मेरा पौधा
Bal Kahaniyan:- मीना क्लास में है और बहिन जी बच्चों को पढ़ा रहीं है, ‘बच्चों जैसा कि मैंने अभी तुम्हें बताया, पौधे कई प्रकार के होते हैं। और अलग-अलग पौधों की जरुरतें भी अलग-अलग होती हैं। किसी पौधे को रोशनी और पानी कम चाहिए होता है तो किसी को अधिक। कुछ पौधे केवल खेतों में पनपते हैं जबकि कुछ पौधों का विकास गमलों में ही हो जाता है। इस बात को अच्छी तरह समझाने के लिए हम कल एक प्रयोग करेंगे।
मिठ्ठू चहका, “प्रयोग करेंगे सब लोग करेंगे।”
ह…हा..ही ..ह्ह हा…ह…ह्ह
बहिन जी आगे कहती हैं, ‘बच्चों क्लास के बाहर रखे खाली गमले सबने देखें हैं।’
“जी बहिन जी” सभी बच्चे एक साथ जबाब देते हैं।
बहिनजी-…तो मैं चाहती हूँ कि तुम लोग तीन-तीन बच्चों की एक टीम बनाओ फिर हर टीम एक-एक गमले में एक-एक पौधा लगाएगी, वो पौधा कोई भी हो सकता है- फूल,सब्जी…कुछ भी। और फिर एक महीने के बाद हम देखेंगे कि किस टीम का पौधा सबसे अच्छा पनपता है। ठीक है।
“जी बहिन जी” सबने उत्तर दिया।
और फिर स्कूल की छुट्टी के बाद सब बच्चों ने अपनी-अपनी टीम बना ली। मीना की टीम मैं थे- सुनील और रानो। मीना, सुनील और रानो घर की तरफ निकल ही रहे थे कि…..
बहिन जी- मीना……
मीना- जी बहिन जी।
बहिनजी- रवि पिछले कुछ दिन से स्कूल आ ही नहीं रहा। उसकी तबियत तो ठीक हैं ना।
मीना- पता नहीं बहिन जी….रवि कुछ दिनों से हमसे भी नहीं मिला।
बहिन जी- अच्छा…हूँ…क्या तुम तीनों रवि के घर जाकर पता कर सकते हो कि आखिर बात क्या है? अगर उसकी तबियत ठीक है तो उससे कहना..कल से नियमित स्कूल आये ताकि वो इस प्रयोग में भाग ले सके। ठीक है बच्चों।
मीना- जी बहिन जी।
और फिर शाम को जब मीना, सुनील और रानो रवि के घर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि रवि दो लडको के साथ पकड़म-पकड़ाई खेल रहा है।
अ..आ…पकड लिया….ह्ह्ह हा हा….।
‘रवि…’ मीना आवाज देते है।
रवि- अरे! मीना, सुनील, रानो…आओ इनसे मिलो ये हैं मेरे मामाजी के लड़के- रतन और संजू। शहर से आये हैं। आओ तुम भी हमारे साथ खेलो।
मीना- नही रवि, हम तो बस तुम्हारा हाल जानने आये थे।
रवि- हाल जानने….।
मीना-हाँ…हमें लगा शायद तुम्हारी तवियत ठीक नहीं। इसलिए तुम…
रवि- हा ह्ह …मीना मेरी तवियत को क्या होना है? मैं तो बिलकुल ठीक हूँ।
सुनील- तो फिर तुम पिछले तीन दिन से स्कूल क्यों नहीं आ रहे थे?
रवि- सुनील तुम देख तो रहे हो रतन और संजू आये हुए हैं। अगर मैं स्कूल आता तो ये दोनों किसके साथ खेलते। आज ये दोनों वापस जा रहे हैं…. कल से स्कूल आना शुरु।
रानो- पता है रवि…कल हमारी पूरी क्लास प्रयोग करेगी।
रवि- प्रयोग…..।
मीना- रवि, बहिन जी ने तीन-तीन बच्चों की टीमे बनायी हैं और हर टीम से एक-एक पौधा लगाने को कहा है।
रानो- हाँ…और फिर एक महीने बाद बहिन जी देखेंगी कि किस टीम का पौधा सबसे अच्छा पनपता है।
रवि- बस इतनी सी बात…..पौधा लगाना तो मेरे बायें हाथ का खेल है। मैं कल स्कूल आके ऐसा पौधा लगाऊंगा कि सब देखते रह जायेंगे।
मिठ्ठू- “देखते रह जायेंगे रवि जी पौधा लगायेंगे।”
ह…हा..ही ..ह्ह हा…ह…ह्ह
और फिर अगले दिन स्कूल में……….
सब बच्चे चर्चा कर रहे हैं कि कौन सा पौधा लगाना चाहिए?
“सब बच्चे अपनी-अपनी टीम बना चुके हैं” मीना बोली, रवि अब तुम क्या करोगे?
रवि- मीना…पौधा लगाना कोई मुश्किल काम नहीं है। उसके लिए मुझे किसी की मदद या बातें समझाने की जरूरत नहीं है। मैं अकेले ही कर सकता हूँ।
सुनील- मीना, रानो…मैं सोच रहा हूँ, क्यों ना हम तीनों अपने गमले में टमाटर उगायें।
मिठ्ठू चहका, “टमाटर उगायें और मजे से खाएं”
ह…हा..ही ..ह्ह हा…ह…ह्ह
रानो- मिठ्ठू ठीक कह रहा है मीना। जब हमारे पौधे में लाल-लाल टमाटर उगेंगे तो हम उन्हें धोकर मजे से खायेंगे।
मीना- बड़ा मजा आएगा।…रवि तुम कौन सा पौधा लगाओगे।
रवि- हम्म…मैं लगाऊंगा…मैं इस गमले में उगाऊंगा खीरे।
सब टीमों ने अपने-अपने गमले में पौधे लगाये और फिर क्लास में…..
बहिन जी- …तो जैसा कि कल हमने पढ़ा था पौधों के लिए क्लोरोफिल बहुत जरुरी होता है…….।
“मीना ,क्लोरोफिल क्या होता है?” रवि फुसफुसाया।
मीना ने दबी जुबान से कहा, ‘रवि क्लोरोफिल पौधों मे पाया जाने वाल एक रसायन होता है।
रवि- हाँ…मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है।
उस दिन क्लास में बहिन जी की पढाई गयी एक भी बात रवि की समझ में नही आये। और अगले दो दिन तक यही हाल रहा। आखिर रवि ने मीना से इस बारे में बात की, ‘ मीना…बहिन जी आजकल क्या पढाती हैं? मुझे तो कुछ समझ में नहीं आता।
मीना- रवि तुम पिछले कुछ दिन स्कूल नही आये ना…इसलिए तुम्हें ये पाठ समझने में परेशानी हो रही है। एक काम करो तुम मेरी कॉपी ले जाओ। घर जाकर इसे अच्छी तरह पढ़ना..तुम्हें इससे पाठ समझने में आसानी होगी।
रवि- और फिर भी मुझे पाठ समझ ना आये तो…।
मीना- ….तो तुम बहिन जी से इस बारे में बात कर सकते हो।
“ठीक है…अब तो मैं वापस आने के बाद ही बहिन जी से बात कर सकूँगा।” रवि ने ठंडी आह भरते हुए कहा।
मीना- वापस आने के बाद…..तुम कहीं जा रहे हो क्या?
रवि- हाँ मीना…. मेरी दादी जी की तबियत कुछ ठीक नहीं है इसलिए मैं कुछ दिनों के लिए उनके पास जा रहा हूँ…साथ वाले गाँव।
मीना-….. और तुम्हारा पौधा।
“उसकी चिंता मत करो।…मैं सब संभाल लूँगा” रवि ने कहा।
रवि अपनी दादी जी के पास चला गया। और जब दो हफ्तों के बाद वापस लौटा और स्कूल आया तो…..
बहिन जी- वाह! बच्चों तुम सबके पौधे तो बहुत अच्छे-अच्छे बढ़ गए हैं।
मिठ्ठू- “ अच्छे-अच्छे खिले हैं लाल,हरे, पीले”
ह…हा..ही ..ह्ह हा…ह…ह्ह
“अरे! ये मुरझाया हुआ सा पौधा किस टीम का है?” बहिन जी बोली।
“बहिन जी…ये रवि का पौधा है।” मीना बोली।
रवि- बहिन जी, मैंने तो अपने पौधे में खूब खाद डाली थी। और मैं दादी जी के गाँव जाने से पहले इसमें ढेर सारा पानी भी डाला था।…फिर पता नही मेरा पौधा क्यों मुरझा गया?
बहिन जी- क्या कोई बच्चा रवि की इस बात का जबाब दे सकता है?
मीना- जी बहिन जी…
“शाबाश! मीना…जरा बताना रवि को भी इसका पौधा क्यों मुरझा गया?” बहिन जी बोली।
मीना- रवि, बहिन जी ने हमें बताया था कि पौधों में रोज़ पानी देना चाहिए। ताकि पानी इसकी जड़ों में समा सके।
“हाँ…रवि, और रोज़ देखभाल ना करने के कारण तुम्हारे पौधे में क्लोरोफिल नहीं बन पाया।” रानो ने कहा।
“क्लोरोफिल….क्लोरोफिल क्या होता है रानो? रवि ने पूँछा। मीना ने कुछ बताया तो था लेकिन मुझे याद नही आ रहा।
बहिन जी- रवि, क्लोरोफिल पौधों में पाया जाने वाला एक रसायन होता है। जिसकी अनुपस्थिति में पौधे का खिलना संभव नही होता।
मीना बताती है, ‘बहिन जी….रवि पिछले कई दिनों स्कूल में अनुपस्थित रहा ना..शायद इसलिए ये पौधों वाले पाठ को ठीक से समझ नहीं पाया।’
रवि- बहिन जी…मैं मीना से उसकी कॉपी लेके दो दिन में ये सारा पाठ याद कर लूँगा।
बहिन जी- एक बात पूंछू रवि?
रवि- जी बहिन जी।
बहिन जी- क्या ये मुमकिन है कि हम एक हफ्ता बिलकुल भूखे रहे और फिर आठवें दिन पिछले सात दिनों का खाना इकठ्ठा खा लें?
रवि- नहीं बहिन जी, खाना तो हमें रोज़ाना चाहिए।
बहिन जी- अब तुम समझे रवि…जैसे हमारे शरीर में रोज़ भोजन की जरूरत है…पौधों को भी रोज़ पानी देने की जरूरत है। वैसे ही तुम्हें स्कूल आने की जरुरत है..रोज़। क्योंकि अगर तुम रोज़ स्कूल आओगे तो एक तो तुम्हें पाठ अच्छी तरह समझ आएगा और साथ ही तुम्हारा पौधा भी ना मुरझाता।
रवि- बहिन जी, मैं आप सब से ये वादा करता हूँ कि अब से मैं रोज़ स्कूल आऊंगा।
“रोज़ स्कूल आऊंगा नया पौधा लगाऊंगा” मिठ्ठू चहका।
ह…हा..ही ..ह्ह हा…ह…ह्ह
और कुछ दिन बाद रवि ने स्कूल से एक भी छुट्टी नहीं ली वो रोज़ स्कूल जाने लगा। अब रवि को बहिन जी द्वारा पढाया गया हर पाठ अच्छे से समझ में आता है क्योंकि वो रोज़ स्कूल जाता है।
नाटक मण्डली
आज मीना के स्कूल में क्रिकेट का मैच हो रहा है।
“मैच बहुत दिलचस्प मोड़ पर पहुँच चुका है। मीना की टीम को जीतने के लिए छः रन चाहिए लेकिन सिर्फ एक बॉल में। मोनू गेंद फेंकने के लिए तैयार और आख़िरी गेंद का सामना करेंगी मीना……”
मीना….मीना…..मीना…..मीना…..मीना….
“……और बॉल जा रही है सीमा रेखा के बाहर। और ये छक्का। और इसी के साथ मीना की टीम जीत गयी है। दीपू,सुमी,सुनील ने मीना को कन्धों पर उठा लिया है और वो सब मैदान का चक्कर लगा रहे हैं।”
मैच के बाद मीना की बहिन जी ने पूरी टीम को बधाई दी, ‘मीना,दीपू,रानो,सुनील,रोशनी तुम सबको बहुत-बहुत बधाई।…….बच्चों मुझे तुम पाँचों से एक बहुत जरूरी काम है।…दरअसल हमारे गाँव में एक नाटक मंडली आयी हुई है और आज शाम को वो लोग यहीं इसी मैदान में एक नाटक प्रस्तुत करना चाहते हैं।’
सभी बच्चे ये सुनकर खुशी से उछल पडते हैं।
बहिन जी आगे कहती हैं, ‘मैंने ये एक सूची तैयार की है जिसमे वो सब काम लिखे हैं जो तुम आपस में बाँटकर कर सकते हो। लेकिन……।
“लेकिन क्या बहिन जी?” रोशनी बोली।
बहिन जी- रोशनी मैं सोच रही हूँ कि ये सब करने में कहीं तुम्हारे मैच का अभ्यास ना छुट जाए।
मीना- कोई बात नही बहिन जी, अगली मैच तो बहुत दूर है।
बहिन जी- ठीक है मीना,ये लो सूची।
मीना सूची पढ़ती है- पहला काम…गाँव के सभी लोगों को नाटक के बारे में बताना और उन्हें नाटक देखने के लिए आमंत्रित करना।
दूसरा काम…स्कूल के मैदान को रंग-बिरंगी कागजों से सजाना।
तीसरा काम…सभी दर्शकों के बैठने के लिए कुर्सियों,बैंच आदि लगाना।
बहिन जी तब तक उर्मिला जी से मिलने चली जाती हैं। उर्मिला जी नाटक मंडली की प्रधान हैं। बहिन जी उर्मिला जी को बताती हैं, “….शाम की तैयारी के लिए कुछ बच्चों को वो काम सौंप दिये हैं। मुझे पूरा विशवास है कि वो जल्द ही सभी तैयारियां कर लेंगे।”
नाटक शाम को सात बजे शुरु होना था। बहिनजी चार बजे के आस-पास स्कूल पहुँची। ये देखने कि मीना और उसके दोस्तों ने सभी तैयारियां ठीक से की हैं या नही। लेकिन वहाँ पहुँच के बहिन जी हैरान रह गयीं।
“ह्ह्ह बात करनी तो आती नही,चली हैं लोगों को आमंत्रित करने।” दीपू ने ताना मारा।
“दीपू तुम अपने आप को देखो….”
“क्या हुआ? हो गयी सजावट।”
“…..इन्हें बस बातें करना ही आता है”
मीना झल्लाई, ‘दीपू,रानो,सुनील,रोशनी अगर हम एक दुसरे को दोष देते रहेंगे तो नाटक की तैयारियां कैसे करेंगे?’
बहिन जी तैयारियों की प्रगति पूंछती हैं।
मीना- ‘मैं बताती हूँ बहिन जी, रानो गाँव में सब लोगों को नाटक के लिए आमंत्रित करने गयी थी लेकिन….।
“बहिन जी, वो मैं बात करने मैं शर्माती हूँ न इसीलिये मैं किसी को भी गाँव से आमंत्रित नही कर पायी।” रानो ने जबाब दिया।…आमंत्रित कर भी लेती तो क्या होता? ….क्योंकि दीपू और सुनील से सजावट ही नहीं हो पायी।
दीपू बोला- हमें पता ही नहीं था कि कैसे रंग के कागज़ से सजावट करनी है?…और हम सजावट कर भी लेते तो क्या होता? मीना और रोशनी ने कुर्सियां ही नहीं बिछायीं। गाँव वाले यहाँ आकर किस पर बैठते?
“ये बैंच इतने भारी थे कि हमसे उठे ही नहीं।…..और आप ही बताइए हम क्या करते?” रोशनी ने जबाब दिया।
बहिन जी- एक मिनट…एक मिनट…एक मिनट….शांत हो जाओ सब लोग। मीना तुम ठीक से बताओ,आखिर हुआ क्या?
मीना सारी बात बताती है, ‘बहिन जी आपके कहने पर हमने तीनों काम बाँट लिए थे। रानो गाँव वालों को आमंत्रित करने गयी। दीपू और सुनील ने सजावट की जिम्मेदारी ली और….रोशनी और मैंने कुर्सियां और बैंचे बिछाने का जिम्मा लिया। लेकिन कोई भी काम नहीं हो पाया।’
बहिन जी समझाती हैं, ‘बच्चों तुमने काम तो आपस में बाँट लिए लेकिन तुम ये भूल गए कि अलग-अलग लोगों में अलग-अलग क्षमताएं और अलग-अलग कमियां होती हैं। यानी कुछ लोग उसी काम को बहुत अच्छे से कर सकते हैं जबकि कुछ लोग उसी काम को ठीक से नहीं कर पाते।….तुम सब एक ही क्रिकेट टीम में हो ना और तुम्हारी टीम हर बार जीतती भी है, है ना। कभी सोचा है क्यों? क्योंकि तुमने अपने-अपने काम बिलकुल सही ढंग से बाँटे हुए हैं। मीना, दीपू अच्छी बल्लेबाजी कर लेते हैं इसीलिये वो दोद्नो पारी की शुरुआत करते हैं। रानो,रोशनी बहुत तेज भाग सकती हैं इसलिए उन्हें सीमा रेखा के पास फील्डिंग करने को कहा जाता हैं। सुनील बहुत फुर्तीला है इसलिय ये विकेट कीपर है। तुम सबको अच्छी तरीके से मालुम है कि किस खिलाड़ी में क्या क्षमता है और क्या कमी?
मीना बोली- मैं समझ गयी बहिनजी, हमें ये तीनो काम भी अपनी क्षमताओं और कमियों के आधार पर बांटने चाहिए थे।……जैसे कि हम सब जानते हैं कि रानो दूसरों से बात करने में थोडा झिझकती है तो हमें उसे गाँव वालों को आमंत्रित करने नहीं भेजना चाहिए था।
बहिन जी- बिलकुल ठीक।
दीपू ने कहा, ‘हाँ बहिन जी, नाटक का निमंत्रण देने सुनील और मीना को जाना चाहिए था क्योंकि दोद्नो किसी से बात करने बिलकुल नहीं झिझकते।
बहिन जी- तुम ठीक कह रहे हो दीपू।…रोशनी तुम बताओ कुर्सियां और बैंच बिछाने की जिम्मेदारी किसको दी जानी चाहिए थी?
रोशनी- हाँ…दीपू को..।
क्योंकि दीपू बहुत ताकतवर है।
“बहिन जी मैं कुछ कहूँ” रानो ने पूँछा। ‘सजावट की जिम्मेदारी रोशनी और मुझे मिलनी चाहिए थी क्योंकि हम दोनो को कला में विशेष रुचि है।’
बहिन जी- बिलकुल सही।
“नाटक शुरु होने में अभी घंटे का समय है। सुनील और मैं सभी गाँव वालों को आमंत्रित कर आते हैं। तब तक दीपू कुर्सियां और बैंच बिछा लेगा। रानो और रोशनी सजावट कर लेंगी। मैंने ठीक कहा न दोस्तों।” मीना बोली।
सभी चिल्लाये….बिलकुल ठीक।
और शाम को सात बजे…….
उर्मिला जी- बहिन जी मैं इन बच्चों को धन्यवाद कहना चाहती हूँ क्योंकि सभी की मेहनत के कारण ये नाटक शुरु हो सका।
मीना बोली- उर्मिला दीदी,धन्यवाद तो हमें कहना चाहिए बहिन जी का। क्योंकि बहिन जी ने ही हमें समझाया कि एक मजबूत टीम कैसे बनाई जाती हैं। वरना गाँव वाले आज नाटक में हम पाँचों की लड़ाई देख रहे होते।
सब हँस पड़ते हैं। Bal Kahaniyan
Bal Kahaniyan झांसी की रानी
दो दिन बाद मीना के स्कूल में झांसी की रानी नामक नाटक होना है जिसमे झांसी की रानी की भूमिका बेला को निभानी है। तय होता है कि शुक्रवार को इसकी रिहर्सल की जायेगी।
और फिर शुक्रवार के दिन……
बेला जब काफी देर तक स्कूल नही पहुँची तो मीना,सुमी,राजू और दीपू बेला के घर पहुंचे।
बेला के पिताजी पोंगा राम चाचा उसकी नाराजगी का कारण बताते हैं । और सब बच्चों को घर के पिछवाड़े भेज देते है जहाँ बेला बैठकर कठपुतलियां बना रही थी। और स्वयं शोभा काकी के यहाँ से फावड़ा लेने चले जाते हैं। Bal Kahaniyan
बेला ना जाने का कारण बताती है उसके मुहासे। Bal Kahaniyan
तभी दीपू आवाज़ देता है …कि राजू गढ्ढे में गिर पड़ा है। बेला बहादुरी का परिचय देते हुए राजू को गढ्ढे से निकलती है। तब तक पोंगाराम चाचा , शोभा काकी के साथ वहां पहुँच जाती हैं।
शोभा काकी बेला को समझाती हैं। Bal Kahaniyan
शोभा काकी के समझाने पर बेला नाटक की तैयारी करने स्कूल गयी।
Bal Kahaniyan (नाव की सैर)
मीना अपने आँगन में राजू के साथ क्रिकेट खेल रही है। राजू को अभी जीतने के लिए छः रन और बनाने है वो भी एक गेंद में।
राजू- माँ, मीना को देखो ना मैं जीत गया हूँ फिर भी ये……।
माँ- तुम भाई-बहिन के झगडे में मैं कुछ भी नहीं बोलने वाली।
तभी दीपू भागता हुआ आता है……
दीपू- मीना, राजू…पता है शाम को कौन आ रहा है?गोपी चाचा। ….माँ बता रही थी कि गोपी चाचा ने नयी नाव खरीद ली है बहुत बड़ी नाव। और आज शाम को वो मुझे सैर करायेंगे। तुम दोनों चलोगे मेरे साथ।
मीना इसके लिए अपनी माँ से अनुमति मांगती है।
माँ- हाँ..हाँ..जरूर जाओ।…..लेकिन बच्चों अपना ख्याल रखना। Bal Kahaniyan
मीना- दीपू शाम होने में अभी काफी समय है तब तक तुम हमारे साथ क्रिकेट खेल लो। तीनो खेलने लगता हैं।
मीना की माँ- मीना,…मधु को बुला लाओ। वो भी तुम्हारे साथ खेल लेगी।
मीना- लेकिन माँ तुम तो जानती हो मधु किसी से भी घुलना-मिलना पसंद नही करती।
माँ- वो अभी गाँव में नयी-नयी आयी है ना शायद इसी लिए। और फिर हो सकता है साथ खेलने से वो तुम्हारी दोस्त बन जाए। Bal Kahaniyan
मधु, बेला की चचेरी बहन थी जो कुछ दिन पहले ही अपने परिवार के साथ मीना के गाँव में रहने आयी है।
मीना. मधु को बुला लाये और फिर दीपू, राजू,मीना और मधु ने क्रिकेट खेलना शुरु किया।
मधु से दीपू का कैच छुट जाता है। मधु रोंने लगती है।
मीना- अरे मधु! तुम रोंने क्यों लगी?
मधु- मुझसे कैच छुट गयी।
मीना- इसमें क्या बात है? कैच तो किसी से भी छुट सकती है।
मधु- नहीं…सब मेरी गलती है। मैं कोई भी काम ठीक से नहीं कर पाती।
दीपू- मधु एक काम है जो तुम ठीक से कर पाओगी।
मधु-कौन सा काम दीपू?
दीपू- नाव की सैर। Bal Kahaniyan
मधु खुश हो जाती है और सकुचाते हुए अपनी रजामंदी भी दे देती है लेकिन अपने बाबा से पूँछने के बाद।
और फिर शाम को………..
सब बच्चों को वो लाल रंग की नाव बहुत अच्छी लगती है। गोपी चाचा नाव चलाना शुरु करते हैं।
मीना, राजू, दीपू और मधु नाव की सैर का आनंद ले रहे थे। गोपी चाचा अपनी मस्ती में गीत गुनगुना रहे थे कि तभी जोर से छपाक की आवाज़ आयी।
“गोपी चाचा….मधु नदी मैं गिर गयी।” मीना चीखी।
गोपी चाचा ने आव देखा ना ताव और फौरन नदी में कूद गए। उन्होने मधु को नदी में डूबने से बचाया और तुरंत उसे नर्स बहिन जी के पास ले गए। Bal Kahaniyan
नर्स बहिन जी- गोपी भईया, मैंने मधु की जांच कर ली है। सब ठीक है।……मधु तुम नदी के पानी में गिरी कैसे? तुम झुकके नदी के पानी को छूने की कोशिश कर रही थी।
मधु- नर्स बहिन जी, दरअसल में पिछले कई दिनों से ढंग से सो नहीं पा रही थी। नाव की सैर करते हुए पता नही कब मेरी आँख लग गयी और मैं नदी मैं गिर गयी।
नर्स बहिन जी- मधु….तुम्हें ढंग से नींद ना आने का क्या कारण है?
मधु सकुचाते हुये उत्तर देती है, ‘नर्स बहिन जी, दरअसल काफी दिनों से मैं बहुत परेशान हूँ …..।बहुत से कारण है- मुझे सत्र के बीच में ही अपना स्कूल बदला पड़ा। नए सिरे से सारी तैयारियां करनी पड रहीं हैं। मुझे ये भी नहीं पता क्या बहिन जी क्या-क्या पढ़ा चुकी हैं…….।
…..फिर घर के काम में बेला दीदी की मदद करनी पड़ती है।
गोपी चाचा- नर्स बहिन जी मुझे लगता है कि मधु को इन सब बातों के कारण मानसिक तनाव हो गया है।
नर्स बहिन जी- आप ठीक कह रहे हैं गोपी भईया। Bal Kahaniyan
नर्स बहिन जी मधु को समझाती हैं, ‘……..अपनी समस्या किसी दोस्त या बड़े को बताने से या खुद को अपनी मन पसंद रुचि में व्यस्त रखने से मानसिक तनाव दूर किया जा सकता है……..।’
मीना- मधु मैं आज ही तुम्हें अपनी कापियां दे दूंगी और स्कूल का पिछला काम करने में तुम्हारी मदद भी करूंगी। Bal Kahaniyan
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Final Words:- आशा करता हू कि ये सभी कहांनिया Bal Kahaniyan आपको जरूर पसंद आई होगी । और ये सभी कहानियां और को बहुत ही प्रेरित भी की होगा । अगर आप ऐसे ही प्रेरित और रोचक Kahani प्रतिदिन पाना चाहते हैं तो आप हमारे इस वेबसाइट को जरूर सब्सक्राइब करले जिससे कि आप रोजाना नई काहानियों को पढ़ सके धन्यवाद।