Aatma ki kahaniya | आत्माओं भूत प्रेतो की सच्ची काहांनियाँ

आत्माओ को कैद

Aatma ki kahaniya:-आज हम आपको ऐसे टापू के बारे में बताने जा रहे है जो अपने विशेष आकर्षण के कारण पुरे विश्व में मशहूर है | यह टापू मेक्सिको में स्थित है जहा पेड़ पर लटकी अजीबोगरीब शक्लो वाली गुडियों को देखकर आपके पांवो तले जमीन खिसक जायेगी | यह टापू आपको किसी हॉरर फिल्म के लिए तैयार किया हुआ सेट जैसा लगेगा लेकिन इस टापू के पीछे एक गहरी सच्चाई है |क्या है इस टापू की हकीकत और गुडियों को राज , आइये विस्तार से पढ़े |

अमेरिका के मेक्सिको सिटी से 17 किमी दक्षिण में एक छोटा सा टापू है जिसे La Isla de la Munecasकहा जाता है | लेकिन गुडियों के वाकये के बारे में सुनकर लोग इसे केवल The Island Of dolls के नाम से ही जानते है | इस टापू पर अनेको टूटी फूटी और डरावनी गुड़ियाए आपको पेड़ो पर टंगी मिलेगी | 1990 में जब लोगो की नजर में ये टापू आया तो मेक्सिको सरकार ने इस जगह की मरम्मत कराना शुरू क्र दिया और पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया | लेकिन आप लोगो के मन में अभी भी यही संदेह चल रहा होगा कि इस वीरान टापू पर इतनी गुडिया और वो भी पेड़ पर लटकी हुई कैसे मिली |

इस रहस्य के पीछे भी एक कहानी है आइये पढ़े क्या है ये कहानी | आज से कई साल पहले जूलियन नाम का व्यक्ति शहर से दूर एकांत जीवन बिताने के लिए इस टापू पर आया था | उस शख्स के रहने के कुछ दिनों के बाद ही Xochimilco canals में डूबकर एक लडकी की मौत हो जाती है जो वहा परिवार के साथ घुमने आयी थी | तब से उस लडकी की आत्मा उसे परेशान करने लगी |इस घटना के कुछ दिनों बाद लडकी की मौत वाली जगह पर ही उनको तैरती हुई गुडिया मिलती है | तब उस गुडिया को देखकर सोचा कि कही उस लडकी की आत्मा उसे परेशान ना करने लगे इसके उपाय के लिए उसने वो गुडिया के गले में फंदा डालकर पेड़ पर लटका दिया | उसका विश्वास था कि ऐसा करने से बुरी आत्मा उसके करीब नहीं आ पायेगी |

धीरे धीरे जब कई गुड़ियाए तैरती हुई इस टापू पर आने लगी तो उन्होंने इन सबको जमा कर पेड़ पर लटकाता गया और ये संख्या धीरे धीरे बढ़ती गयी | जुलियन की मौत भी, 2001 में उसी जगह जहा गुड़ियाए मिलती थी, वहा पर रहस्यमयी तरीके से हुई | अब ये टापू एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो गया जहा सैकड़ो लोग यहा पेड़ पर लटकी डरावनी गुडियों को देखने के लिए आते है | रात में ये टापू वीरान पड़ा रहता है क्यूंकि रात को यहा केवल गुडियो का राज होता है।

आखिर मैं बचा कैसे?

आज एक ऐसी घटना का वर्णन सुनाने जा रहा हूँ जो भूत-प्रेत से संबंधित तो नहीं है पर है चमत्कारिक। यह घटना सुनाने के लिए मैंने कई बार लेखनी उठाई पर पता नहीं क्यों कुछ लिख नहीं पाता था..पर आज पता नहीं क्या चमत्कार हुआ कि अचानक मूड बना और मैंने इस घटना को लेखनीबद्ध कर लिया।

इस घटना की सत्यता पर उंगली नहीं उठाई जा सकती क्योंकि लेखक (मैं) स्वयं इस घटना के घटने का केंद्र था। खैर यह मैं कह रहा हूँ..हो सकता है कि आपके तर्क कुछ और हों।।….आइए….सुनते हैं…इस चमत्कारिक घटना को…..

बात 3-4 साल पहले की है जब मैं मुंबई में एक संस्थान में शोध सहायक (रीसर्च एसोसियेट) के रूप में कार्यरत था। हमारे परम मित्र राणेजी के पास एक मारूती 800 थी। हमारे 2-3 मित्र इस पर अपना हाथ साफ करते रहते थे। मुझे भी चारपहिया चलाने का शौक जगा और एकदिन मैं अपने एक मित्र दीपकजी (जो चारपहिया चलाने में पारंगत हैं) के साथ स्टेयरिंग संभाल ली। शनिवार (शनि व रवि को इस संस्थान में अवकाश रहता है) का दिन था और दोपहर का समय।

सड़क पर इक्के-दुक्के लोग या वाहन ही आ जा रहे थे। मैं मारूती चला रहा था और मेरे बगल में बैठे मेरे मित्र दीपकजी मेरा मार्गदर्शन कर रहे थे। इससे पहले भी मैंने थोड़ी-बहुत चारपहिया की स्टेयरिंग घुमाई थी। पर उस दिन मुझे बहुत आनंद आ रहा था क्योंकि मैं काफी अच्छी तरह से वाहन को नियंत्रण में रखकर कैंपस की सड़कों पर दौड़ा रहा था। अरे 1-2 घंटे दौड़ाने के बाद तो मैं अपने आप को मास्टर समझने लगा और मित्र दीपकजी की बातों को अनसुना करने लगा।

हम मारूती को दौड़ाते हुए हास्टल 8 के आगे के मोड़ से मोड़कर हास्टल 5 की ओर बढ़ें। पर यह क्या सड़क पर लगभग मारूती के 20 मीटर आगे दो छात्र बात करते हुए मस्ती में बढ़े जा रहे थे। दीपकजी ने मुझे ब्रेक लेकर गाड़ी को धीमे करने के लिए कहा…पर यह क्या मेरा पैर ब्रेक पर न जाकर एक्सीलेटर पर पड़ा और गाड़ी का स्पीड 40 के लगभग हो गया। मैं बार-बार रोकने की कोशिश कर रहा हूँ पर स्पीड बढ़ते जा रही है, मैं थोड़ा घबराया पर दीपकजी तो पसीने-पसीने हो गए थे। आगे दो बच्चों की जान का खतरा मुझे सताए जा रहा था…उनको बचाने के चक्कर में लगा कि तेज गाड़ी अब सड़क किनारे के एक आम के पेड़ से टकरा जाएगी और हम दोनों की इहलीला समाप्त हो जाएगी।

इस पूरी घटना को घटने में लगभग 1 से 2 मिनट का समय लगा होगा। मैंने बजरंगबली को याद किया और आँखें बंद कर ली। दीपकजी की मानो, काटो तो खून नहीं जैसी हालत हो गई थी। प्रभु की मर्जी या आप कहेंगे भाग्य ने साथ दिया….पेंड़ से लगभग एक फुट पहले कार का एक पहिया सड़क किनारे बने नाले में गया और इसके बाद उसी साइड का पीछे का पहिया भी। वे दोनों छात्र पेड़ से एक फुट आगे निकल चुके थे। पता नहीं क्यों मुझे हंसी छूट गई और अब मैंने अपनी आँखें भी खोल ली थीं। देखते ही देखते कार ने कल्टी (उलट गई) मार दी।

हुआ यूं कि एक साइड के दोनों पहियों के नाले में जाते ही कार का दूसरी तरफ का भाग भी पूरी तरह से ऊपर उठा और दो बार उटल कर नाले के उस पार चला गया। नाले के उस पार जाने के बाद भी स्टेयरिंग वाला भाग (दोनों पहिए) ऊपर हो गए थे। मुझे कहीं खरोंच भी नहीं आई थी और अभी कुछ लोग दौंड़ कर आते उससे पहले ही मैं मुस्कुराते हुए, कूदकर अपने तरफ का दरवाजा खोलकर बाहर आ गया और दीपकजी को भी हाथ देकर बाहर निकाल लिया। अब तो वहाँ लगभग 20-25 लोग भी एकत्र हो गए थे। मारूती को सीधा करके सड़क पर लाया गया। भीड़ बढ़ती गई और जिन लोगों ने भी इस घटना को देखा था वे सकते में थे…हम दोनों को सही-सलामत देखकर। इसका मतलब यह नहीं कि वे हम लोगों का अहित चाहते थे….पर जिस प्रकार यह घटना घटी वह विस्मय करनेवाली थी।

लोगों के सहानुभूतिपूर्ण प्रश्नों से बचने के लिए मैंने दीपकजी से तुरंत गाड़ी चालू करने के लिए कहा और गाड़ी चालू भी हो गई। फिर हम दोनों बैठकर देवी मंदिर (कैंपस में ही) गए। वहाँ माँ को धन्यवाद देने के साथ ही लगभग 30 मिनट तक उसकी चरणों में बैठे रहे। फिर कैंपस से बाहर निकले और गाड़ी में थोड़ा-बहुत डेंटिंग-पेंटिंग कराने के बाद उसके मालिक यानी राणेजी को सौंप दिए।।

दीपकजी के घुटने में थोड़ी चोट लगी थी पर 2-3 बार सेंकाई के बाद ठीक हो गई। पर जिस-जिसने उस घटना को देखा था…वे लोग जब भी मुझसे मिलते थे या हैं..उस घटना का जरूर जिक्र यह कहते हुए करते हैं कि वास्तव में कोई दैवीय शक्ति ने ही हमें बचाया था।

आज भी जब दीपकजी मिलते हैं और इस घटना की चर्चा होती है तो मुझे तो हँसी आ जाती है पर आज भी दीपकजी उदास हो जाते हैं और कहते हैं कि वास्तव में किसी ईश्वरी चमत्कार ने हम लोगों को बचा लिया।

और वह भूत बनकर लोगों को सताने लगा

पिछली कहानी में हमने देखा कि किस प्रकार आधा दर्जन बुड़ुआओं (भूतों) ने मिलकर एक पंडीजी को गड्ढे में धाँस दिया था और उनको धाँसने में जिस बुड़ुआ ने सबसे अधिक अपने बल और बुद्धि का प्रयोग किया था उसका नाम गुलाब था। मैंने पिछली कहानी में यह भी बता दिया था की जो प्राणी पानी में डूबकर मरता है वह बुड़ुआ (एक प्रकार का भूत) बन जाता है।

अब आइए 40-50 साल पुरानी इस कहानी के माध्यम से यह जानने की कोशिश करते हैं कि गुलाब कौन था और किस प्रकार वह बुड़ुआ (भूत) बन गया था।

स्वर्गीय (स्वर्गीय कहना उचित प्रतीत नहीं हो रहा है क्योंकि अगर गुलाब स्वर्गीय हो गए तो फिर बुड़ुआ बनकर लोगों को सता क्यों रहे हैं- खैर भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।) गुलाब हमारे गाँव के ही रहने वाले थे और जब उन्होंने अपने इस क्षणभंगुर शरीर का त्याग किया उस समय उनकी उम्र लगभग 9-10 वर्ष रही होगी। वे बहुत ही कर्मठी लड़के थे। पढ़ने में तो बहुत कम रूचि रखते थे पर घर के कामों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे।

चउओं (मवेशियों) को चारा देने से लेकर उनको चराने, नहलाने, गोबर-गोहथारि आदि करने का काम वे बखूबी किया करते थे। वे खेती-किसानी में भी अपने घरवालों का हाथ बँटाते थे। उनका घर एक बड़े पोखरे के किनारे था। यह पोखरा गरमी में भी सूखता नहीं था और जब भी गुलाब को मौका मिलता इस पोखरे में डुबकी भी लगा आते। दरवाजे पर पोखरा होने का फायदा गुलाब ने छोटी ही उम्र में उठा लिया था और एक कुशल तैराक बन गए थे। आज गाँववालों ने इस पोखरे को भरकर घर-खलिहान आदि बना लिया है। Aatma ki kahaniya

एकबार की बात है की असह्य गरमी पड़ रही थी और सूर्यदेव अपने असली रूप में तप रहे थे। ऐसा लग रहा था कि वे पूरी धरती को तपाकर लाल कर देंगे। ऐसे दिन में खर-खर दुपहरिया (ठीक दोपहर) का समय था और गुलाब नाँद में सानी-पानी करने के बाद भैंस को खूँटे से खोलकर नाँद पर बाँधने के लिए आगे बढ़े। भैंस भी अत्यधिक गरमी से परेशान थी।

भैंस का पगहा खोलते समय गुलाब ने बचपने (बच्चा तो थे ही) में भैंस का पगहा अपने हाथ में लपेट लिए। (इसको बचपना इसलिए कह रहा हूँ कि लोग किसी भी मवेशी का पगहा हाथ में लपेटकर नहीं रखते हैं क्योंकि अगर वह मवेशी किसी कारणबस भागना शुरुकर दिया तो उस व्यक्ति के जान पर बन आती है और वह भी उसके साथ घसीटते हुए खींचा चला जाता है क्योंकि पगहा हाथ में कस जाता है और हड़बड़ी में उसमें से हाथ निकालना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। ) जब गुलाब भैंस को लेकर नाँद की तरफ बढ़े तभी गरमी से बेहाल भैंस पोखरे की ओर भागी।

गुलाब भैंस के अचानक पोखरे की ओर भागने से संभल नहीं सके और वे भी उसके साथ तेजी में खींचे चले गए। भैंस पोखरे के बीचोंबीच में पहुँचकर लगी खूब बोह (डूबने) लेने। चूँकि पोखरे के बीचोंबीच में गुलाब के तीन पोरसा (उनकी तंबाई के तिगुना) पानी था और बार-बार भैंस के बोह लेने से उन्हें साँस लेने में परेशानी होने लगी और वे उसी में डूब गए। हाथ बँधा और घबराए हुए होने की वजह से उनका तैरना भी काम नहीं आया। Aatma ki kahaniya

2-3 घंटे तक भैंस पानी में बोह लेती रही और यह अभाग्य ही कहा जाएगा कि उस समय किसी और का ध्यान उस पोखरे की ओर नहीं गया। उनके घरवाले भी निश्चिंत थे क्योंकि ऐसी घटना का किसी को अंदेशा नहीं था। 2-3 घंटे के बाद जब भैंस को गरमी से पूरी तरह से राहत मिल गई तो वह गुलाब की लाश को खिंचते हुए पोखरे से बाहर आने लगी। जब भैंस लगभग पोखरे के किनारे पहुँच गई तो किसा व्यक्ति का ध्यान भैंस की ओर गया और वह चिल्लाना शुरु किया। उस व्यक्ति की चिल्लाहट सुनकर आस-पास के बहुत सारे लोग जमा हो गए। पर यह जानकर वहाँ शोक पसर गया कि कर्मठी गुलाब अब नहीं रहा। भैंस ने अपनी गरमी शांत करने के लिए एक निर्बोध बालक को मौत के मुँह में भेज दिया था। Aatma ki kahaniya

इस घटना को घटे जब लगभग 5-6 साल बीत गए तो लोगों को उस पोखरे में बुड़ुवे (भूत) का एहसास होने लगा। गाँव में यह बात तेजी से फैल गई कि अब गुलाब जवान हो गया है और लोगों पर हमला भी करने लगा है। आज वह पोखरा समतल हो गया है, उसपर घर-खलिहान आदि बन गए हैं पर जबतक उसमें पानी था तबतक गुलाब उस पोखरे में अकेले नहानेवाले कई लोगों पर हमला कर चुका था। एक बार तो वह एक आदमी को खींचते हुए पानी के अंदर भी लेकर चला गया था पर संयोग से किसी महिला की नजर उसपर पड़ गई और उसकी चिल्लाहट सुनकर कुछ लोगों ने उस व्यक्ति की जान बचाई। Aatma ki kahaniya

Aatma ki kahaniya (आवाजों का रहस्य)

वैसे मै भूत प्रेतों में विश्वास नहीं करता हु लेकिन उस दिन जो मेरे साथ हुआ उसको देखकर मुझे इस किस्से को आपके समक्ष रखना चाहता हु | एक रात वहा पर हम परिवार के पांच सदस्य मै , मेरी दादी , चाचा ,चाची और मेरा चचेरा भाई थे और मै सोफे पे सो रहा था और दादी से बाते कर रहा था और चाचा ,चाची और मेरा चचेरा भाई उपरी माले पर बने रूम में सो रहे थे | रात के 10:30 बजे थे तभी मैंने अचानक देखा कि किसी ने गैलरी की बिजली बंद कर दी |

जिस रूम में हम बैठे थे वो गैलरी से थोडा दूर था और मुझे वहा से गैलरी में कुछ नहीं दिख रहा था | यह पक्का करने के लिए मैंने अपने चचेरे भाई आकाशको आवाज़ दी और दुसरी तरफ मुझे हां की आवाज़ सुनाई दी | मै चौंक गया कि वो वहा कैसे पहुच गया क्यूंकि उस गैलरी तक सिर्फ हमारे रूम से ही जाने का रास्ता है | मैंने फिर से तेज आवाज में उसका नाम पुकारा और इस बार भी वोही आवाज़ दुगुनी तेज सुनाई दे रही थी | Aatma ki kahaniya

जब मैंने इसे बार बार सूना तो मेने बिना डरे उस अंधेरी गैलरी में जाने की सोची और यह देखकर हक्का बक्का रह गया कि वहा कोई भी मौजूद नहीं था | अब मुझे थोडा डर लगने लगा | मै जल्दी से वहा से भागा और मेरे कमरे से होते हुए आकाश के कमरे में गया और देखा कि वो तो सो रहा था | मैंने उसी समय उसे जगाया और गैलरी वाली घटना बताई | आकाश ने कहा कि मै तो सो रहा था और मै नीचे तो आया ही नहीं मै यह सब सुनकर डर गया कि यह सब कैसे हो गया ?? क्यूंकि कोई चोर भी हमारे कमरे में घुसे बिना उस गैलरी तक नहीं पहुच सकता | मैंने सोचा ये सब मेरे साथ ही हुआ लेकिन अगले दिन चाचा ने बताया कि उन्हें भी कभी आवाज़े सुनाई देती है लेकिन वो ध्यान नहीं देते है | कुछ महीनो बाद उन्होंने भी वो घर बेचकर दूसरा नया घर ले लिया |

Aatma ki kahaniya (बाड़ी वाला भूत)

राजस्थान के एक गाँव अर्जुनसर से लगभग आधा किलोमीटर पर एक बहुत बड़ा बगीचा है जिसको हमारे गाँववाले बाड़ी के नाम से पुकारते हैं. यह लगभग बारह-पंद्रह एकड़ में फैला हुआ है. इस बगीचे में आम और महुआ के पेड़ों की अधिकता है. बहुत सारे पेड़ों के कट या गिर जाने के कारण आज यह बाड़ी अपना पहलेवाला अस्तित्व खो चुकी है पर आज भी कमजोर दिलवाले व्यक्ति दोपहर या दिन डूबने के बाद इस बाड़ी की ओर जाने की बात तो दूर इस का नाम उनके जेहन में आते ही उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
आखिर क्यों? उस बाड़ी में ऐसा क्या है ?

जी हाँ, तो आज से तीस-बत्तीस साल पहले यह बाड़ी बहुत ही घनी और भयावह हुआ करती थी. दोपहर के समय भी इस बाड़ी में अंधेरा और भूतों का खौफ छाया रहता था. लोग आम तोड़ने या महुआ बीनने के लिए दल बाँधकर ही इस बाड़ी में जाया करते थे. हाँ इक्के-दुक्के हिम्मती लोग जिन्हे हनुमानजी पर पूरा भरोसा हुआ करता था वे कभी-कभी अकेले भी जाते थे. कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि रात को भूत-प्रेतों को यहाँ चिक्का-कबड्डी खेलते हुए देखा जा सकता था. अगर कोई व्यक्ति भूला-भटककर इस बारी के आस-पास भी पहुँच गया तो ये भूत उसे भी पकड़कर अपने साथ खेलने के लिए मजबूर करते थे और ना-नुकुर करने पर जमकर धुनाई भी कर देते थे. और उस व्यक्ति को तब छोड़ते थे जब वह कबूल करता था कि वह भाँग-गाँजा आदि उन लोगों को भेंट करेगा. Aatma ki kahaniya
तो आइए उस बगीचे की एक सच्ची घटना सुनाकर अपने रोंगटे खड़े कर लेता हूँ.

उस बगीचे में हमारे भी बहुत सारे पेड़ हुआ करते थे. एकबार हमारे दादाजी ने आम के मौसम में आमों की रखवारी का जिम्मा गाँव के ही एक व्यक्ति को दे दी थी. लेकिन कहीं से दादाजी को पता चला कि वह रखवार ही रात को एक-दो लोगों के साथ मिलकर आम तोड़ लेता है. एक दिन हमारे दादाजी ने छिपकर सही और गलत का पता लगाने की सोची. रात को खा-पीकर एक लाठी और बैटरी (टार्च) लेकर हमारे दादाजी उस भयानक और भूतों के साम्राज्यवाले बारी में पहुँचे. उनको कोनेवाले पेड़ के नीचे एक व्यक्ति दिखाई दिया. दादाजी को लगा कि यही वह व्यक्ति है

जो आम तोड़ लेता है. दादाजी ने आव देखा न ताव; और उस व्यक्ति को पकड़ने के लिए लगे दौड़ने. वह व्यक्ति लगा भागने. दादाजी उसे दौड़ा रहे थे और चिल्ला रहे थे कि आज तुमको पकड़कर ही रहुँगा. भाग; देखता हूँ कि कितना भागता है. अचानक वह व्यक्ति उस बारी में ही स्थित एक बर के पेड़ के पास पहुँचकर भयंकर और विकराल रूप में आ गया. उसके अगल-बगल में आग उठने लगी. अब तो हमारे दादाजी काठ हो गए और बुद्धि ने काम करना बंद कर दिया. उनका शरीर काँपने लगा, रोएँ खड़े हो गए और वे एकदम अवाक हो गए.

अब उनकी हिम्मत जवाब देते जा रही थी और उनके पैर ना आगे जा रहे थे ना पीछे. लगभग दो-तीन मिनट तक बेसुध खड़ा रहने के बाद थोड़ी-सी हिम्मत करके हनुमान चालीसा का पाठ करते हुए वे धीरे-धीरे पीछे हटने लगे.
जब वे घर पहुँचे तो उनके शरीर से आग निकल रही थी. वे बहुत ही सहमे हुए थे. तीन-चार दिन बिस्तर पर पड़े रहे तब जाकर उनको आराम हुआ. उस साल हमारे दादाजी ने फिर अकेले उस बाड़ी की ओर न जाने की कसम खा ली. Aatma ki kahaniya

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Final Words:- आशा करता हू कि ये सभी कहांनिया Aatma ki kahaniya आपको जरूर पसंद आई होगी । और ये सभी कहानियां और को बहुत ही प्रेरित भी की होगा । अगर आप ऐसे ही प्रेरित और रोचक Kahani प्रतिदिन पाना चाहते हैं तो आप हमारे इस वेबसाइट को जरूर सब्सक्राइब करले जिससे कि आप रोजाना नई काहानियों को पढ़ सके धन्यवाद।

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