एक समय की बात है की मोती नामक एक व्यक्ति था जो कभी भूत-प्रेत पिशाच से नहीं डरता था। वह अपने किसी रिसतेदारों के घर गया हुआ था। दूसरे दिन उसे जल्दी घर पहुंचाना था इसलिए उसने सोचा की मुर्गे की पहली बांग पर ही वह उठकर घर की और चल पड़ेगा। उस समय घड़ी और Alarm सबके पास नहीं होते थे इसलिए सब मुर्गे की बांग को ही सुबह होना मानते थे।
लेकिन बदकिस्मती से मुर्गे ने रात 12 बजे ही बांग दे दी। और लोंगों की मान्यता है की रात 12 बजे कभी कहीं यात्रा नहीं करनी चाहिए। उसने सोचा की 3 बज चुके हैं इसलिए वो वहाँ से चल पड़ा। आगे दो दरिया पड़ते थे यहाँ पर दोनों मिलते थे इसलिए इस स्थान का नाम लोंगों में संगम के नाम से जाना जाता है। जब मोती उस स्थान पर पहुंचा तो क्या देखता है की नदी में से कुछ लोग सिर पर रेत के बोरे भरकर व हांथ में जलते हुवे अंगारे पकड़ कर बाहर निकल रहे हैं। ये सब देखकर मोती खबरा गया। वह मंत्र जनता था इसलिए उसने जल्दी से अपनी कमीज उतारी और उसमें रेत भरी व हांथ में टॉर्च लेकर खड़ा हो गया। स्थानीय भाषा में उन्हे जलधीर के नाम से जाना जाता है। वह आदमी को खा जाते हैं।
मोती ने अपने चारों तरफ कर बांध ली व उन जलधिरों के साथ नाचना सुरू कर दिया। वे गा रहे थे लेई लेई नच्चा माई। येई येई नच्चा।
वे भी उनके साथ जैसे नाच रहे थे नाचने लग पड़ा। वह थक चुका था। अब तीन बजे का समय हुआ तो वे लोग धीरे – धीरे नदी के बीच जाना आरंभ हो गए व कुछ क्षण बाद उस संगम में समा गए। तब जाकर मोती ने चैन की शांस ली और धीरे – धीरे अपने घर की और चल पड़ा। वह रास्ते में सोच रहा था की कितनी विचित्र रही यह रात। लेकिन अपने पास कोई विद्या होतो किसी न किसी समय काम आ जाती है। इस कहानी से हमें एक सीख भी मिलती है की विद्या कैसी भी हो आखिर किसी न किसी मोड पर काम आ ही जाती है। अगर मोती को ये विद्या नहीं आती तो वे जलधीर उसे खा गए होते, उसने अपनी विद्या का सही इस्तेमाल कर के अपनी जान बचाई