Aarti Ganesh Ji ki (आरती श्री गणेशजी)
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी
माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी।
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा
लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
अन्धे को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ।।
‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
वाल्मीकि द्वारा श्रीगणेश का स्तवन
ॐ ॐ
वाल्मीकि द्वारा श्रीगणेश का स्तवन
=श्रीगणेश=
☀☀☀☀☀वाल्मीकि द्वारा श्रीगणेश का स्तवन☀☀☀☀☀
आदिकवि वाल्मीकि द्वारा श्रीगणेश का स्तवन
चतु:षष्टिकोटयाख्यविद्याप्रदं त्वां सुराचार्यविद्याप्रदानापदानम्।
कठाभीष्टविद्यार्पकं दन्तयुग्मं कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि॥
गणेश्वर! आप चौंसठ कोटि विद्याओं के दाता तथा देवताओं के आचार्य बृहस्पति को भी विद्या-प्रदान का कार्य पूर्ण करनेवाले हैं। कठ को अभीष्ट विद्या देनेवाले भी आप ही हैं। (अथवा आप कठोपनिषद्रूपा अभीष्ट विद्या के दाता हैं।) आप द्विरद हैं, कवि हैं और कवियों की बुद्धि के स्वामी हैं; मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
स्वनाथं प्रधानं महाविघन्नाथं निजेच्छाविसृष्टाण्डवृन्देशनाथम्।
प्रभुं दक्षिणास्यस्य विद्याप्रदं त्वां कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि॥
आप ही अपने स्वामी एवं प्रधान हैं। बडे-बडे विघनें के नाथ हैं। स्वेच्छा से रचित ब्रह्माण्ड-समूह के स्वामी और रक्षक भी आप ही हैं। आप दक्षिणास्य के प्रभु एवं विद्यादाता हैं। आप कवि हैं एवं कवियों के लिए बुद्धिनाथ हैं; मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
विभो व्यासशिष्यादिविद्याविशिष्टप्रियानेकविद्याप्रदातारमाद्यम्।
महाशाक्तदीक्षागुरुं श्रेष्ठदं त्वां कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि॥
विभो! आप व्यास-शिष्य आदि विद्याविशिष्ट प्रियजनों को अनेक विद्या प्रदान करनेवाले और सबके आदि पुरुष हैं। महाशाक्त -मन्त्र की दीक्षा के गुरु एवं श्रेष्ठ वस्तु प्रदान करनेवाले आप कवि एवं कवियों के बुद्धिनाथ को मैं प्रणाम करता हूँ।
विधात्रे त्रयीमुख्यवेदांश्च योगं महाविष्णवे चागमाञ्ा् शंकराय।
दिशन्तं च सूर्याय विद्यारहस्यं कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि॥
जो विधाता (ब्रह्माजी) को वेदत्रयी के नाम से प्रसिद्ध मुख्य वेदों का, महाविष्णु को योग का, शंकर को आगमों का और सूर्यदेव को विद्या के रहस्य का उपदेश देते हैं, उन कवियों के बुद्धिनाथ एवं कवि गणेशजी को मैं नमस्कार करता हूँ।
महाबुद्धिपुत्राय चैकं पुराणं दिशन्तं गजास्यस्य माहात्म्ययुक्तम्।
निजज्ञानशक्त्या समेतं पुराणं कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि॥
महाबुद्धि-देवी के पुत्र के प्रति गजानन के माहात्म्य से युक्त तथा निज ज्ञानशक्ति से सम्पन्न एक पुराण का उपदेश देनेवाले गणेश को, जो कवि एवं कवियों के बुद्धिनाथ हैं, मैं प्रणाम करता हूँ।
त्रयीशीर्षसारं रुचानेकमारं रमाबुद्धिदारं परं ब्रह्मपारम्।
सुरस्तोमकायं गणौघाधिनाथं कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि॥
जो वेदान्त के सारतत्त्व, अपने तेज से अनेक असुरों का संहार करनेवाले, सिद्धि-लक्ष्मी एवं बुद्धि को दारा के रूप में अङ्गीकार करनेवाले और परात्पर ब्रह्मस्वरूप हैं; देवताओं का समुदाय जिनका शरीर है तथा जो गण-समुदाय के अधीश्वर हैं उन कवि एवं कवियों के बुद्धिनाथ गणेश को मैं नमस्कार करता हूँ।
चिदानन्दरूपं मुनिध्येयरूपं गुणातीतमीशं सुरेशं गणेशम्।
धरानन्दलोकादिवासप्रियं त्वां कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि॥
जो ज्ञानानन्दस्वरूप, मुनियों के ध्येय तथा गुणातीत हैं; धरा एवं स्वानन्दलोक आदि का निवास जिन्हें प्रिय हैं; उन ईश्वर, सुरेश्वर, कवि तथा कवियों के बुद्धिनाथ गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ।
अनेकप्रतारं सुरक्ताब्जहारं परं निर्गुणं विश्वसद्ब्रह्मरूपम्।
महावाक्यसंदोहतात्पर्यमूर्ति कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि॥
जो अनेकानेक भक्तजनों को भव-सागर से पार करनेवाले हैं; लाल कमल के फूलों का हार धारण करते हैं; परम निर्गुण हैं; विश्वात्मक सद्ब्रह्म जिनका रूप है; तत्त्वमसि आदि महावाक्यों के समूह का तात्पर्य जिनका श्रीविग्रह है, उन कवि एवं कवियों के बुद्धिनाथ गणेश को मैं नमस्कार करता हूँ।
इदं ये तु कव्यष्टकं भक्तियुक्तास्त्रिसंध्यं पठन्ते गजास्यं स्मरन्त:।
कवित्वं सुवाक्यार्थमत्यद्भुतं ते लभन्ते प्रसादाद् गणेशस्य मुक्तिम्॥
जो भक्ति -भाव से युक्त हो तीनों संध्याओं के समय गजानन का स्मरण करते हुए इस कव्यष्टक का पाठ करते हैं, वे गणेशजी के कृपा-प्रसाद से कवित्व, सुन्दर एवं अद्भुत वाक्यार्थ तथा मानव-जीवन के चरम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं। —
समाप्त
।ॐ वक्रतुंडाय हुम्।
गणपति अथर्वशीर्ष
ॐ ॐ
गणपति अथर्वशीर्ष
=श्रीगणेश=
☀☀☀☀☀वाल्मीकि द्वारा श्रीगणेश का स्तवन☀☀☀☀☀
गणपति अथर्वशीर्ष
☀☀☀☀☀गणपति अथर्वशीर्ष☀☀☀☀☀
॥ श्री गणपत्यथर्वशीर्ष ॥
॥ शान्ति पाठ ॥
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः । भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ॥
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः । व्यशेम देवहितं यदायुः ॥
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ॥
स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ तन्मामवतु तद् वक्तारमवतु अवतु माम् अवतु वक्तारम्
ॐ शांतिः । शांतिः ॥ शांतिः॥।
॥ उपनिषत् ॥
॥हरिः ॐ नमस्ते गणपतये ॥
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि। त्वमेव केवलं कर्ताऽसि। त्वमेव केवलं धर्ताऽसि। त्वमेव केवलं हर्ताऽसि। त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि। त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ॥ १॥
गणपति को नमस्कार है, तुम्हीं प्रत्यक्ष तत्त्व हो, तुम्हीं केवल कर्त्ता, तुम्हीं केवल धारणकर्ता और तुम्हीं केवल संहारकर्ता हो, तुम्हीं केवल समस्त विश्वरुप ब्रह्म हो और तुम्हीं साक्षात् नित्य आत्मा हो।
॥ स्वरूप तत्त्व ॥
ऋतं वच्मि (वदिष्यामि)॥ सत्यं वच्मि (वदिष्यामि)॥ २॥
यथार्थ कहता हूँ। सत्य कहता हूँ।
अव त्वं माम् । अव वक्तारम् । अव श्रोतारम् । अव दातारम् । अव धातारम् । अवानूचानमव शिष्यम् । अव पश्चात्तात् । अव पुरस्तात् । अवोत्तरात्तात् । अव दक्षिणात्तात् । अव चोर्ध्वात्तात्। अवाधरात्तात्। सर्वतो मां पाहि पाहि समंतात् ॥३॥
तुम मेरी रक्षा करो। वक्ता की रक्षा करो। श्रोता की रक्षा करो। दाता की रक्षा करो। धाता की रक्षा करो। षडंग वेदविद् आचार्य की रक्षा करो। शिष्य रक्षा करो। पीछे से रक्षा करो। आगे से रक्षा करो। उत्तर (वाम भाग) की रक्षा करो। दक्षिण भाग की रक्षा करो। ऊपर से रक्षा करो। नीचे की ओर से रक्षा करो। सर्वतोभाव से मेरी रक्षा करो। सब दिशाओं से मेरी रक्षा करो।
त्वं वाङ्ग्मयस्त्वं चिन्मयः। त्वमानंदमयस्त्वं ब्रह्ममयः। त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि। त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ॥४॥
तुम वाङ्मय हो, तुम चिन्मय हो। तुम आनन्दमय हो। तुम ब्रह्ममय हो। तुम सच्चिदानन्द अद्वितीय परमात्मा हो। तुम प्रत्यक्ष ब्रह्म हो। तुम ज्ञानमय हो, विज्ञानमय हो।
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते। सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति। सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति। सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति। त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः। त्वं चत्वारि वाक्पदानि ॥ ५॥
यह सारा जगत् तुमसे उत्पन्न होता है। यह सारा जगत् तुमसे सुरक्षित रहता है। यह सारा जगत् तुममें लीन होता है। यह अखिल विश्व तुममें ही प्रतीत होता है। तुम्हीं भूमि, जल, अग्नि और आकाश हो। तुम्हीं परा, पश्यन्ती, मध्यमा और वैखरी चतुर्विध वाक् हो।
त्वं गुणत्रयातीतः त्वमवस्थात्रयातीतः। त्वं देहत्रयातीतः। त्वं कालत्रयातीतः। त्वं मूलाधारः स्थिथोऽसि नित्यम्। त्वं शक्तित्रयात्मकः। त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यम्। त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वं इन्द्रस्त्वं अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुवःस्वरोम् ॥ ६॥
तुम सत्त्व-रज-तम-इन तीनों गुणों से परे हो। तुम भूत-भविष्य-वर्तमान-इन तीनों कालों से परे हो। तुम स्थूल, सूक्ष्म और कारण- इन तीनों देहों से परे हो। तुम नित्य मूलाधार चक्र में स्थित हो। तुम प्रभु-शक्ति, उत्साह-शक्ति और मन्त्र-शक्ति- इन तीनों शक्तियों से संयुक्त हो। योगिजन नित्य तुम्हारा ध्यान करते हैं। तुम ब्रह्मा हो। तुम विष्णु हो। तुम रुद्र हो। तुम इन्द्र हो। तुम अग्नि हो। तुम वायु हो। तुम सूर्य हो। तुम चन्द्रमा हो। तुम (सगूण) ब्रह्म हो, तुम (निर्गुण) त्रिपाद भूः भुवः स्वः एवं प्रणव हो।
॥ गणेश मंत्र ॥
गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरम्।अनुस्वारः परतरः। अर्धेन्दुलसितम्। तारेण ऋद्धम्। एतत्तव मनुस्वरूपम्। गकारः पूर्वरूपम्। अकारो मध्यमरूपम्। अनुस्वारश्चान्त्यरूपम्। बिन्दुरुत्तररूपम्। नादः संधानम्। संहितासंधिः। सैषा गणेशविद्या। गणकऋषिः। निचृद्गायत्रीच्छंदः। गणपतिर्देवता। ॐ गं गणपतये नमः ॥ ७॥
‘गण’ शब्द के आदि अक्षर गकार का पहले उच्चारण करके अनन्तर आदिवर्ण अकार का उच्चारण करें। उसके बाद अनुस्वार रहे। इस प्रकार अर्धचन्द्र से पहले शोभित जो ‘गं’ है, वह ओंकार के द्वारा रुद्ध हो, अर्थात् उसके पहले और पीछे भी ओंकार हो। यही तुम्हारे मन्त्र का स्वरुप (ॐ गं ॐ) है। ‘गकार’ पूर्वरुप है, ‘अकार’ मध्यमरुप है, ‘अनुस्वार’ अन्त्य रुप है। ‘बिन्दु’ उत्तररुप है। ‘नाद’ संधान है। संहिता’ संधि है। ऐसी यह गणेशविद्या है। इस विद्या के गणक ऋषि हैं। निचृद् गायत्री छन्द है और गणपति देवता है। मन्त्र है- ‘ॐ गं गणपतये नमः”
॥ गणेश गायत्री ॥
एकदंताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दंतिः प्रचोदयात् ॥ ८॥
एकदन्त को हम जानते हैं, वक्रतुण्ड का हम ध्यान करते हैं। दन्ती हमको उस ज्ञान और ध्यान में प्रेरित करें।
॥ गणेश रूप (ध्यानम्)॥
एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम् ॥
रदं च वरदं हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम् ॥
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम् ॥
रक्तगंधानुलिप्तांगं रक्तपुष्पैः सुपूजितम् ॥
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम् ॥
आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृतेः पुरुषात्परम् ॥
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः ॥ ९॥
गणपतिदेव एकदन्त और चर्तुबाहु हैं। वे अपने चार हाथों में पाश, अंकुश, दन्त और वरमुद्रा धारण करते हैं। उनके ध्वज में मूषक का चिह्न है। वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा रक्तवस्त्रधारी हैं। रक्तचन्दन के द्वारा उनके अंग अनुलिप्त हैं। वे रक्तवर्ण के पुष्पों द्वारा सुपूजित हैं। भक्तों की कामना पूर्ण करने वाले, ज्योतिर्मय, जगत् के कारण, अच्युत तथा प्रकृति और पुरुष से परे विद्यमान वे पुरुषोत्तम सृष्टि के आदि में आविर्भूत हुए। इनका जो इस प्रकार नित्य ध्यान करता है, वह योगी योगियों में श्रेष्ठ है।
॥ अष्ट नाम गणपति ॥
नमो व्रातपतये । नमो गणपतये । नमः प्रमथपतये । नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय । विघ्ननाशिने शिवसुताय । श्रीवरदमूर्तये नमो नमः ॥ १०॥
व्रातपति, गणपति, प्रमथपति, लम्बोदर, एकदन्त, विघ्ननाशक, शिवतनय तथा वरदमूर्ति को नमस्कार है।
॥ फलश्रुति ॥
एतदथर्वशीर्षं योऽधीते ॥ स ब्रह्मभूयाय कल्पते ॥ स सर्वतः सुखमेधते ॥ स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते ॥ स पंचमहापापात्प्रमुच्यते ॥ सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति ॥ प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति ॥ सायंप्रातः प्रयुंजानो अपापो भवति ॥ सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति ॥ धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति ॥ इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम् ॥ यो यदि मोहाद्दास्यति स पापीयान् भवति सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत् ॥ ११॥
इस अथर्वशीर्ष का जो पाठ करता है, वह ब्रह्मीभूत होता है, वह किसी प्रकार के विघ्नों से बाधित नहीं होता, वह सर्वतोभावेन सुखी होता है, वह पंच महापापों से मुक्त हो जाता है। सायंकाल इसका अध्ययन करनेवाला दिन में किये हुए पापों का नाश करता है, प्रातःकाल पाठ करनेवाला रात्रि में किये हुए पापों का नाश करता है। सायं और प्रातःकाल पाठ करने वाला निष्पाप हो जाता है। (सदा) सर्वत्र पाठ करनेवाले सभी विघ्नों से मुक्त हो जाता है एवं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष- इन चारों पुरुषार्थों को प्राप्त करता है। यह अथर्वशीर्ष इसको नहीं देना चाहिये, जो शिष्य न हो। जो मोहवश अशिष्य को उपदेश देगा, वह महापापी होगा। इसकी १००० आवृत्ति करने से उपासक जो कामना करेगा, इसके द्वारा उसे सिद्ध कर लेगा।
(विविध प्रयोग)
अनेन गणपतिमभिषिंचति स वाग्मी भवति ॥ चतुर्थ्यामनश्नन् जपति स विद्यावान् भवति ।
स यशोवान् भवति ॥ इत्यथर्वणवाक्यम् ॥ ब्रह्माद्याचरणं विद्यात् न बिभेति कदाचनेति ॥ १२॥
जो इस मन्त्र के द्वारा श्रीगणपति का अभिषेक करता है, वह वाग्मी हो जाता है। जो चतुर्थी तिथि में उपवास कर जप करता है, वह विद्यावान् हो जाता है। यह अथर्वण-वाक्य है। जो ब्रह्मादि आवरण को जानता है, वह कभी भयभीत नहीं होता।
(यज्ञ प्रयोग)
यो दूर्वांकुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति ॥ यो लाजैर्यजति स यशोवान् भवति ॥ स मेधावान् भवति ॥ यो मोदकसहस्रेण यजति स वाञ्छितफलमवाप्नोति ॥ यः साज्यसमिद्भिर्यजति
स सर्वं लभते स सर्वं लभते ॥ १३॥
जो दुर्वांकुरों द्वारा यजन करता है, वह कुबेर के समान हो जाता है। जो लाजा के द्वारा यजन करता है, वह यशस्वी होता है, वह मेधावान होता है। जो सहस्त्र मोदकों के द्वारा यजन करता है, वह मनोवाञ्छित फल प्राप्त करता है। जो घृताक्त समिधा के द्वारा हवन करता है, वह सब कुछ प्राप्त करता है, वह सब कुछ प्राप्त करता है।
(अन्य प्रयोग)
अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा सूर्यवर्चस्वी भवति ॥ सूर्यगृहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ वा जप्त्वा सिद्धमंत्रो भवति ॥ महाविघ्नात्प्रमुच्यते ॥ महादोषात्प्रमुच्यते ॥ महापापात् प्रमुच्यते ॥ स सर्वविद्भवति स सर्वविद्भवति ॥ य एवं वेद इत्युपनिषत् ॥ १४॥
जो आठ ब्राह्मणों को इस उपनिषद् का सम्यक ग्रहण करा देता है, वह सूर्य के समान तेज-सम्पन्न होता है। सूर्यग्रहण के समय महानदी में अथवा प्रतिमा के निकट इस उपनिषद् का जप करके साधक सिद्धमन्त्र हो जाता है। सम्पूर्ण महाविघ्नों से मुक्त हो जाता है। महापापों से मुक्त हो जाता है। महादोषों से मुक्त हो जाता है। वह सर्वविद् हो जाता है। जो इस प्रकार जानता है-वह सर्वविद् हो जाता है।
॥ शान्ति मंत्र ॥
ॐ सहनाववतु ॥ सहनौभुनक्तु ॥ सह वीर्यं करवावहै ॥ तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ॥
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः । भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ॥ स्थिरैरंगैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः ।
व्यशेम देवहितं यदायुः ॥
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ॥ स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः ।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शांतिः । शांतिः ॥ शांतिः ॥।
॥ इति श्रीगणपत्यथर्वशीर्षं समाप्तम् ॥
श्रीगणपति अथर्वशीर्षम् :
यह पाठ एक सिद्ध पाठ माना गया हैं जिसके नित्य उच्चारण से जीवन के विघ्न दूर होते हैं |
1-श्री गणेशाय नमः ।
अर्थात:-
हे! देवता महा गणपति को मेरा प्रणाम |
ॐ नमस्ते गणपतये ।
त्वमेव प्रत्यक्षन् तत्त्वमसि ।
त्वमेव केवलङ् कर्ताऽसि ।
त्वमेव केवलन् धर्ताऽसि ।
त्वमेव केवलम् हर्ताऽसि ।
त्वमेव सर्वङ् खल्विदम् ब्रह्मासि ।
त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ।।
अर्थात:-
हे ! गणेशा तुम्हे प्रणाम, तुम ही सजीव प्रत्यक्ष रूप हो, तुम ही कर्म और कर्ता भी तुम ही हो, तुम ही धारण करने वाले, और तुम ही हरण करने वाले संहारी हो | तुम में ही समस्त ब्रह्माण व्याप्त हैं तुम्ही एक पवित्र साक्षी हो |
2.ऋतं वच्मि । सत्यं वच्मि ।।
अर्थात :-ज्ञान कहता हूँ सच्चाई कहता हूँ |
3.
अव त्वम् माम् । अव वक्तारम् ।
अव श्रोतारम् । अव दातारम् ।
अव धातारम् । अवानूचानमव शिष्यम् ।
अव पश्चात्तात् । अव पुरस्तात् ।
अवोत्तरात्तात् । अव दक्षिणात्तात् ।
अव चोध्र्वात्तात् । अवाधरात्तात् ।
सर्वतो माम् पाहि पाहि समन्तात् ।।
अर्थात :-
तुम मेरे हो मेरी रक्षा करों, मेरी वाणी की रक्षा करो| मुझे सुनने वालो की रक्षा करों | मुझे देने वाले की रक्षा करों मुझे धारण करने वाले की रक्षा करों | वेदों उपनिषदों एवम उसके वाचक की रक्षा करों साथ उससे ज्ञान लेने वाले शिष्यों की रक्षा करों | चारो दिशाओं पूर्व, पश्चिम, उत्तर, एवम दक्षिण से सम्पूर्ण रक्षा करों |
4
त्वं वाङ्मयस्त्वञ् चिन्मयः ।
त्वम् आनन्दमयस्त्वम् ब्रह्ममयः ।
त्वं सच्चिदानन्दाद्वितीयोऽसि ।
त्वम् प्रत्यक्षम् ब्रह्मासि ।
त्वम् ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ।।
अर्थात:-
तुम वाम हो, तुम ही चिन्मय हो, तुम ही आनन्द ब्रह्म ज्ञानी हो, तुम ही सच्चिदानंद, अद्वितीय रूप हो , प्रत्यक्ष कर्ता हो तुम ही ब्रह्म हो, तुम ही ज्ञान विज्ञान के दाता हो |
5
सर्वञ् जगदिदन् त्वत्तो जायते ।
सर्वञ् जगदिदन् त्वत्तस्तिष्ठति ।
सर्वञ् जगदिदन् त्वयि लयमेष्यति ।
सर्वञ् जगदिदन् त्वयि प्रत्येति ।
त्वम् भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः ।
त्वञ् चत्वारि वाव्पदानि ||
अर्थात :-
इस जगत के जन्म दाता तुम ही हो,तुमने ही सम्पूर्ण विश्व को सुरक्षा प्रदान की हैं सम्पूर्ण संसार तुम में ही निहित हैं पूरा विश्व तुम में ही दिखाई देता हैं तुम ही जल, भूमि, आकाश और वायु हो |तुम चारों दिशा में व्याप्त हो |
6.
त्वङ् गुणत्रयातीतः ।
(त्वम् अवस्थात्रयातीतः ।)
त्वन् देहत्रयातीतः । त्वङ् कालत्रयातीतः ।
त्वम् मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम् ।
त्वं शक्तित्रयात्मकः ।
त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम् ।
त्वम् ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वम् रुद्रस्त्वम्
इन्द्रस्त्वम् अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वञ चन्द्रमास्त्वम्
ब्रह्मभूर्भुवः स्वरोम्
अर्थात :-
तुम सत्व,रज,तम तीनो गुणों से भिन्न हो | तुम तीनो कालो भूत, भविष्य और वर्तमान से भिन्न हो | तुम तीनो देहो से भिन्न हो |तुम जीवन के मूल आधार में विराजमान हो | तुम में ही तीनो शक्तियां धर्म, उत्साह, मानसिक व्याप्त हैं |योगि एवम महा गुरु तुम्हारा ही ध्यान करते हैं | तुम ही ब्रह्म,विष्णु,रूद्र,इंद्र,अग्नि,वायु,सूर्य,चन्द्र हो | तुम मे ही गुणों सगुण, निर्गुण का समावेश हैं |
7.
गणादिम् पूर्वमुच्चार्य
वर्णादिन् तदनन्तरम् ।
अनुस्वारः परतरः । अर्धेन्दुलसितम् ।
तारेण ऋद्धम् । एतत्तव मनुस्वरूपम् ।
गकारः पूर्वरूपम् । अकारो मध्यमरूपम् ।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपम् ।
बिन्दुरुत्तररूपम् ।
नादः सन्धानम् । संहिता सन्धिः ।
सैषा गणेशविद्या । गणक ऋषिः ।
निचृद्गायत्री छन्दः । गणपतिर्देवता ।
ॐ गँ गणपतये नमः ।।
अर्थात :-
“गण” का उच्चारण करके बाद के आदिवर्ण अकार का उच्चारण करें | ॐ कार का उच्चारण करे | यह पुरे मन्त्र ॐ गं गणपतये नम: का भक्ति से उच्चारण करें |
8
एकदन्ताय विद्महे । वक्रतुण्डाय धीमहि ।
तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्
अर्थात :-
एकदंत, वक्रतुंड का हम ध्यान करते हैं | हमें इस सद मार्ग पर चलने की भगवन प्रेरणा दे |
9
एकदन्तञ् चतुर्हस्तम्,
पाशमङ्कुशधारिणम् ।
रदञ् च वरदम् हस्तैर्बिभ्राणम्,
मूषकध्वजम् ।
रक्तं लम्बोदरं,
शूर्पकर्णकम् रक्तवाससम् ।
रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गम्,
रक्तपुष्पैःसुपूजितम् ।
भक्तानुकम्पिनन् देवञ्,
जगत्कारणमच्युतम् ।
आविर्भूतञ् च सृष्ट्यादौ,
प्रकृतेः पुरुषात्परम् ।
एवन् ध्यायति यो नित्यं
स योगी योगिनां वरः ||
अर्थात :-
भगवान गणेश एकदन्त चार भुजाओं वाले हैं जिसमे वह पाश,अंकुश, दन्त, वर मुद्रा रखते हैं | उनके ध्वज पर मूषक हैं | यह लाल वस्त्र धारी हैं | चन्दन का लेप लगा हैं | लाल पुष्प धारण करते हैं | सभी की मनोकामना पूरी करने वाले जगत में सभी जगह व्याप्त हैं | श्रृष्टि के रचियता हैं | जो इनका ध्यान सच्चे ह्रदय से करे वो महा योगि हैं |
10
नमो व्रातपतये, नमो गणपतये,
नमः प्रमथपतये,
नमस्ते अस्तु लम्बोदराय एकदन्ताय,
विघ्ननाशिने शिवसुताय,
वरदमूर्तये नमः ||
अर्थात :-
व्रातपति, गणपति को प्रणाम, प्रथम पति को प्रणाम, एकदंत को प्रणाम, विध्नविनाशक, लम्बोदर, शिवतनय श्री वरद मूर्ती को प्रणाम |
11
एतदथर्वशीर्षं योऽधीते ।
स ब्रह्मभूयाय कल्पते ।
स सर्वविघ्नैर्न बाध्यते ।
स सर्वतः सुखमेधते ।
स पञ्चमहापापात् प्रमुच्यते ।
सायमधीयानो दिवसकृतम्
पापन् नाशयति ।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतम्
पापन् नाशयति ।
सायम् प्रातः प्रयुञ्जानोऽअपापो भवति ।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति ।
धर्मार्थकाममोक्षञ् च विन्दति ।
इदम् अथर्वशीर्षम् अशिष्याय न देयम् ।
यो यदि मोहाद्दास्यति
स पापीयान् भवति ।
सहस्रावर्तनात् ।
यं यङ् काममधीते
तन् तमनेन साधयेत् ।।
अर्थात :-
जो इस अथर्वशीष का पाठ करता हैं वह विघ्नों से दूर होता हैं | वह सदैव ही सुखी हो जाता हैं वह पंच महा पाप से दूर हो जाता हैं | सन्ध्या में पाठ करने से दिन के दोष दूर होते हैं | प्रातः पाठ करने से रात्रि के दोष दूर होते हैं |हमेशा पाठ करने वाला दोष रहित हो जाता हैं और साथ ही धर्म, अर्थ, काम एवम मोक्ष पर विजयी बनता हैं | इसका 1 हजार बार पाठ करने से उपासक सिद्धि प्राप्त कर योगि बनेगा |
12
अनेन गणपतिमभिषिञ्चति ।
स वाग्मी भवति ।
चतुथ्र्यामनश्नन् जपति
स विद्यावान् भवति ।
इत्यथर्वणवाक्यम् ।
ब्रह्माद्यावरणम् विद्यात् ।
न बिभेति कदाचनेति ।।
अर्थात :-
जो इस मन्त्र के उच्चारण के साथ गणेश जी का अभिषेक करता हैं उसकी वाणी उसकी दास हो जाती हैं | जो चतुर्थी के दिन उपवास कर जप करता हैं विद्वान बनता हैं | जो ब्रह्मादि आवरण को जानता है वह भय मुक्त होता हैं |
13
यो दूर्वाङ्कुरैर्यजति ।
स वैश्रवणोपमो भवति ।
यो लाजैर्यजति, स यशोवान् भवति ।
स मेधावान् भवति ।
यो मोदकसहस्रेण यजति ।
स वाञ्छितफलमवाप्नोति ।
यः साज्यसमिद्भिर्यजति
स सर्वं लभते, स सर्वं लभते ।।
अर्थात :-
जो दुर्वकुरो द्वारा पूजन करता हैं वह कुबेर के समान बनता हैं जो लाजा के द्वारा पूजन करता हैं वह यशस्वी बनता हैं मेधावी बनता हैं जो मोदको के साथ पूजन करता हैं वह मन: अनुसार फल प्राप्त करता हैं | जो घृतात्क समिधा के द्वारा हवन करता हैं वह सब कुछ प्राप्त करता हैं |
14.
अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा,
सूर्यवर्चस्वी भवति ।
सूर्यग्रहे महानद्याम् प्रतिमासन्निधौ
वा जप्त्वा, सिद्धमन्त्रो भवति ।
महाविघ्नात् प्रमुच्यते ।
महादोषात् प्रमुच्यते ।
महापापात् प्रमुच्यते ।
स सर्वविद् भवति, स सर्वविद् भवति ।
य एवम् वेद ।।
अर्थात :-
जो आठ ब्राह्मणों को उपनिषद का ज्ञाता बनाता हैं वे सूर्य के सामान तेजस्वी होते हैं | सूर्य ग्रहण के समय नदी तट पर अथवा अपने इष्ट के समीप इस उपनिषद का पाठ करे तो सिद्धी प्राप्त होती हैं | जिससे जीवन की रूकावटे दूर होती हैं पाप कटते हैं वह विद्वान हो जाता हैं यह ऐसे ब्रह्म विद्या हैं |
शान्तिमन्त्र
ॐ भद्रङ् कर्णेभिः शृणुयाम देवाः ।
भद्रम् पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः
व्यशेम देवहितं यदायुः ।।
शांति मन्त्र
अर्थात :-
हे ! गणपति हमें ऐसे शब्द कानो में पड़े जो हमें ज्ञान दे और निन्दा एवम दुराचार से दूर रखे |हम सदैव समाज सेवा में लगे रहे था बुरे कर्मों से दूर रहकर हमेशा भगवान की भक्ति में लीन रहें |हमारे स्वास्थ्य पर हमेशा आपकी कृपा रहे और हम भोग विलास से दूर रहें | हमारे तन मन धन में ईश्वर का वास हो जो हमें सदैव सुकर्मो का भागी बनाये | यही प्रार्थना हैं |
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः ।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्ताक्ष्र्योऽअरिष्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।
अर्थात :
चारो दिशा में जिसकी कीर्ति व्याप्त हैं वह इंद्र देवता जो कि देवों के देव हैं उनके जैसे जिनकी ख्याति हैं जो बुद्धि का अपार सागर हैं जिनमे बृहस्पति के सामान शक्तियाँ हैं जिनके मार्गदर्शन से कर्म को दिशा मिलती हैं जिससे समस्त मानव जाति का भला होता हैं |
समाप्त
।ॐ वक्रतुंडाय हुम्।
||श्री सिद्धि विनायक नामावलि ||
ॐ ॐ
||श्री सिद्धि विनायक नामावलि ||
=श्रीगणेश=
☀☀☀☀☀श्री सिद्धि विनायक नामावलि☀☀☀☀☀
ॐ विनायकाय नमः |
ॐ विघ्नराजाय नमः |
ॐ गौरीपुत्राय नमः |
ॐ गणेश्वराय नमः |
ॐ स्कन्दाग्रजाय नमः |
ॐ अव्ययाय नमः |
ॐ पूताय नमः |
ॐ दक्षाध्यक्ष्याय नमः |
ॐ द्विजप्रियाय नमः |
ॐ अग्निगर्भच्छिदे नमः |
ॐ इंद्रश्रीप्रदाय नमः |
ॐ वाणीबलप्रदाय नमः |
ॐ सर्वसिद्धिप्रदायकाय नमः |
ॐ शर्वतनयाय नमः |
ॐ गौरीतनूजाय नमः |
ॐ शर्वरीप्रियाय नमः |
ॐ सर्वात्मकाय नमः |
ॐ सृष्टिकर्त्रे नमः |
ॐ देवानीकार्चिताय नमः |
ॐ शिवाय नमः |
ॐ शुद्धाय नमः |
ॐ बुद्धिप्रियाय नमः |
ॐ शांताय नमः |
ॐ ब्रह्मचारिणे नमः |
ॐ गजाननाय नमः |
ॐ द्वैमातुराय नमः |
ॐ मुनिस्तुत्याय नमः |
ॐ भक्त विघ्न विनाशनाय नमः |
ॐ एकदंताय नमः |
ॐ चतुर्बाहवे नमः |
ॐ शक्तिसंयुताय नमः |
ॐ चतुराय नमः |
ॐ लंबोदराय नमः |
ॐ शूर्पकर्णाय नमः |
ॐ हेरंबाय नमः |
ॐ ब्रह्मवित्तमाय नमः |
ॐ कालाय नमः |
ॐ ग्रहपतये नमः |
ॐ कामिने नमः |
ॐ सोमसूर्याग्निलोचनाय नमः |
ॐ पाशांकुशधराय नमः |
ॐ छन्दाय नमः |
ॐ गुणातीताय नमः |
ॐ निरंजनाय नमः |
ॐ अकल्मषाय नमः |
ॐ स्वयंसिद्धार्चितपदाय नमः |
ॐ बीजापूरकराय नमः |
ॐ अव्यक्ताय नमः |
ॐ गदिने नमः |
ॐ वरदाय नमः |
ॐ शाश्वताय नमः |
ॐ कृतिने नमः |
ॐ विद्वत्प्रियाय नमः |
ॐ वीतभयाय नमः |
ॐ चक्रिणे नमः |
ॐ इक्षुचापधृते नमः |
ॐ अब्जोत्पलकराय नमः |
ॐ श्रीधाय नमः |
ॐ श्रीहेतवे नमः |
ॐ स्तुतिहर्षताय नमः |
ॐ कलाद्भृते नमः |
ॐ जटिने नमः |
ॐ चन्द्रचूडाय नमः |
ॐ अमरेश्वराय नमः |
ॐ नागयज्ञोपवीतिने नमः |
ॐ श्रीकांताय नमः |
ॐ रामार्चितपदाय नमः |
ॐ वृतिने नमः |
ॐ स्थूलकांताय नमः |
ॐ त्रयीकर्त्रे नमः |
ॐ संघोषप्रियाय नमः |
ॐ पुरुषोत्तमाय नमः |
ॐ स्थूलतुण्डाय नमः |
ॐ अग्रजन्याय नमः |
ॐ ग्रामण्ये नमः |
ॐ गणपाय नमः |
ॐ स्थिराय नमः |
ॐ वृद्धिदाय नमः |
ॐ सुभगाय नमः |
ॐ शूराय नमः |
ॐ वागीशाय नमः |
ॐ सिद्धिदाय नमः |
ॐ दूर्वाबिल्वप्रियाय नमः |
ॐ कान्ताय नमः |
ॐ पापहारिणे नमः |
ॐ कृतागमाय नमः |
ॐ समाहिताय नमः |
ॐ वक्रतुण्डाय नमः |
ॐ श्रीप्रदाय नमः |
ॐ सौम्याय नमः |
ॐ भक्ताकांक्षितदाय नमः |
ॐ अच्युताय नमः |
ॐ केवलाय नमः |
ॐ सिद्धाय नमः |
ॐ सच्चिदानंदविग्रहाय नमः |
ॐ ज्ञानिने नमः |
ॐ मायायुक्ताय नमः |
ॐ दन्ताय नमः |
ॐ ब्रह्मिष्ठाय नमः |
ॐ भयावर्चिताय नमः |
ॐ प्रमत्तदैत्यभयदाय नमः |
ॐ व्यक्तमूर्तये नमः |
ॐ अमूर्तये नमः |
ॐ पार्वतीशंकरोत्संगखेलनोत्सवलालनाय नमः |
ॐ समस्तजगदाधाराय नमः |
ॐ वरमूषकवाहनाय नमः |
ॐ हृष्टस्तुताय नमः |
ॐ प्रसन्नात्मने नमः |
ॐ सर्वसिद्धिप्रदायकाय नमः |
||इति श्रीसिद्धिविनायकाष्टोत्तरशतनामावलिः ||
समाप्त
।ॐ ब्रह्मचारिणे नमः ।
॥ श्री गणेश अष्टोतर नामावलि ॥
ॐ ॐ
॥ श्री गणेश अष्टोतर नामावलि ॥
=श्रीगणेश=
☀☀☀☀☀॥ श्री गणेश अष्टोतर नामावलि ॥☀☀☀☀☀
ॐ अकल्मषाय नमः ।
ॐ अग्निगर्भच्चिदे नमः ।
ॐ अग्रण्ये नमः ।
ॐ अजाय नमः ।
ॐ अद्भुतमूर्तिमते नमः ।
ॐ अध्यक्क्षाय नमः ।
ॐ अनेकाचिताय नमः ।
ॐ अव्यक्तमूर्तये नमः ।
ॐ अव्ययाय नमः ।
ॐ अव्ययाय नमः ।
ॐ आश्रिताय नमः ।
ॐ इन्द्रश्रीप्रदाय नमः ।
ॐ इक्षुचापधृते नमः ।
ॐ उत्पलकराय नमः ।
ॐ एकदन्ताय नमः ।
ॐ कलिकल्मषनाशनाय नमः ।
ॐ कान्ताय नमः ।
ॐ कामिने नमः ।
ॐ कालाय नमः ।
ॐ कुलाद्रिभेत्त्रे नमः ।
ॐ कृतिने नमः ।
ॐ कैवल्यशुखदाय नमः ।
ॐ गजाननाय नमः ।
ॐ गणेश्वराय नमः ।
ॐ गतिने नमः ।
ॐ गुणातीताय नमः ।
ॐ गौरीपुत्राय नमः ।
ॐ ग्रहपतये नमः ।
ॐ चक्रिणे नमः ।
ॐ चण्डाय नमः ।
ॐ चतुराय नमः ।
ॐ चतुर्बाहवे नमः ।
ॐ चतुर्मूर्तिने नमः ।
ॐ चन्द्रचूडामण्ये नमः ।
ॐ जटिलाय नमः ।
ॐ तुष्टाय नमः ।
ॐ दयायुताय नमः ।
ॐ दक्षाय नमः ।
ॐ दान्ताय नमः ।
ॐ दूर्वाबिल्वप्रियाय नमः ।
ॐ देवाय नमः ।
ॐ द्विजप्रियाय नमः ।
ॐ द्वैमात्रेएयाय नमः ।
ॐ धीराय नमः ।
ॐ नागराजयज्ञोपवीतवते नमः ।
ॐ निरङ्जनाय नमः ।
ॐ परस्मै नमः ।
ॐ पापहारिणे नमः ।
ॐ पाशांकुशधराय नमः ।
ॐ पूताय नमः ।
ॐ प्रमत्तादैत्यभयताय नमः ।
ॐ प्रसन्नात्मने नमः ।
ॐ बीजापूरफलासक्ताय नमः ।
ॐ बुद्धिप्रियाय नमः ।
ॐ ब्रह्मचारिणे नमः ।
ॐ ब्रह्मद्वेषविवर्जिताय नमः ।
ॐ ब्रह्मविदुत्तमाय नमः ।
ॐ भक्तवाञ्छितदायकाय नमः ।
ॐ भक्तविघ्नविनाशनाय नमः ।
ॐ भक्तिप्रियाय नमः ।
ॐ मायिने नमः ।
ॐ मुनिस्तुत्याय नमः ।
ॐ मूषिकवाहनाय नमः ।
ॐ रमार्चिताय नमः ।
ॐ लंबोदराय नमः ।
ॐ वरदाय नमः ।
ॐ वागीशाय नमः ।
ॐ वाणीप्रदाय नमः ।
ॐ विघ्नराजाय नमः ।
ॐ विधये नमः ।
ॐ विनायकाय नमः ।
ॐ विभुदेश्वराय नमः ।
ॐ वीतभयाय नमः ।
ॐ शक्तिसम्युताय नमः ।
ॐ शान्ताय नमः ।
ॐ शाश्वताय नमः ।
ॐ शिवाय नमः ।
ॐ शुद्धाय नमः ।
ॐ शूर्पकर्णाय नमः ।
ॐ शैलेन्द्रतनुजोत्सङ्गकेलनोत्सुकमानसाय नमः ।
ॐ श्रीकण्ठाय नमः ।
ॐ श्रीकराय नमः ।
ॐ श्रीदाय नमः ।
ॐ श्रीप्रतये नमः ।
ॐ सच्चिदानन्दविग्रहाय नमः ।
ॐ समस्तजगदाधाराय नमः ।
ॐ समाहिताय नमः ।
ॐ सर्वतनयाय नमः ।
ॐ सर्वरीप्रियाय नमः ।
ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः ।
ॐ सर्वसिद्धिप्रदायकाय नमः ।
ॐ सर्वात्मकाय नमः ।
ॐ सामघोषप्रियाय नमः ।
ॐ सिद्धार्चितपदांबुजाय नमः ।
ॐ सिद्धिदायकाय नमः ।
ॐ सृष्टिकर्त्रे नमः ।
ॐ सोमसूर्याग्निलोचनाय नमः ।
ॐ सौम्याय नमः ।
ॐ स्कन्दाग्रजाय नमः ।
ॐ स्तुतिहर्षिताय नमः ।
ॐ स्थुलकण्ठाय नमः ।
ॐ स्थुलतुण्डाय नमः ।
ॐ स्वयंकर्त्रे नमः ।
ॐ स्वयंसिद्धाय नमः ।
ॐ स्वलावण्यसुतासारजितमन्मथविग्रहाय नमः ।
ॐ हरये नमः ।
ॐ हॄष्ठाय नमः ।
ॐ ज्ञानिने नमः ।
॥ इति श्री विनायक अष्टोत्तरशत नामावली संपूर्णम् ॥
समाप्त
ॐ सर्वरीप्रियाय नमः ।
॥ श्रीऋण-हरण-कर्तृ-गणपति-स्तोत्र-मन्त्र॥
ॐ ॐ
॥ श्रीऋण-हरण-कर्तृ-गणपति-स्तोत्र-मन्त्र॥
=श्रीगणेश=
☀☀☀☀☀॥श्रीऋण-हरण-कर्तृ-गणपति-स्तोत्र-मन्त्र॥☀☀☀☀☀
ध्यान
ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्।
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्।।
।।मूल-पाठ।।
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजितः फल-सिद्धये।
सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।१
त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चितः।
सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।२
हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चितः।
सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।३
महिषस्य वधे देव्या गण-नाथः प्रपुजितः।
सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।४
तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजितः।
सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।५
भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धये।
सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।६
शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायकः।
सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।७
पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजितः।
सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।८
इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं,
एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहितः।
दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत्।।
समाप्त
ॐ सर्वतनयाय नमः ।
॥ श्री गणेश के 14 नामो का उच्चारण ॥
ॐ ॐ
॥ श्री गणेश के 14 नामो का उच्चारण ॥
=श्रीगणेश=
☀☀☀☀☀॥श्री गणेश के 14 नामो का उच्चारण ॥☀☀☀☀☀
☀☀☀☀☀श्री गणेश के 14 नामो का उच्चारण … मिलेगी कष्टों से मुक्ति☀☀☀☀☀
- विनायक ,
- गजानन ,
- गणेश,
- लंबोदर ,
- एकदंत,
- वक्रतुंड ,
- विघ्नराज ,
- भालचंद्र ,
- गणाधिप ,
- विकट ,
- हेरंब ,
- कृष्णपिंगाक्ष ,
- आखुरघ
- गौरीपुत्र।
जो व्यक्ति इन नामों का प्रति दिन उच्चारण कर भगवान गणेश की आराधना करता है। उसके सारे दुख-दर्द दूर होकर उसे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
भगवान श्री गणेश बुद्धि के दाता होने के साथ भय, चिंता दूर करने वाले देवता हैं। इनका किसी भी समय स्मरण किया जा सकता है।
तंत्र शास्त्रों में गणेशजी के कई रूप बतलाए गए हैं, जिनकी उपासना करने सभी सभी अभीष्ट सिद्ध होते हैं।
समाप्त
ॐ श्रीकराय नमः ।
॥ उच्छिष्ट गणपति प्रयोग॥
ॐ ॐ
॥ उच्छिष्ट गणपति प्रयोग॥
=श्रीगणेश=
☀☀☀☀☀॥उच्छिष्ट गणपति प्रयोग॥☀☀☀☀☀
प्रयोग करने में अत्यन्त सरल, शीघ्र फल को प्रदान करने वाला, अन्न और धन की वृद्धि के लिए, वशीकरण को प्रदान करने वाला भगवान गणेश जी का ये दिव्य तांत्रिक प्रयोग है I इसी सिद्धि के बल पर प्राचीन काल में साधु लोग थोड़े से प्रसाद से पूरे गांव को भरपेट भोजन करवा देते थे I इसकी साधना करते हुए मुह को जूठा रखा जाता है I
विनियोग : ॐ अस्य श्रीउच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य कंकोल ऋषि:, विराट छन्द : उच्छिष्टगणपति देवता सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोग: I
मन्त्र : ॐ गं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा I
अगर किसी पर तामसी कृत्या प्रयोग हुआ हो तो उच्छिष्ट गणपति शत्रु की गन्दी क्रियाओं को नष्ट करके रक्षा करते हैं I
ॐश्री सदगुरुदेवाय नमः ॐश्री गणेशाय नमः ॐश्री रां रामाय नमः ॐश्री हनुमते नमः
समाप्त
ॐ श्रीकराय नमः ।
॥ श्री गणेश द्वादश नाम स्तोत्र ॥
ॐ ॐ
॥ श्री गणेश द्वादश नाम स्तोत्र ॥
=श्रीगणेश=
☀☀☀☀☀॥ श्री गणेश द्वादश नाम स्तोत्र ॥☀☀☀☀☀
॥ॐतत्सवितुर्वरेण्यं॥
॥ॐश्रीगुरवेनमः॥
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः॥
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि॥
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते॥
भावार्थ:- १.सुमुख २.एकदन्त ३.कपिल ४.गजकर्ण ५.लम्बोदर ६.विकट ७.विघ्ननाश ८.विनायक ९.धूम्रकेतु १०.गणाध्यक्ष ११.भालचन्द्र १२.गजानन ; इन बारह नामों के पाठ करने व सुनने से छः स्थानों १.विद्यारम्भ २.विवाह ३.प्रवेश(प्रवेश करना) ४.निर्गम(निकलना) ५.संग्राम और ६.संकट में सभी विघ्नों का नाश होता है।
विशेष:- सिद्धों के अनुसार, यात्रा में सुरक्षा के लिए, घर से निकलते समय उपरोक्त स्तोत्र का पाठ पूर्ण श्रद्धाभाव से करने पर श्रीगणपति यात्रा को अवश्य ही निर्विघ्न संपन्न कराते हैं।
समाप्त
ॐ श्रीकराय नमः ।
॥ संकटनाशन गणेश स्तोत्र ॥
ॐ ॐ
॥ संकटनाशन गणेश स्तोत्र ॥
=श्रीगणेश=
☀☀☀☀☀॥ संकटनाशन गणेश स्तोत्र॥☀☀☀☀☀
☀☀☀☀☀अमीर बनाता है संकटनाशन गणेश स्तोत्र का जप☀☀☀☀☀
- संकटनाशन गणेश स्तोत्र दिलाता है हर कष्ट से मुक्ति…
अमीर बनने की चाह रखने वाले हर मनुष्य को अपार धन की प्राप्ति हेतु श्रीगणेश के चित्र अथवा मूर्ति के आगे ‘संकटनाशन गणेश स्तोत्र’ का पाठ 11 बार करना चाहिए।
आपके लिए प्रस्तुत है श्री गणेश का लोकप्रिय संकटनाशन स्तोत्र :
प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।
भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।1।।
प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।
तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम।।2।।
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ।।3।।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम।।4।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।5।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।6।।
जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।7।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।8।।
॥ इति श्रीनारदपुराणे संकष्टनाशनं गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
समाप्त
ॐ श्रीकराय नमः ।
॥ पंचश्लोकी गणेशपुराण ॥
ॐ ॐ
॥पंचश्लोकी गणेशपुराण ॥
=श्रीगणेश=
☀☀☀☀☀॥ पंचश्लोकी गणेशपुराण॥☀☀☀☀☀
☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀
पंचश्लोकी गणेशपुराण
☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀
मोक्ष प्राप्ति के लिए पढ़ें पंचश्लोकी गणेशपुराण
भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा के सामने अथवा किसी मंदिर में गणेशजी के सामने बैठकर जो मनुष्य प्रतिदिन भक्तिभाव से पंचश्लोकी गणेशपुराण का पाठ करेगा, वह मनुष्य समस्त उत्तम भोगों का उपभोग कर परम निर्वाण (मोक्ष) को प्राप्त होगा।
श्रीविघ्नेशपुराणसारमुदितं व्यासाय धात्रा पुरा
तत्खण्डं प्रथमं महागणपतेश्चोपासनाख्यं यथा।
संहर्तुं त्रिपुरं शिवेन गणपस्यादौ कृतं पूजनं
कर्तुं सृष्टिमिमां स्तुतः स विधिना व्यासेन बुद्धयाप्तये॥
संकष्टयाश्च विनायकस्य च मनोः स्थानस्य तीर्थस्य वै
दूर्वाणां महिमेति भक्तिचरितं तत्पार्थिवस्यार्चनम्।
तेभ्यो यैर्यदभीप्सितं गणपतिस्तत्तत्प्रतुष्टो ददौ
ताः सर्वा न समर्थ एव कथितुं ब्रह्मा कुतो मानवः॥
क्रीडाकाण्डमथो वदे कृतयुगे श्वेतच्छविः काश्यपः।
सिंहांकः स विनायको दशभुजो भूत्वाथ काशीं ययौ।
हत्वा तत्र नरान्तकं तदनुजं देवान्तकं दानवं
त्रेतायां शिवनन्दनो रसभुजो जातो मयूरध्वजः॥
हत्वा तं कमलासुरं च सगणं सिन्धु महादैत्यपं
पश्चात् सिद्धिमती सुते कमलजस्तस्मै च ज्ञानं ददौ।
द्वापारे तु गजाननो युगभुजो गौरीसुतः सिन्दुरं
सम्मर्द्य स्वकरेण तं निजमुखे चाखुध्वजो लिप्तवान्॥
गीताया उपदेश एव हि कृतो राज्ञे वरेण्याय वै
तुष्टायाथ च धूम्रकेतुरभिधो विप्रः सधर्मधिकः।
अश्वांको द्विभुजो सितो गणपतिर्म्लेच्छान्तकः स्वर्णदः
क्रीडाकाण्डमिदं गणस्य हरिणा प्रोक्तं विधात्रे पुरा॥
एतच्छ्लोकसुपंचकं प्रतिदिनं भक्त्या पठेद्यः पुमान्
निर्वाणं परमं व्रजेत् स सकलान् भुक्त्वा सुभोगानपि।
॥ इति श्रीपंचश्लोकिगणेशपुराणम् ॥
समाप्त
ॐ श्रीकराय नमः ।
॥ श्री गणेश पूजन विधि॥
ॐ ॐ
॥श्री गणेश पूजन विधि॥
=श्रीगणेश=
☀☀☀☀☀॥ श्री गणेश पूजन विधि॥☀☀☀☀☀
☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀
कैसे करें श्री गणेश का पूजन…!
श्री गणेश पूजन विधि
☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀
श्रीगणेश पूजा अपने आपमें बहुत ही महत्वपूर्ण व कल्याणकारी है। चाहे वह किसी कार्य की सफलता के लिए हो या फिर चाहे किसी कामनापूर्ति स्त्री, पुत्र, पौत्र, धन, समृद्धि के लिए या फिर अचानक ही किसी संकट मे पड़े हुए दुखों के निवारण हेतु हो।
- अर्थात् जब कभी किसी व्यक्ति को किसी अनिष्ट की आशंका हो या उसे नाना प्रकार के शारीरिक या आर्थिक कष्ट उठाने पड़ रहे हो तो उसे श्रद्धा एवं विश्वासपूर्वक किसी योग्य व विद्वान ब्राह्मण के सहयोग से श्रीगणपति प्रभु व शिव परिवार का व्रत, आराधना व पूजन करना चाहिए।
19 सितंबर को प्रातः कालीन समय से ही श्रीगणेश का पूजन-अर्चन का शुभारंभ हो जाएगा। श्रीगणेश चतुर्थी को पत्थर चौथ और कलंक चौथ के नाम भी जाना जाता है। यह प्रति वर्ष भाद्रपद मास को शुक्ल चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। चतुर्थी तिथि को श्री गणपति भगवान की उत्पत्ति हुई थी इसलिए इन्हें यह तिथि अधिक प्रिय है। जो विघ्नों का नाश करने वाले और ऋद्धि-सिद्धि के दाता हैं। इसलिए इन्हें सिद्धि विनायक भगवान भी कहा जाता है।
श्री गणेश पूजन विधि :
- पूजन से पहले नित्यादि क्रियाओं से निवृत्त होकर शुद्ध आसन में बैठकर सभी पूजन सामग्री को एकत्रित कर पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली लाल, चंदन, मोदक आदि एकत्रित कर क्रमश: पूजा करें।
- भगवान श्रीगेश को तुलसी दल व तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए। उन्हें, शुद्ध स्थान से चुनी हुई दूर्वा को धोकर ही चढ़ाना चाहिए।
- श्रीगणेश भगवान को मोदक (लड्डू) अधिक प्रिय होते हैं इसलिए उन्हें देशी घी से बने मोदक का प्रसाद भी चढ़ाना चाहिए।
- श्रीगणेश स्त्रोत से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
- श्रीगणेश सहित प्रभु शिव व गौरी, नन्दी, कार्तिकेय सहित सम्पूर्ण शिव परिवार की पूजा षोड़षोपचार विधि से करना चाहिए।
- व्रत व पूजा के समय किसी प्रकार का क्रोध व गुस्सा न करें। यह हानिप्रद सिद्ध हो सकता है।
- श्रीगणेश का ध्यान करते हुए शुद्ध व सात्विक चित्त से प्रसन्न रहना चाहिए।
- शास्त्रानुसार श्रीगणेश की पार्थिव प्रतिमा बनाकर उसे प्राणप्रतिष्ठित कर पूजन-अर्चन के बाद विसर्जित कर देने का आख्यान मिलता है। किन्तु भजन-कीर्तन आदि आयोजनों और सांस्कृतिक आयोजनों के कारण भक्त 1, 2, 3, 5, 7, 10 आदि दिनों तक पूजन अर्चन करते हुए प्रतिमा का विसर्जन करते हैं।
- किसी भी पूजा के उपरांत सभी आवाहित देवताओं की शास्त्रीय विधि से पूजा-अर्चना करने के बाद उनका विसर्जन किया जाता है, किन्तु श्री लक्ष्मी और श्रीगणेश का विसर्जन नहीं किया जाता है। इसलिए श्रीगणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन करें, किन्तु उन्हें अपने निवास स्थान में श्री लक्ष्मी जी सहित रहने के लिए निमंत्रित करें।
- पूजा के उपरांत अपराध क्षमा प्रार्थना करें, सभी अतिथि व भक्तों का यथा व्यवहार स्वागत करें।
- पूजा कराने वाले ब्राह्मण को संतुष्ट कर यथा विधि पारिश्रामिक (दान) आदि दें, उन्हें प्रणाम कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर दीर्घायु, आरोग्यता, सुख, समृद्धि, धन-ऐश्वर्य आदि को बढ़ाने के योग्य बनें।
भारतीय धर्म संस्कृति में किसी कार्य की सफलता हेतु पहले मंगलाचरण या फिर पूज्य देवों के वंदना की परंपरा रही है। किसी कार्य को सुचारू रूप से निर्विघ्नपूर्वक संपन्न करने हेतु सर्वप्रथम श्रीगणेश जी की वंदना व अर्चना का विधान है। इसीलिए सनातन धर्म में सर्वप्रथम श्रीगणेश की पूजा से ही किसी कार्य की शुरुआत होती है।
जो भी भक्त भगवान गणेश का व्रत या पूजा करता है उसे मनोवांछित फल तथा श्रीगणेश प्रभु की कृपा अवश्य ही प्राप्त होती है।
चतुर्थी पर गणेश पूजन का महत्व
विघ्न विनाशक भगवान गणेश
माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी संकट या संकटा चौथ कहलाती है। इसे वक्रतुंडी चतुर्थी, माही चौथ, तिल अथवा तिलकूट चतुर्थी व्रत भी कहते हैं।
मंगलमूर्ति और प्रथम पूज्य भगवान गणेश को संकटहरण भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस चतुर्थी के दिन व्रत रखने और भगवान गणेश की पूजा करने से जहां सभी कष्ट दूर हो जाते हैं वहीं इच्छाओं और कामनाओं की पूर्ति भी होती है।
ज्योतिषियों और पंडितों का कहना है कि इस दिन तिल दान करने का महत्व होता है। इस दिन गणेशजी को तिल के लड्डुओं का भोग लगाया जाता है। शास्त्रों के मुताबिक देवी-देवताओं में सर्वोच्च स्थान रखने वाले विघ्न विनाशक भगवान गणेश की पूजा-अर्चना जो लोग नियमित रूप से करते हैं, उनकी सुख-समृद्घि में बढ़ोतरी होती है।
उज्जैन के पंडित आनंद शंकर व्यास ने बताया कि यह चतुर्थी संक्रांति के आसपास आती है। चूंकि यहीं से सभी शुभ कार्य शुरू होते हैं इसलिए गणेशजी की उपासना का भी सबसे ज्यादा महत्व है। उन्होंने कहा कि सामग्री न भी हो तो सच्चे मन से की गई किसी भी देवता की आराधना का फल अवश्य मिलता है।
मंगलमूर्ति को पंचामृत से स्नान के बाद फल, लाल फूल, अक्षत, रोली, मौलि अर्पित करना चाहिए। तिल से बनी वस्तुओं अथवा तिल-गुड़ से बने लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए। गणपति अथर्वशीर्ष के पाठ के साथ गणेश मंत्र – ‘ॐ गणेशाय नमः’ का जाप 108 बार करना चाहिए।
आचार्य रामचंद्र शर्मा वैदिक के अनुसार पुराणों में संकट चतुर्थी का विशेष महत्व बताया गया है। भगवान गणेश की अर्चना के साथ चंद्रोदय के समय अर्घ्य दिया जाता है। खासकर महिलाओं के लिए इस व्रत को उपयोगी माना गया है।
मकर संक्रांति से दिन तिल-तिल कर बढ़ता है। इसलिए इसमें तिल या उससे बनी वस्तुओं को पूजा और प्रसाद में शामिल करने का महत्व है। भूमि अथवा जमीन और तिल के दान को सबसे अहम माना गया है।
जहां देवताओं और पितरों के कार्य में तिल का उपयोग होता है वहीं हवन में भी तिल का उपयोग किया जाता है।
भाद्रमास मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी अनन्त चतुर्दशी के रूप में मनाई जाती है। इस दिन भगवान अनन्त की पूजा की जाती है। इस दिन महिलाएं सौभाग्य की रक्षा एवं सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। दस दिवसीय गणेशोत्सव की समापन भी इसी दिन होता है। इस बार अनन्त चतुर्दशी का पर्व 11 सितंबर, रविवार को है।
व्रत विधि
इस दिन व्रती महिला को सुबह व्रत के लिए संकल्प लेना चाहिए व भगवान विष्णु की पूजा करना चाहिए। भगवान विष्णु के सामने 14 ग्रंथियुक्त अनन्त सूत्र(14 गांठ युक्त धागा, जो बाजार में धागे के रूप में मिलता है) को रखकर भगवान विष्णु के साथ ही उसकी भी पूजा करनी चाहिए। पूजा में रोली, मोली, चंदन, फूल, अगरबत्ती, धूप, दीप, नैवेद्य आदि का प्रयोग करना चाहिए और प्रत्येक को समर्पित करते समय ऊँ अनन्ताय नम: नम: का जप करना चाहिए। पूजा के बाद यह प्रार्थना करें-
नमस्ते देवदेवेशे नमस्ते धरणीधर।
नमस्ते सर्वनागेंद्र नमस्ते पुरुषोत्तम।।
न्यूनातिरिक्तानि परिस्फुटानि
यानीह कर्माणि मया कृतानि।
सर्वाणि चैतानि मम क्षमस्व
प्रयाहि तुष्ट: पुनरागमाय।।
दाता च विष्णुर्भगवाननन्त:
प्रतिग्रहीता च स एव विष्णु:।
तस्मात्तवया सर्वमिदं ततं च
प्रसीद देवेश वरान् ददस्व।।
प्रार्थना के पश्चात कथा सुनें तथा रक्षासूत्र पुरुष दाएं हाथ में और महिलाएं बाएं हाथ में बांध लें। रक्षासूत्र बांधते समय इस मंत्र का जप करें-
अनन्तसंसारमहासमुद्रे मग्नान् समभ्युद्धर वासुदेव।
अनन्तरूपे विनियोजितात्मामाह्यनन्तरूपाय नमोनमस्ते।।
इसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराकर व दान देने के बाद स्वयं भोजन करें। इस दिन नमक रहित भोजन करना चाहिए।
समाप्त
ॐ श्रीकराय नमः ।
॥श्री गणेश सहस्त्रनामावली ॥
ॐ ॐ
॥श्री गणेश सहस्त्रनामावली ॥
=श्रीगणेश=
☀☀☀☀☀॥ श्री गणेश सहस्त्रनामावली ॥☀☀☀☀☀
श्री गणेश सहस्त्रनामावली
गणेश श्री गणेश सहस्त्रनामावली
गणेश
गणेश चतुर्थी
गणेश स्तुति
गणेश चालीसा
गणेश जी की आरती
गणेश जी की कथा
ऋद्धि सिद्धि
श्री गणेश सहस्त्रनामावली
ॐ गणपतये नमः ॥ ॐ गणेश्वराय नमः ॥ ॐ गणक्रीडाय नमः ॥ ॐ गणनाथाय नमः ॥
ॐ गणाधिपाय नमः ॥ ॐ एकदंष्ट्राय नमः ॥ ॐ वक्रतुण्डाय नमः ॥ ॐ गजवक्त्राय नमः ॥
ॐ मदोदराय नमः ॥ ॐ लम्बोदराय नमः ॥ ॐ धूम्रवर्णाय नमः ॥ ॐ विकटाय नमः ॥
ॐ विघ्ननायकाय नमः ॥ ॐ सुमुखाय नमः ॥ ॐ दुर्मुखाय नमः ॥ ॐ बुद्धाय नमः ॥
ॐ विघ्नराजाय नमः ॥ ॐ गजाननाय नमः ॥ ॐ भीमाय नमः ॥ ॐ प्रमोदाय नमः ॥
ॐ आनन्दाय नमः ॥ ॐ सुरानन्दाय नमः ॥ ॐ मदोत्कटाय नमः ॥ ॐ हेरम्बाय नमः ॥
ॐ शम्बराय नमः ॥ ॐ शम्भवे नमः ॥ ॐ लम्बकर्णाय नमः ॥ ॐ महाबलाय नमः ॥
ॐ नन्दनाय नमः ॥ ॐ अलम्पटाय नमः ॥ ॐ भीमाय नमः ॥ ॐ मेघनादाय नमः ॥
ॐ गणञ्जयाय नमः ॥ ॐ विनायकाय नमः ॥ ॐ विरूपाक्षाय नमः ॥ ॐ धीराय नमः ॥
ॐ शूराय नमः ॥ ॐ वरप्रदाय नमः ॥ ॐ महागणपतये नमः ॥ ॐ बुद्धिप्रियाय नमः ॥
ॐ क्षिप्रप्रसादनाय नमः ॥ ॐ रुद्रप्रियाय नमः ॥ ॐ गणाध्यक्षाय नमः ॥ ॐ उमापुत्राय नमः ॥
ॐ अघनाशनाय नमः ॥ ॐ कुमारगुरवे नमः ॥ ॐ ईशानपुत्राय नमः ॥ ॐ मूषकवाहनाय नः ॥
ॐ सिद्धिप्रदाय नमः ॥ ॐ सिद्धिपतये नमः ॥ ॐ सिद्ध्यै नमः ॥ ॐ सिद्धिविनायकाय नमः ॥
ॐ विघ्नाय नमः ॥ ॐ तुङ्गभुजाय नमः ॥ ॐ सिंहवाहनाय नमः ॥ ॐ मोहिनीप्रियाय नमः ॥
ॐ कटिंकटाय नमः ॥ ॐ राजपुत्राय नमः ॥ ॐ शकलाय नमः ॥ ॐ सम्मिताय नमः ॥
ॐ अमिताय नमः ॥ ॐ कूश्माण्डगणसम्भूताय नमः ॥ ॐ दुर्जयाय नमः ॥ ॐ धूर्जयाय नमः ॥
ॐ अजयाय नमः ॥ ॐ भूपतये नमः ॥ ॐ भुवनेशाय नमः ॥ ॐ भूतानां पतये नमः ॥
ॐ अव्ययाय नमः ॥ ॐ विश्वकर्त्रे नमः ॥ ॐ विश्वमुखाय नमः ॥ ॐ विश्वरूपाय नमः ॥
ॐ निधये नमः ॥ ॐ घृणये नमः ॥ ॐ कवये नमः ॥ ॐ कवीनामृषभाय नमः ॥
ॐ ब्रह्मण्याय नमः ॥ ॐ ब्रह्मणस्पतये नमः ॥ ॐ ज्येष्ठराजाय नमः ॥ ॐ निधिपतये नमः ॥
ॐ निधिप्रियपतिप्रियाय नमः ॥ ॐ हिरण्मयपुरान्तस्थाय नमः ॥ ॐ सूर्यमण्डलमध्यगाय नमः ॥
ॐ कराहतिध्वस्तसिन्धुसलिलाय नमः ॥ ॐ पूषदन्तभृते नमः ॥ ॐ उमाङ्गकेळिकुतुकिने नमः ॥
ॐ मुक्तिदाय नमः ॥ ॐ कुलपालकाय नमः ॥ ॐ किरीटिने नमः ॥ ॐ कुण्डलिने नमः ॥
ॐ हारिणे नमः ॥ ॐ वनमालिने नमः ॥ ॐ मनोमयाय नमः ॥ ॐ वैमुख्यहतदृश्यश्रियै नमः ॥
ॐ पादाहत्याजितक्षितये नमः ॥ ॐ सद्योजाताय नमः ॥ ॐ स्वर्णभुजाय नमः ॥ ॐ मेखलिन नमः ॥
ॐ दुर्निमित्तहृते नमः ॥ ॐ दुस्स्वप्नहृते नमः ॥ ॐ प्रहसनाय नमः ॥ ॐ गुणिने नमः ॥
ॐ नादप्रतिष्ठिताय नमः ॥ ॐ सुरूपाय नमः ॥ ॐ सर्वनेत्राधिवासाय नमः ॥ ॐ वीरासनाश्रयाय नमः ॥
ॐ पीताम्बराय नमः ॥ ॐ खड्गधराय नमः ॥ ॐ खण्डेन्दुकृतशेखराय नमः ॥ ॐ चित्राङ्कश्यामदशनाय नमः ॥
ॐ फालचन्द्राय नमः ॥ ॐ चतुर्भुजाय नमः ॥ ॐ योगाधिपाय नमः ॥ ॐ तारकस्थाय नमः ॥
ॐ पुरुषाय नमः ॥ ॐ गजकर्णकाय नमः ॥ ॐ गणाधिराजाय नमः ॥ ॐ विजयस्थिराय नमः ॥
ॐ गणपतये नमः ॥ ॐ ध्वजिने नमः ॥ ॐ देवदेवाय नमः ॥ ॐ स्मरप्राणदीपकाय नमः ॥
ॐ वायुकीलकाय नमः ॥ ॐ विपश्चिद्वरदाय नमः ॥ ॐ नादाय नमः ॥ ॐ नादभिन्नवलाहकाय नमः ॥
ॐ वराहवदनाय नमः ॥ ॐ मृत्युञ्जयाय नमः ॥ ॐ व्याघ्राजिनाम्बराय नमः ॥ ॐ इच्छाशक्तिधराय नमः ॥
ॐ देवत्रात्रे नमः ॥ ॐ दैत्यविमर्दनाय नमः ॥ ॐ शम्भुवक्त्रोद्भवाय नमः ॥ ॐ शम्भुकोपघ्ने नमः ॥
ॐ शम्भुहास्यभुवे नमः ॥ ॐ शम्भुतेजसे नमः ॥ ॐ शिवाशोकहारिणे नमः ॥ ॐ गौरीसुखावहाय नमः ॥
ॐ उमाङ्गमलजाय नमः ॥ ॐ गौरीतेजोभुवे नमः ॥ ॐ स्वर्धुनीभवाय नमः ॥ ॐ यज्ञकायाय नमः ॥
ॐ महानादाय नमः ॥ ॐ गिरिवर्ष्मणे नमः ॥ ॐ शुभाननाय नमः ॥ ॐ सर्वात्मने नमः ॥
ॐ सर्वदेवात्मने नमः ॥ ॐ ब्रह्ममूर्ध्ने नमः ॥ ॐ ककुप्छ्रुतये नमः ॥ ॐ ब्रह्माण्डकुम्भाय नमः ॥
ॐ चिद्व्योमफालाय नमः ॥ ॐ सत्यशिरोरुहाय नमः ॥ ॐ जगज्जन्मलयोन्मेषनिमेषाय नमः ॥ ॐ अग्न्यर्कसोमदृशे नमः ॥
ॐ गिरीन्द्रैकरदाय नमः ॥ ॐ धर्माय नमः ॥ ॐ धर्मिष्ठाय नमः ॥ ॐ सामबृंहिताय नमः ॥
ॐ ग्रहर्क्षदशनाय नमः ॥ ॐ वाणीजिह्वाय नमः ॥ ॐ वासवनासिकाय नमः ॥ ॐ कुलाचलांसाय नमः ॥
ॐ सोमार्कघण्टाय नमः ॥ ॐ रुद्रशिरोधराय नमः ॥ ॐ नदीनदभुजाय नमः ॥ ॐ सर्पाङ्गुळिकाय नमः ॥
ॐ तारकानखाय नमः ॥ ॐ भ्रूमध्यसंस्थतकराय नमः ॥ ॐ ब्रह्मविद्यामदोत्कटाय नमः ॥ ॐ व्योमनाभाय नमः ॥
ॐ श्रीहृदयाय नमः ॥ ॐ मेरुपृष्ठाय नमः ॥ ॐ अर्णवोदराय नमः ॥ ॐ कुक्षिस्थयक्षगन्धर्वरक्षः किन्नरमानुषाय नमः ॥
समाप्त
ॐ श्रीकराय नमः ।
॥ शक्तिशाली गणेश मन्त्र ॥
ॐ ॐ
॥ शक्तिशाली गणेश मन्त्र ॥
=श्रीगणेश=
☀☀☀☀☀॥ शक्तिशाली गणेश मन्त्र ॥☀☀☀☀☀
शनिवार को इन आसान गणेश मंत्रों के ध्यान से होती है शनि कृपा
व्यावहारिक रूप से संस्कार, स्वभाव या संगत के प्रभाव से नियत कर्म, विचार, व्यवहार भी इंसान के लिए वक्त व हालात मुश्किल बनाते हैं। चाहे फिर वह शरीर, मन या धन की पीड़ाएं क्यों न हो? इसलिए अच्छाई ही सुख का आधार बताई गई है। जिसे अपनानें में व्यर्थ तर्क व विचारों में नहीं पडऩा चाहिए।
वहीं इसी बात का धार्मिक स्वरूप जानें तो शास्त्रों के मुताबिक सूर्य पुत्र शनि कर्मां के मुताबिक जगत के सभी जीवों को दण्ड देते हैं। हालांकि उनकी सजा प्रताडऩा के रूप में समझी जाती है, बल्कि असल में यह दोष निवृत्ति व आत्म चिंतन का काल होता है।
बहरहाल, धार्मिक दृष्टि से शनि पीड़ा कुण्डली में बुरे ग्रह योग या शनि दशा या दोष से क्यों न हो? उसके शमन के लिए विशेष देवताओं की उपासना और काल का भी महत्व बताया गया है। इनमें भगवान श्री गणेश भी एक हैं।
मान्यताओं में शनि, शिव भक्त व श्री गणेश भी शिव पुत्र हैं। वहीं पौराणिक कथा के मुताबिक शनि की क्रूर नजरों से गणेश के सिर छेदन के बाद शनि, मां पार्वती द्वारा शापग्रस्त हुए, तब शनि ने शापमुक्ति के लिये भगवान विष्णु द्वारा बताई गणेश भक्ति की। यही कारण है कि गणेश पूजा शनि दोष का अंत करने वाली भी मानी गई है।
शनिवार शनि भक्ति का दिन है। यहां जाने श्री गणेश के कु छ छोटे-से मंत्र जिनका शनि मंदिर या गणेश मंदिर में बैठकर स्मरण करना परेशानियों और कष्ट-पीड़ा से मुक्त करता है –
- शनिवार को शनिदेव को सरसों तेल, काले तिल व सुगंधित फूल, काला वस्त्र तेल के पकवान का भोग चढ़ाएं। श्री गणेश को सिंदूर, चंदन, फूल व मोदक का भोग लगाकर धूप व तिल के तेल का दीप जलाएं व भगवान गणेश के इन मंत्रों का ध्यान करें या रुद्राक्ष माला से जप कर शनि व गणेश की आरती सुख की कामना से करें –
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं गणेश्वराय ब्रह्मस्वरूपाय चारवे।
सर्वसिद्धिप्रदेशाय विघ्रेशाय नमो नम:।।
या
ॐ क्लीं ह्रीं विघ्रनाशाय नम:। इस मंत्र का स्मरण करें।
- इस मंत्र स्मरण के बाद शनि व गणेश की आरती करें व दोनों देवताओं कृपा की कामना करें।
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बोलें मात्र 1 अक्षर के गणेश मंत्र..आएगा सफलताओं का सैलाब
भगवान गणेश आदिदेव माने जाते हैं। इसलिए श्री गणेश परब्रह्म के पांच अलग-अलग रूपों में एक व प्रथम पूज्य भी हैं। हर शास्त्र ईश्वर की इन शक्तियों के कण-कण में बसे होने का संदेश देकर देवत्व भाव को अपनाने की सीख देता है। किंतु सांसारिक बंधन से स्वार्थ या दोषों के वशीभूत होकर हर जीव भटककर कलह और संताप पाता है।
ऐसी ही परेशानियों या मुश्किलों को सामना हम हर रोज घर या बाहर उठते-बैठते करते हैं। जिनसे छुटकारें के लिए अनेक तरीके अपनाते हैं। इनमें शास्त्रों में परब्रह्म स्वरूप भगवान गणेश के विराट रूप व शक्ति द्वारा जीवन को सफल व कलहमुक्त बनाने के लिए गणेश के बीज मंत्रों के स्मरण का भी महत्व है, जो कार्य व मनोरथसिद्धि में शक्तिशाली और असरदार भी माने गए हैं।
खास बात यह है कि पूजा-उपासना के अलावा अचानक मुसीबतों के वक्त भी मन ही मन इनका स्मरण संकटमोचन व कामयाबी का अचूक उपाय है। जानते हैं कौन-से ये छोटे किंतु प्रभावी गणेश एकाक्षरी बीज मंत्र –
- गं
- ग्लौं
और - गौं
शास्त्रों के मुताबिक ये एकाक्षरी मंत्र अन्य गणेश नाम मंत्रों के साथ लेने पर बहुत ही मंगलकारी व मनोरथसिद्ध करने वाले हैं।
अगर आपकी धर्म और उपासना से जुड़ी कोई जिज्ञासा हो या कोई जानकारी चाहते हैं तो इस आर्टिकल पर टिप्पणी के साथ नीचे कमेंट बाक्स के जरिए हमें भेजें।
समाप्त
। ॐ बुद्धिप्रियाय नमः ।
समाप्त
ॐ श्रीकराय नमः ।
॥भगवान गणेश को सरलता से प्रसन्न कैसे करें ॥
ॐ ॐ
॥ श्रकैसे करें गणेश पूजन जब कोई मंत्र ना आता हो ॥
=श्रीगणेश=
बुधवार को गणेश जी की पूजा है अतिलाभकारी
हिन्दू संस्कृति और पूजा में भगवान श्रीगणेश जी को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है। प्रत्येक शुभ कार्य में सबसे पहले भगवान गणेश की ही पूजा की जाती अनिवार्य बताई गयी है। देवता भी अपने कार्यों की बिना किसी विघ्न से पूरा करने के लिए गणेश जी की अर्चना सबसे पहले करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि देवगणों ने स्वयं उनकी अग्रपूजा का विधान बनाया है। शास्त्रों में एक बार जिक्र आता है कि भगवान शंकर त्रिपुरासुर का वध करने में जब असफल हुए, तब उन्होंने गंभीरतापूर्वक विचार किया कि आखिर उनके कार्य में विघ्न क्यों पड़ा? तब महादेव को ज्ञात हुआ कि वे गणेशजी की अर्चना किए बगैर त्रिपुरासुर से युद्ध करने चले गए थे। इसके बाद शिवजी ने गणेशजी का पूजन करके उन्हें लड्डुओं का भोग लगाया और दोबारा त्रिपुरासुर पर प्रहार किया, तब उनका मनोरथ पूर्ण हुआ।
सनातन एवं हिन्दू शास्त्रों में भगवान गणेश जी को, विघ्नहर्ता अर्थात सभी तरह की परेशानियों को खत्म करने वाला बताया गया है। पुराणों में गणेशजी की भक्ति शनि सहित सारे ग्रहदोष दूर करने वाली भी बताई गई हैं। हर बुधवार के शुभ दिन गणेशजी की उपासना से व्यक्ति का सुख-सौभाग्य बढ़ता है और सभी तरह की रुकावटे दूर होती हैं।
गणेश भगवान की पूजा विधि
प्रातः काल स्नान ध्यान आदि से सुद्ध होकर सर्व प्रथम ताम्र पत्र के श्री गणेश यन्त्र को साफ़ मिट्टी, नमक, निम्बू से अच्छे से साफ़ किया जाए। पूजा स्थल पर पूर्व या उत्तर दिशा की और मुख कर के आसान पर विराजमान हो कर सामने श्री गणेश यन्त्र की स्थापना करें।
शुद्ध आसन में बैठकर सभी पूजन सामग्री को एकत्रित कर पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली लाल, चंदन, मोदक आदि गणेश भगवान को समर्पित कर, इनकी आरती की जाती है।
अंत में भगवान गणेश जी का स्मरण कर ॐ गं गणपतये नमः का 108 नाम मंत्र का जाप करना चाहिए।
बुधवार को यहां बताए जा रहे ये छोटे-छोटे उपाय करने से व्यक्ति को लाभ प्राप्त होता है–
बिगड़े काम बनाने के लिए बुधवार को गणेश मंत्र का स्मरण करें-
त्रयीमयायाखिलबुद्धिदात्रे बुद्धिप्रदीपाय सुराधिपाय। नित्याय सत्याय च नित्यबुद्धि नित्यं निरीहाय नमोस्तु नित्यम्।
अर्थात भगवान गणेश आप सभी बुद्धियों को देने वाले, बुद्धि को जगाने वाले और देवताओं के भी ईश्वर हैं। आप ही सत्य और नित्य बोधस्वरूप हैं। आपको मैं सदा नमन करता हूं।
कम से कम 21 बार इस मंत्र का जप जरुर होना चाहिए।
ग्रह दोष और शत्रुओं से बचाव के लिए-
गणपूज्यो वक्रतुण्ड एकदंष्ट्री त्रियम्बक:।
नीलग्रीवो लम्बोदरो विकटो विघ्रराजक:।।
धूम्रवर्णों भालचन्द्रो दशमस्तु विनायक:।
गणपर्तिहस्तिमुखो द्वादशारे यजेद्गणम्।।
इसमें भगवान गणेश जी के बारह नामों का स्मरण किया गया है। इन नामों का जप अगर मंदिर में बैठकर किया जाए तो यह उत्तम बताया जाता है। जब पूरी पूजा विधि हो जाए तो कम से कम 11 बार इन नामों का जप करना शुभ होता है।
परिवार और व्यक्ति के दुःख दूर करते हैं यह सरल उपाय
- बुधवार के दिन घर में सफेद रंग के गणपति की स्थापना करने से समस्त प्रकार की तंत्र शक्ति का नाश होता है।
- धन प्राप्ति के लिए बुधवार के दिन श्री गणेश को घी और गुड़ का भोग लगाएं। थोड़ी देर बाद घी व गुड़ गाय को खिला दें। ये उपाय करने से धन संबंधी समस्या का निदान हो जाता है।
- परिवार में कलह कलेश हो तो बुधवार के दिन दूर्वा के गणेश जी की प्रतिकात्मक मूर्ति बनवाएं। इसे अपने घर के देवालय में स्थापित करें और प्रतिदिन इसकी विधि-विधान से पूजा करें।
- घर के मुख्य दरवाजे पर गणेशजी की प्रतिमा लगाने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। कोई भी नकारात्मक शक्ति घर में प्रवेश नहीं कर पाती है।
समाप्त
। ॐ बुद्धिप्रियाय नमः ।
समाप्त
ॐ श्रीकराय नमः ।
॥ गणेश गायत्री मंत्र ॥
ॐ ॐ
॥ गणेश गायत्री मंत्र ॥
=श्रीगणेश=
ॐ एकदन्ताय विद्धमहे, वक्रतुण्डाय धीमहि,
तन्नो दन्ति प्रचोदयात्॥
यह भगवान श्री गणेश का गायत्री मंत्र है इसमें कहा गया है कि हम उस परमात्मा स्वरुप एकदंत यानि एक दांत वाले भगवान श्री गणेश, जो कि सर्वव्यापी हैं,
जिनकी सूंड हाथी के सूंड की तरह मुड़ी हुई है उनसे प्रार्थना करते हैं एवं सद्बुद्धि की कामना करते हैं। हम भगवान श्री गणेश को नमन करते हैं
एवं प्रार्थना करते हैं कि वे अपने आशीर्वाद से हमारे मन-मस्तिष्क से अज्ञान के अंधकार को मिटाकर ज्ञान से प्रकाशित करें।
समाप्त
ॐ श्रीकराय नमः ।
॥ गणेश शुभ लाभ मंत्र ॥
ॐ ॐ
॥ गणेश शुभ लाभ मंत्र ॥
=श्रीगणेश=
ॐ श्रीं गं सौभाग्य गणपतये
वर्वर्द सर्वजन्म में वषमान्य नमः॥
भगवान श्री गणेश के इस मंत्र में ॐ, श्रीं, गं बीजमंत्र हैं जो परमपिता परमात्मा, मां लक्ष्मी, और भगवान श्री गणेश के बीज मंत्र हैं।
इस मंत्र का अर्थ है हे भगवान श्री गणेश जी आपकी कृपा और आशीर्वाद हमें हर जन्म में मिलता रहे। आपके आशीर्वाद से एक स्वस्थ एवं खुशहाल जीवन व्यतीत करें।
हमें सौभाग्य प्रदान कर हमारी हर बाधा को दूर करें प्रभु।
समाप्त
ॐ श्रीकराय नमः ।
॥ वक्रतुण्ड गणेश मंत्र ॥
ॐ ॐ
॥ वक्रतुण्ड गणेश मंत्र ॥
=श्रीगणेश=
वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्य समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
वक्रतुंड का तात्पर्य है टेढी सूँड वाले, इस प्रकार इस मंत्र में कहा गया है हे टेढी सूँड वाले, विशाल देह धारण करने वाले,
करोड़ों सूर्यों के समान दीदीप्यमान भगवान श्री गणेश मुझ अपनी कृपा दृष्टि बनायें रखना ताकि मेरे सारे कार्य बिना किसी बाधा के संपन्न हों।
मंगलदायक भगवान गणेश भगवान शिव व माता पार्वती के पुत्र हैं।
इन्हें बुद्धि एवं विवेक का प्रतीक माना जाता है।
ऋद्धि और सिद्धि इनकी पत्नियां हैं, ऋद्धि से लाभ एवं सिद्धि से शुभ हुए यानि लाभ और शुभ ये इनके दो पुत्र माने जाते हैं। हर शुभ कार्य में भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है।
समाप्त
। ॐ बुद्धिप्रियाय नमः ।
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- श्री हनुमान चालीसा ( अर्थ सहित )
- श्री बजरंग बाण का पाठ
- संपूर्ण महामृत्युंजय मंत्र (अर्थ सहित)
Final Words:- आशा करता हू कि ये सभी कहांनिया Aarti Ganesh Ji ki आपको जरूर पसंद आई होगी । और ये सभी कहानियां और को बहुत ही प्रेरित भी की होगा । अगर आप ऐसे ही प्रेरित कथाएँ प्रतिदिन पाना चाहते हैं तो आप हमारे इस वेबसाइट को जरूर सब्सक्राइब करले जिससे कि आप रोजाना नई काहानियों को पढ़ सके और आपको यह Post कैसी लगी हमें Comment Box में Comment करके जरूर बताए धन्यवाद।