शेखजी ने बहुत सी नौकरियां की लेकिन उनका दिल नौकरी में नहीं लगता था। एकदिन उन्होंने मुंबई जाने की सोची, नौकरी करने के लिए नहीं, बल्कि हीरो बन्ने के लिए। वह सोचने लगे – कलाकार तो वह है ही, उसे फिल्मों में मौका भी मिल सकता है। एक बार फिल्मों में आ जाये तो वह तहलका मचा सकता है। चारों और उसी के चर्चे होंगे। वह मुंबई के लिए चल दिए। टिकट लिया।
स्टेशन पर खड़ी हुई गाड़ी में प्रथम श्रेणी के डिब्बे में जाकर बैठ गए। गाड़ी चल दी । चिल्ली अपने डब्बे में अकेले ही थे । वह सोचने लगे- लोग यूं तो कहते हैं की रेलों में इतनी भीड़ होती है, लेकिन यहाँ तो भीड़ है ही नहीं। पूरे डिब्बे में मैं तो अकेला बैठा हूँ। उन्हें डर-सा लगने लगा। इतनी बड़ी गाड़ी और वह अकेले। गाडी धडधडाती हुई भागी जा रही थी। रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। वह सोच रहे थे – गाड़ियाँ जगह-जगह रूकती हैं। कहीं-कहीं तो घंटों खड़ी रहती है और एक ये है, जो रुकने का नाम ही नहीं लेती ।
बस भागी ही जा रही है, रुक ही नहीं रही है। कई जिले पार करने के बाद जब गाडी रुकी तो बहार झांकते हुए एक नीले कपड़ो वाले रेलवे कर्मचारी को बुलाकर बोले- ऐ भाई ! ये रेलगाड़ी है या अलादीन के चिराग का जिन्न। क्या हुआ ? “कमबख्त रूकती ही नहीं। खूब शोर मचाया, पर किसीने भी तो नहीं सुना। यह बस नहीं है की ड्राइवर या कंडक्टर को आवाज़ दी और कहीं भी उतर गए, यह रेलगाड़ी है मियां। रेलगाड़ी है मियां !
शेखचिल्ली बोला- इस बात को मैं अच्छी तरह जानता हूँ।
फिर क्यों पूछ रहे हो ? “क्या पूछ रहा हूँ ? “तुम तो यह भी नहीं जानते की रेलगाड़ी बिना स्टेशन आये नहीं रूकती । “क्या बकते हो ! कौन बेवकूफ नहीं जानता, हम जानते हैं । “जानते हो तो फिर क्यों पूछ रहे हो? यह तो हमारी मर्जी है । ओह ! तो तुम मुझे मूर्ख बना रहे थे ? अरे! बने बनाये को भला हम क्या बनायेंगे ? “ओह! नॉनसेन्स । नून तो खाओ तुम। अपन तो बिना दाल सब्जी के कभी नहीं खाते। अजीब पागल है। वह बडबडाता हुआ वहां से चला गया। शेखजी ठहाका लगाकर हंस पड़े और गाड़ी पुनः चल पड़ी।