Bajrang Baan Hindi | श्री बजरंग बाण का पाठ

Bajrang Baan Hindi श्री बजरंग बाण का पाठ
Bajrang Baan Hindi श्री बजरंग बाण का पाठ

Bajrang Baan Hindi :-प्रातः या सायं स्नान कर अथवा हाथ पैर धोयें । पूजाघर में उत्तर या पूर्व मुख होकर हनुमान जी के चित्र के आगे धुप दिप जलायें । भुने हुए या भीगे हुए चने का भोग लगायें और हाथ में जल लेकर संकल्प करे । यह संकल्प सिर्फ एक बार करना है, प्रतिदिन नही ।
स्वामी रूपेश्वरानद के द्वारा प्रधान द्रुलभ बजरंग बाण।


Bajrang Baan Hindi ( पाठ विधि और संकल्प )

मैं ( अपना पूरा नाम ) नामक आराधक …………. हेतु ……. बार बजरंग बाण पाठ करने का संकल्प कर रहा हूँ। ( ऐसा बोलकर भूमि पर जल छोड़ दे ) उसके बाद पाठ आरंभ करें। पाठ स्त्री , पुरुष या बालक कोई भी कर सकता है। सिर्फ स्त्रियों के लिए मासिक काल में वर्जित है।

दोहा :

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करें हनुमान ॥

जय हनुमन्त संत हितकारी ।
सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।

जन के काज बिलम्ब न कीजै ।
आतुर दौरि महासुख दीजै ।।

जैसे कूदी सिन्धु महि पारा ।
सुरसा बदन पैठी विस्तारा ।।

आगे जाय लंकिनी रोका ।
मोरेहु लात गई सुर लोका ।।

जाय विभीषण को सुख दीन्हा ।
सीता निरखि परम-पद लीना ।।

बाग़ उजारि सिन्धु मह बोरा ।
अति आतुर जमकातर तोरा ।।

अक्षय कुमार मारि संहारा ।
लूम लपेटि लंक को जारा ।।

लाह समान लंक जरि गई ।
जय-जय धुनि सुरपुर में भई ।।

अब बिलम्ब केहि कारन स्वामी ।
कृपा करहु उर अन्तर्यामी ।।

जय जय लखन प्रान के दाता ।
आतुर होई दु:ख करहु निपाता ।।

जै गिरिधर जै जै सुख सागर ।
सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥।।

ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले ।
बैरिहि मारु बज्र की कीले॥

गदा बज्र लै बैरिहि मारो ।
महाराज प्रभु दास उबारो ।।

ॐकार हुंकार महा प्रभु धाओ ।
बज्र गदा हनु विलम्ब न लाओ ।।

ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा ।
ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर-सीसा ॥

सत्य होहु हरी शपथ पायके ।
राम दूत धरु मारू जायके ॥

जय जय जय हनुमन्त अगाधा ।
दुःख पावत जन केहि अपराधा ॥

पूजा जप-तप नेम अचारा ।
नहिं जानत हो दास तुम्हारा ॥

वन उपवन मग गिरि गृह मांहीं ।
तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ॥

पायं परौं कर जोरी मनावौं ।
येहि अवसर अब केहि गोहरावौं ॥

जय अन्जनी कुमार बलवंता ।
शंकर सुवन वीर हनुमंता ।।

बदन कराल काल कुलघालक। ।
राम सहाय सदा प्रतिपालक ।।

भूत प्रेत पिसाच निसाचर। ।
अगिन वैताल काल मारी मर ।।

इन्हें मारु, तोहि शपथ राम की ।
राखउ नाथ मरजाद नाम की ।।

जनकसुता हरि दास कहावो ।
ताकी शपथ विलम्ब न लावो ।।

जै जै जै धुनि होत अकासा ।
सुमिरत होत दुसह दुःख नासा ।।

चरण शरण कर जोरि मनावौं ।
यहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।।

उठु उठु चलु तोहि राम-दोहाई ।
पायँ परौं, कर जोरि मनाई ।।

ॐ चं चं चं चं चपल चलंता ।
ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता ।।

ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल ।
ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल ।।

अपने जन को तुरत उबारौ ।
सुमिरत होय आनंद हमारौ ।।

यह बजरंग बाण जेहि मारै ।
ताहि कहो फिर कोन उबारै ।।

पाठ करै बजरंग बाण की ।
हनुमत रक्षा करैं प्रान की ।।

यह बजरंग बाण जो जापैं ।
ताते भूत-प्रेत सब कापैं ।।

धूप देय अरु जपै हमेशा ।
ताके तन नहिं रहै कलेसा ।।

दोहा :

प्रेम प्रतीतिहि कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान ।
तेहि के कारज सकल सुभ, सिद्ध करैं हनुमान ।।

बजरंग बाण ध्यानं श्री राम

अतुलित बलधामं हेम शैलाभदेहं।
दनुज वन कृषानुं, ज्ञानिनामग्रगण्यम्।।
सकल गुण निधानं वानराणामधीशं।
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
श्री हनुमते नमः

श्री गुरुदेव भगवान की जय

श्री बजरंग बाण

(दोहा)

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।

(चौपाई)

जय हनुमन्त सन्त-हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजे। आतुर दौरि महा सुख दीजै।।


जैसे कूदि सिन्धु बहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।


जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।।
बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।।


अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई। जै जै धुनि सुर पुर में भई।।


अब विलंब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होई दःुख करहु निपाता।।


जै गिरधर जै जै सुख सागर। सुर समूह समरथ भट नागर।।
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले। वैरहिं मारु बज्र सम कीलै।।


गदा बज्र तै बैरिहीं मारौ। महाराज निज दास उबारों।।
सुनि हंकार हुंकार दै धावो। बज्र गदा हनि विलंब न लावो।।


ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि-उर शीसा।।
सत्य होहु हरि सत्य पाय कै। राम दूत धरु मारु धाई कै।।


जै हनुमंत अनन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत है दास तुम्हारा।।


वन उपवन जल-थल गृह माही। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।
पॉय परौं पर जोरि मनावौं। अपने काज लागि गुण गावौं।।


जै अंजनी कुमार बलवंता। शंकर स्वयं वीर हनुमंता।।
बदन कराल दनुज कुल घालक। भूत पिशाच प्रेत उर शालक।।


भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल वीर मारी मर।।
इन्हहिं मारु, तोहिं शपथ राम की। राखु नाथ मर्याद नाम की।।


जनक सुता पति दास कहाओ। ताकि शपथ विलंब न लाओ।।
जय जय जय ध्वनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा।।


शरण शरण परि जोरि मनावौ। यहि अवसर अब केहि गोहरावौ।।
उठु उठु चल तोहि राम दोहाई। पॉय परों कर जोरि मनाई।।


ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता।।
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।।


अपने जन को कस न उबारौ। सुमिरत होत आनंद हमारौ।।
ताते विनती करौं पुकारी। हरहु सकल दुःख विपति हमारी।।


ऐसौ बल प्रभाव प्रभु तोरा। कस न हरहु दुःख संकट मोरा।।
हे बजरंग, बाण सम धावौ। मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ।।


हे कपिराज काज कब ऐहौ। अवसर चूकि अंत पछतैहौ।।
जनकी लाज जात ऐहि बारा। धावहु हे कपि पवन कुमारा।।


जयति जयति जै जै हनुमाना। जयति जयति गुण ज्ञान निधाना।।
जयति जयति जै जै कपिराई। जयति जयति जै जै सुखदाई।।


जयति जयति जै राम पियारे। जयति जयति जै सिया दुलारे।।
जयति जयति मुद मंगलदाता। जयति जयति जय त्रिभुवन विख्याता।।


ऐहि प्रकार गावत गुण शेषा। पावत पार नहीं लवलेशा।।
राम रुप सर्वत्र समाना। देखत रहत सदा हर्षाना।।


विधि शारदा सहित दिन राति। गावत कपि के गुन बहु भॅाति।।


तुम सम नहीं जगत बलवाना। करि विचार देखउं विधि नाना।।
यह जिय जानि शरण तब आई। ताते विनय करौं चित लाई।।


सुनि कपि आरत वचन हमारे। मेटहु सकल दुःख भ्रम भारे।।
ऐहि प्रकार विनती कपि केरी। जो जन करे लहै सुख ढेरि।।


याके पढ़त वीर हनुमाना। धावत वॉण तुल्य बलवाना।।
मेटत आए दुःख क्षण माहीं। दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं।।


पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।
डीठ, मूठ, टोनादिक नासै। पर – कृत यंत्र मंत्र नहिं त्रासे।।


भैरवादि सुर करै मिताई। आयुस मानि करै सेवकाई।।
प्रण कर पाठ करें मन लाई। अल्प – मृत्युग्रह दोष नसाई।।


आवृत ग्यारह प्रति दिन जापै। ताकि छाह काल नहिं चापै।।
दै गूगुल की धूप हमेशा। करै पाठ तन मिटै कलेषा।।


यह बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहौ फिर कौन उबारै।।
शत्रु समूह मिटै सब आपै। देखत ताहि सुरासुर कॉपै।।
तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई। रहै सदा कपिराज सहाई।।

(दोहा)

प्रेम प्रती तिहिं कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान।
तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान।।

पढ़े:- पूरी सुन्दरकाण्ड पाठ अर्थ सहित

संपूर्ण महामृत्युंजय मंत्र (अर्थ सहित)

श्री हनुमान चालीसा ( अर्थ सहित )

Final Words:- आशा करता हू कि ये सभी कहांनिया Bajrang Baan Hindi आपको जरूर पसंद आई होगी । और ये सभी कहानियां और को बहुत ही प्रेरित भी की होगा । अगर आप ऐसे ही प्रेरित कथाएँ प्रतिदिन पाना चाहते हैं तो आप हमारे इस वेबसाइट को जरूर सब्सक्राइब करले जिससे कि आप रोजाना नई काहानियों को पढ़ सके और आपको यह Post कैसी लगी हमें Comment Box में Comment करके जरूर बताए धन्यवाद।

Leave a Comment