ौरन ही बेगम को लेकर वापस घर भाग आए ।

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