
Dadimaa ki kahaniya:- बचपन में हम लोगों ने अपने अपने दादी नानीयों से ढेरों काहानियां सुनी होगी । जो कि हम आज भी सुनना और पढ़ना चाहते हैं। तो ऐसे ही हम आज आपको कुछ बहुत ही अच्छी अच्छी कहानियां लेकर के आ रहें हो जो कि आपने अपने बचपन में अपने नानी या दादी से जरूर सुनी होगी। तो आप इन सभी Dadimaa ki kahaniya को एक बार जरूर पढ़िए आपको यह सभी कहानीयां जरूर पसंद आयेगी।
एक मेंढक की कहानी
एक बार एक अध्यापक बच्चों को कुछ सीखा रहे थे। उन्होंने एक छोटे बरतन में पानी भरा और उसमें एक मेंढक को डाल दिया। पानी में डालते ही मेंढक आराम से पानी में खेलने लगा। अब अध्यापक ने उस बर्तन को गैस पर रखा और नीचे से गर्म करना शुरू किया।
जैसे ही थोड़ा तापमान बढ़ा तो मेंढक ने तभी अपने शरीर के तापमान को उसी तरह से थोड़ा – थोड़ा करके एडजस्ट करने लगा। अब जैसे ही बर्तन का थोड़ा तापमान बढ़ता तो मेंढक अपने शरीर के तापमान को भी उसी तरह से एडजस्ट कर लेता और उसी बर्तन में मजे से पड़ा रहता।
धीरे धीरे तापमान बढ़ना शुरू हुआ, एक समय ऐसा भी आया जब पानी उबलने लगा और अब मेंढक की क्षमता जवाब देने लगी। अब बर्तन में रुके रहना संभव ना था। बस फिर क्या था मेंढक ने बर्तन से बाहर निकलने के लिए छलांग लगायी लेकिन अफ़सोस ऐसा हो ना सका।
मेंढक अपनी पूरी ताकत लगाने के बावजूद उस पानी से भरे बर्तन से नहीं निकल पा रहा था क्यूंकि अपने शरीर का तापमान adjust करने में ही वो सारी ताकत खो चुका था। कुछ ही देर में गर्म पानी में पड़े मेंढक ने प्राण त्याग दिए।
अब दादी ने बच्चों से पूछा कि मेंढक को किसने मारा तो कुछ बच्चों ने कहा– गर्म पानी ने…
लेकिन दादी ने बताया कि मेंढक को गर्म पानी ने नहीं मारा बल्कि वो खुद अपनी सोच से मरा है।
जब मेंढक को छलांग मारने की आवश्यकता थी उस समय तो वो तापमान को एडजस्ट करने में लगा रहता था उसने अपनी क्षमता का प्रयोग नहीं किया लेकिन जब तापमान बहुत ज्यादा बढ़ गया तब तक वह कमजोर हो चुका था।
तो बच्चो यही तो हम सब लोगों के जीवन की भी कहानी है। हम अपनी परिस्थितियों से हमेशा समझौता करने में लगे रहते हैं। हम परिस्थितियों से निकलने का प्रयास नहीं करते उनसे समझौता करना सीख लेते हैं और सारा जीवन ऐसे ही निकाल देते हैं और जब परिस्थितियां हमें बुरी तरह घेर लेती हैं तब हम पछताते हैं कि काश हमने भी समय पर छलांग मारी होती।
अच्छी बुरी हर तरह की परिस्थितियां इंसान के सामने आती हैं लेकिन आपको परिस्थितियों से समझौता नहीं करना है। बहुत सारे लोग बुरी परिस्थितियों को अपना भाग्य मानकर ही पूरा जीवन दुखों में काट देते हैं। बहुत अफ़सोस होता है कि लोग समय पर छलांग क्यों नहीं मारते।
शिक्षा/Moral:- अगर कोई इंसान आपकी मदद कर सकता है तो वो हैं आप खुद। आप ही वो इंसान है जो खुद को सबसे बेहतर तरीके से जानते हैं। खुद को मरने मत दीजिये अपने अंदर के जोश को ठंडा मत होने दीजिये। उठिए देखिये आपकी मंजिल आपका इंतजार कर रही है।
सात बहनें और गणेश जी
एक बार की बात है। सात बहनें थी। छः बहनें पूजा-पाठ करती थीं लेकिन सातवीं बहन नहीं।
एक बार गणेशजी ने सोचा मैं इन सात बहनों की परीक्षा करता हूँ। वे साधु के रूप में आए और दरवाजा खटखटाया।
पहली बहन से गणेशजी ने कहा- मेरे लिए खीर बना दो, मैं बड़ी दूर से आया हूँ। उसने मना कर दिया। ऐसे छः बहनों ने मना कर दिया।
लेकिन सातवीं बहन ने हाँ कह दी- उसने चावल बीनना शुरू किए और फिर खीर बनाना शुरू की।
अधपकी खीर उसने चख भी ली फिर साधु महाराज को खीर दी।
साधु ने कहा- तुम भी खीर खा लो।
सातवीं बहन ने कहा- मैंने तो खीर बनाते-बनाते ही खा ली है।
यह सुनते ही गणेशजी साधु से अपने पहले वाले रूप में आ गए
गणेशजी ने सातवीं बहन से कहा- मैं तुम्हें स्वर्ग ले जाऊँगा।
बहन ने कहा कि मैं अकेले स्वर्ग नहीं जाऊँगी। मेरी छः बहनों को भी ले चलिए।
गणेशजी खुश हुए और सबको स्वर्ग ले गए।
स्वर्ग में मजे से घूमने के बाद सभी बहने अपने घर वापिस आ गए और सभी खुश होकर एक साथ रहने लगे।
चित्रकार और अपंग राजा
बहुत समय पहले की बात है किसी राज्य में एक राजा राज करता था जिसके केवल एक टांग और एक आँख थी उस राज्य की प्रजा बहुत ही खुशहाल और धनवान थी।
सब लोग एक साथ मिल कर ख़ुशी से जीवन यापन करते थे और अपने राजा का सम्मान करते थे क्योंकि उस राज्य का राजा एक बुद्धिमान और प्रतापी व्यक्ति था।
एक बार राजा के मन में यह विचार आया कि क्यों ना अपनी एक तस्वीर बनवाई जाए जो राजमहल में लगाई जा सके, फिर क्या था राजा ने अपने मंत्री को आदेश दिया कि देश और विदेश से महान चित्रकारों को बुलाया जाए।
राजा के आदेश पाकर देश और विदेश से कई महान चित्रकार राजा के दरबार में पहुंचे, राजा ने उन सभी से हाथ जोड़कर आग्रह किया कि उनकी एक बहुत ही सुन्दर तस्वीर बनाई जाए।
राजा के इस आदेश से सारे चित्रकार सोच में पड़ गए कि राजा तो पहले से ही विकलांग है तो इसकी तस्वीर को बहुत सुंदर कैसे बनाया जाए यह तो संभव ही नहीं है और अगर तस्वीर सुंदर नहीं बनी तो राजा गुस्सा होकर दंड देगा यह सोच कर सभी चित्रकारों ने राजा की तस्वीर बनाने से मना कर दिया तभी उन चित्रकारों की भीड़ में से एक हाथ ऊपर उठा और आवाज आई “मैं आपकी बहुत ही सुन्दर तस्वीर बनाऊंगा जो आपको निश्चित ही पसंद आएगी”।
चित्रकार ने राजा की आज्ञा लेकर तस्वीर बनाना शुरू किया काफी देर बाद उसने एक तस्वीर तैयार की। राजा उस तस्वीर को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ यह देख कर वहा खड़े सारे चित्रकारों ने अपने दांतो तले उंगली दबा ली उस चित्रकार ने एक ऐसी तस्वीर बनाई थी जिसमें राजा एक टांग को मोड़कर जमीन पर बैठा हुआ था और एक आँख बंद कर अपने शिकार पर निशाना साध रहा था|
राजा यह देखकर बहुत प्रसन्न हुआ कि चित्रकार ने उसकी कमजोरी को छिपा कर बहुत ही चतुराई से एक सुंदर तस्वीर बनाई राजा ने खुशहोकर उस चित्रकार को बहुत सारा धन दिया।
शिक्षा/Moral:- तो बच्चों क्यों ना हम भी चित्रकार की तरह दूसरों की कमजोरियों को नजर अंदाज कर उनकी अच्छाइयों पर ही ध्यान दें। जरा सोचिए अगर हम दूसरों की कमियों का पर्दा डालें और बुराइयो को नज़रंदाज़ करे तो एक दिन दुनिया की सारी बुराईयाँ ही ख़त्म हो जाएगी और सिर्फ अच्छाइयाँ ही रह जाएगी।
नीम के पत्ते
एक बार की बात है जमूरा नामक गाँव से थोड़ी दूर पर एक महात्मा जी की कुटिया थी उस कुटिया में महात्मा जी के साथ उनका एक शिष्य भी रहता था जो दोनों आँखों से अंधा था। महात्मा जी एक महान विद्वान थे| अपने पास आए हुए हर व्यक्ति की समस्याओं का समाधान वो बहुत ही प्रसन्नता के साथ करते थे चाहे वह समस्या कोई भी हो।
महात्मा जी गाँव और शहर में काफी चर्चित है उनसे मिलकर अपनी समस्या का समाधान पाने के लिए बहुत दूर-दूर से व्यक्ति आते थे।
एक दिन ऐसा हुआ कि कहीं दूर शहर से दो हट्टे-कट्टे नौजवान महात्मा जी के पास आए वो बहुत ही परेशान लग रहे थे। महात्मा जी ने आदर के साथ उन्हें अन्दर आने को कहा और चारपाई पर बैठा कर उनकी समस्या पूछी।
पहला नौजवान बोला- “महात्मा जी हमने सुना है आपके पास हर समस्या का समाधान है, जो कोई भी आपके पास अपनी समस्या ले कर आता है वह खाली हाथ नही जाता। हम भी आपके पास अपनी समस्या ले कर आये है और उम्मीद करते है आप हमे निराश नही करेंगे।”“तुम निश्चिन होकर मुझे अपनी समस्या बताओ” महात्मा जी बहुत ही विनम्रता से बोले।
दूसरा नौजवान बोला- “महात्मा जी हम लोग इस शहर में नए आये हैं, जहाँ हमारा गाँव हैं वहाँ के हालात बहुत ही खराब है। वहाँ आवारा लोगो का बसेरा हैं उन्ही की दहशत हैं सड़को पर गुजरते हुए लोगो से बदतमीज़ी की जाती हैं, आते जाते लोगो को गालियाँ दी जाती हैं कुछ शराबी लोग सड़क पर खड़े होकर आते जाते लोगों को परेशान करते है कुछ बोलने पर वह हाथापाई पर उतर आते हैंं।
पहला नौजवान बोला- “हम बहुत परेशान हो गए हैं भला ऐसे समाज में कौन रहना चाहेगा, आप ही बताइए। महात्मा जी दोनों नौजवानों की बात सुनकर अपनी कुटिया से बड़बड़ाते हुए बाहर की ओर निकले। दोनों नौजवान भी कुटिया से बाहर आये और देखा महात्मा जी शांत खड़े होकर सामने वाली सड़क को देख रहे थे।
अगले ही पल महात्मा जी मुड़े और दोनों जवानों से बोले “बेटा मेरा एक काम करोगे” सड़क की ओर इशारा करते हुए कहा “यह सड़क जहां से मुड़ती है वहीं सामने एक नीम का बड़ा है वहां से मेरे लिए कुछ पत्तियां तोड़ लाओ”।
दोनों नौजवानों ने जैसे ही कदम बढ़ाया तो तुरंत…
महात्मा जी ने उन्हें रोकतेे हुए कहा-“ठहरो बेटा… जाने से पहले मैं तुम्हे बता दूं रास्ते मेंं कई आवारा कुत्ते मिलेंगे जो बहुत ही ख़ूँख़ार है तुम्हारी जान भी जा सकती है क्या तुम पत्ते ला पाओगे??
दोनों नौजवानों ने एक दूसरे को देखा उनके चेहरे पर एक डर था परंतु वह जाने के लिए तैयार थे। वह सड़क की तरफ जैसे ही बढ़े उन्होंने देखा रास्ते के दोनों तरफ कई आवारा कुत्ते बैठे हुए हैं।
उन दोनों नौजवानों ने आवारा कुत्तों को पार करने की बहुत कोशिश की परंतु उन्हें पार कर पाना आसान नहीं था। जैसे ही वह कुत्तों के करीब जाते, कुत्ते भौकते हुए उन्हें काटने की कोशिश करते हैं। काफी कोशिश करने के बाद वापस आ गया और महात्मा जी से बोले हमें माफ कर दीजिए यह रास्ता बहुत ही ख़तरनाक हैं रास्ते में बहुत ही खतरनाक कुत्ते हैं हम यह काम नहीं कर पाए।
दूसरा नौजवान बोला- “हम दो-चार कुत्तों को किसी तरह पार कर पाए परंतु आगे जाने पर उन्होंने हम पर हमला कर दिया जैसे तैसे करके हम वहां से जान बचाकर आए हैं” महात्मा जी बिना कुछ बोले कुटिया के अंदर चले गए और फिर अपने शिष्य को साथ लेकर निकले|
महात्मा जी ने शिष्य को नीम का पत्ता तोड़कर लाने के लिए कहा तो शिष्य उसी रास्ते से गया काफी देर बाद जब वह वापस आया तो उसके हाथ नीम के पत्ते से भरे यह देख कर दोनों नौजवान भौचक्के रह गए।
महात्मा जी बोले- “बेटा यह मेरा शिष्य है हालांकि यह देख नहीं सकता है परंतु इसे कौन सी चीज कहां है इस बात का पूरा ज्ञान हैं यह रोज मुझे नीम के पत्ते ला कर देता और इसे आवारा कुत्ते इसलिए नहीं काटते हैं क्योंकि यह उनकी तरफ बिल्कुल ध्यान ही नहीं देता है सिर्फ अपने काम से काम रखता है”
महात्मा जी फिर आगे बोले- “जीवन में एक बात हमेशा याद रखना बेटा रास्ते में कितनी भी कठिनाइयां क्यों ना हो हमें अपने लक्ष्य को ध्यान में रखना चाहिए और उसी की तरफ आगे बढ़ना चाहिए”
शिक्षा/Moral:- तो बच्चों इस नौजवानों की तरह हमें भी अपने जीवन में कई ऐसे अनुभव मिलते हैं हमारे जीवन में कई ऐसे खतरनाक मोड़ आएंगे हमें उन से डरना नहीं चाहिए बल्कि उनका डटकर सामना करना चाहिए और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए।
दो सांपों की कहानी
एक बार एक राजा था जिसका नाम था देवशक्ति वह अपने बेटे से बहुत निराश था, जो बहुत कमजोर था। वह दिन व दिन दुबला और कमजोर होता जा रहा था। दूर के स्थानों से प्रसिद्ध चिकित्सक भी उसे ठीक नहीं कर पा रहे थे। क्योंकि उसके पेट में साँप था। उन्होंने सभी तरह के उपचारों की कोशिश की, लेकिन सभी व्यर्थ थे|
युवा राजकुमार भी अपने पिता को दुःखी देखकर बहुत निराश था। और वह अपने जीवन के साथ तंग आ गया था एक रात, वह महल के बाहर आया और दूसरे राज्य में चला गया। उसने एक मंदिर में रहना शुरू कर दिया और दयालु लोगों ने जो कुछ भी उसे दान दिया, वह वही खा लेता था।
इस नये देश पर एक राजा का शासन था, जिसकी दो जवान बेटियां थीं। वे अच्छे संस्कारों के साथ बड़ी हुईं थी। हर सुबह वे अपने पिता के आशीर्वाद के लिए अपने पिता के पैरों को प्रणाम करती थी|
बेटियों में से एक ने कहा-“हे पिताजी, आपके आशीर्वाद से हमें दुनिया के सभी सुख प्राप्त हैं|”
दूसरी बेटी ने कहा- “हे राजा, इंसान को सिर्फ अपने कार्यों का ही फल मिलता है।
दूसरी बेटी की टिप्पणी से राजा को बहुत गुस्सा आया|
एक दिन उसने अपने मंत्रियों को बुलाया और कहा- “वह उन फलों का आनंद उठाएं जो उसके कार्यों के लिए नियत हैं! इसे ले जाओ और इसका महल के बाहर किसी के भी साथ इसका विवाह कर दें, जो भी आपको महल के बाहर मिल जाए”
मंत्रियों ने ऐसा ही किया और जब उन्हें कोई नहीं मिला तो उन्होंने मंदिर में रह रहे युवा राजकुमार से उसका विवाह कर दिया।
राजकुमारी एक धार्मिक लड़की थी, और वह अपने पति को भगवान के रूप में मानती थी वह बहुत खुश थी और अपनी शादी से संतुष्ट थी। उन्होंने देश के एक अलग हिस्से की यात्रा करने का निर्णय लिया, क्योंकि मंदिर में घर बनाना अनुचित था।
रास्ते में, राजकुमार थक गया और एक पेड़ की छाया के नीचे आराम करने लगा क्योंकि वह हर दिन कमज़ोर हो रहा था और लंबी दूरी तक नहीं चल सकता था।
राजकुमारी ने पास के बाजार से कुछ भोजन लाने का फैसला किया। जब वह लौट कर आई, तो उसने अपने पति को तेजी से सोया देखा और आस पास के एक बिल से उभरते सांप को देखा और उसने अपने पति के मुंह से उभरते हुए एक और सांप को देखा। वह छिप कर यह सब देखने लगी.
एंथल के साँप ने दूसरे सांप से कहा-“तुम इस खूबसूरत राजकुमार को इतना दुःख क्यों दे रहे हो? इस तरह तुम खुद का जीवन खतरे में डाल रहे हो। अगर राजकुमार जीरा और सरसों का सूप पी लेगा। तो तुम निश्चित रूप से मरोगे!”
राजकुमार के मुंह के सांप ने कहा-“तुम सोने की दो घड़ों की रक्षा क्यों करते हैं, जिसकी तुमको कोई ज़रूरत नहीं है? और अपने जीवन को भी जोखिम में डाल रहे हो। अगर किसी ने गर्म पानी और तेल को डाला, तो तुम निश्चित रूप से मर जाओगे। उनकी बातों को सुनने के बाद, वे अपने-अपने स्थानों के अंदर चले गए, लेकिन राजकुमारी ने उनके रहस्यों को जान लिया था।
उसने उनकी बातों के अनुसार काम किया और जीरा और सरसों के सूप के साथ अपने पति को भोजन दिया। कुछ ही घंटों के भीतर, युवा राजकुमार ठीक होना शुरू हो गया और उसकी ताकत वापस आ गई। उसके बाद, उसने सांप के बिल में गर्म पानी और तेल डाला, और सोने के दो बर्तन खोदा जिसकी दूसरा सांप रक्षा कर रहा था। उसके बाद वह युवा राजकुमार ठीक हो गया और उनके पास दो बर्तन भर सोना भी हो गए| अब वे खुशी के साथ रहने लगे।
शिक्षा/Moral:- इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि जब आपके दुश्मन झगड़ा करते हैं, तो तब आप विजेता हैं।
बच्चे और गुब्बारे वाला
एक बार एक गांव में मेला हो रहा था। मेले में बहुत सारे लोग अपने परिवार के साथ घूमने आए थे।
मेले में बहुत सारे मिठाईयों की दुकान, खिलौने, और गुब्बारे बेचने वाले भी थे। एक कोने में एक गुब्बारे वाला अपने साइकिल पर गुब्बारे बेच रहा था।
तभी उसके पास एक छोटा सा बच्चा आया और उससे पूछने लगा – गुब्बारे वाले यह जो लाल वाला गुब्बारा है क्या यह ऊपर उड़ेगा?
तभी उस गुब्बारे वाले ने उत्तर दिया – हां यह लाल वाला गुब्बारा ऊपर उठेगा।
उसी समय उस बच्चे ने दोबारा गुब्बारे वाले से प्रश्न किया – क्या यह नीला वाला गुब्बारा ऊपर उड़ेगा?
गुब्बारे वाले ने दोबारा उत्तर दिया – हां बच्चे यह गुब्बारा ऊपर उड़ेगा। उस बच्चे ने तीसरी बार फिर से प्रश्न किया – गुब्बारे वाले क्या यह हरा वाला गुब्बारा ऊपर हवा में उड़ेगा?
यह सुनकर उस गुब्बारे वाले ने हंसते हुए उस बच्चे को जवाब दिया – हां बच्चे यह सभी गुब्बारे हवा में उड़ेंगे।
बेटा, गुब्बारा हवा में जाएगा या नहीं यह उसके रंग और आकार पर निर्भर नहीं होता है बल्कि वह तो उसके अंदर में भरे हुए हवा या गैस पर निर्भर करता है।
शिक्षा/Moral:- इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि जिस प्रकार गुब्बारे के बाहर के रंग और आकार पर गुब्बारे का ऊपर उड़ना निर्भर नहीं होता उसी प्रकार हमारा भी ऊपर उठना या सफलता प्राप्त करना हमारे बाहरी रंग रूप, हमारे व्यक्तिमत्व पर, हमारी क्षमताओं पर, हमारी योग्यताओं पर निर्भर नहीं होता यह सब तो केवल गुब्बारे रंग है। हमारा ऊपर उठना या हमारी सफलता को छूना हमारे मनोभाव, धारणाओं, हमारी मनोदृष्टि पर निर्भर करते है।
बातूनी कछुआ
एक बार एक समय पर कंबुग्रीव नामक कछुआ एक झील के पास रहता था। दो सारस पक्षी जो उसके दोस्त थे उसके साथ झील में रहते थे। एक बार गर्मियों में, झील सूखने लगी, और उसमें जानवरों के लिए थोड़ा सा पानी बचा था।
सारस ने कछुए को बताया कि दूसरे वन में एक दूसरी झील है जहाँ बहुत पानी है, उन्हें जीवित रहने के लिए वहां जाना चाहिए।
वे योजना के अनुसार कछुए के साथ वहां जाने के लिए तैयार हुए। उन्होंने एक छड़ी को लिया और कछुए को बिच में मुँह से पकड़कर रखने को कहा और कहा कि अपने मुंह को खोलना नहीं,चाहे कोई भी बात हो। कछुआ उनकी बात मान गया।
कछुए ने छड़ी के बिच को अपने दांतों से पकड़ा और दोनों सरसों ने छड़ी के दोनों कोने को अपने चोंच से पकड़ लिया।
रास्ते में गांवों के लोग कछुए को उड़ते हुए देख रहे थे और बहुत आश्चर्यचकित थे। उन दो पक्षियों के बारे में जमीन पर एक हंगामा सा मच गया था जो एक छड़ी की मदद से कछुए को ले जा रहे थे। सरसों की चेतावनी के बावजूद,
कछुआ ने अपना मुंह खोला और कहा-“यह सब हंगामा क्यों हो रहा है?”
ऐसा कहते ही कछुआ नीचे गिर गया और उसकी मौत ही गई। Dadimaa ki kahaniya
शिक्षा/Moral:- जितना आवश्यकता हो उतना ही बोलना चाहिए। बेकार की बात ज्यादा करने से हानी स्वयं को ही होती है।
Dadimaa ki kahaniya (किसान और दो घडे)
एक गाँव में एक किसान रहता था। वह रोज सुबह-सुबह उठकर दूर झरनें से साफ पानी लेने जाया करता था। इस काम के लिए वह अपने साथ दो बड़े घड़े ले जाया करता था। जिन्हें वह एक डण्डे में बाँधकर अपने कन्धे पर दोनों तरफ लटका कर लाया करता था।
उनमें से एक घड़ा कहीं से थोड़ा-सा फूटा था और दूसरा एकदम सही। इसी वजह से रोज़ घर पहुँचते-पहुँचते किसान के पास डेढ़ घड़ा ही पानी बच पाता था। ऐसा होना नई बात नहीं थी इसको दो साल बीत चुके थे। सही घड़े को इस बात का बहुत घमण्ड था, उसे लगता था कि वह पूरा का पूरा पानी घर पहुँचता है और उसके अन्दर कोई भी कमी नहीं है। वहीं दूसरी तरफ फूटा हुआ घड़ा इस बात से बहुत शर्मिंदा रहता था कि वह आधा पानी ही घर पहुँचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार चली जाती है। Dadimaa ki kahaniya
एक दिन की बात है वह बहुत दुःखी और उदास था जब परेशानी हद से बढ़ गई तो उसने फैसला किया कि वह किसान से माफी माँगेगा। किसान से बोला “मैं बहुत शर्मिंदा हूँ, मैं आपसे माफी माँगना चाहता हूँ” तो किसान ने पूछा “भाई तुम किस बात से शर्मिंदा हो” छोटे घड़े ने दुःखी होते हुए कहा “शायद आप नहीं जानते हैं, मैं एक जगह से फुटा हुआ हूँ।
पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी पहुँचाना चाहिए था मैं सिर्फ उसका आधा ही पहुँचा पाया हूँ। मेरे अन्दर यह बहुत बड़ी कमी है। इस वजह से आपकी मेहनत बर्बाद होती रही हैं। किसान को घड़े की बात सुनकर बहुत दुख हुआ और बोला इतना परेशान होना भी ठीक नहीं है।
चलो तुम्हारी उदासी दूर करते हैं, एक काम करना कल जब तुम रास्ते से लौटो तो अपने टपकते पानी पर दुख करने के बजाय उस रास्ते में खिले हुए फूलों को देखना कितने खुशबूदार, कितने खूबसूरत, कितने प्यारे और साथ ही पास में छोटे-छोटे पौधे देखना।
घड़े ने किसान की बातें मनाने का फैसला किया। रास्ते भर सुन्दर फूलों का देखता हुआ आया। ऐसा करने से उसकी उदासी थोड़ा कम हुई, पर घर पहुँचते-पहुँचते उसके अन्दर से आधा पानी गिर चुका था। वह फिर से मायूस हो गया और किसान से क्षमा माँगने लगा।
किसान बोला “शायद तुमने रास्ते पर ध्यान नहीं दिया। रास्ते में जितने भी फूल थे, बस तुम्हारी तरफ ही थे। Dadimaa ki kahaniya
सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं थे। जानते हो ऐसा क्यों, क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अन्दर की कमी को जानता था, मैंने उसका लाभ उठाया। मैंने तुम्हारी तरफ वाले रास्ते पर रंग बिरंगे फूलों के बीज बो दिये थे। तुम थोड़ा-थोड़ा करके सींचते रहें और पूरे रास्ते को इतना खूबसूरत बना दिया।
आज तुम्हारी ही वजह से मैं इन फूलों को भगवान को अर्पित कर पाता हूँ, अपना घर सुन्दर बना पाता हूँ। तुम ही सोचो अगर तुम जैसे हो ऐसे ना होते तो भला क्या मैं यह सब कुछ कर पाता है।
शिक्षा/Moral:- दोस्तों हम सभी के अन्दर कोई ना कोई कमी होती है पर यही वो कमियाँ हैं जो हमें अनोखा बनाती हैं, हमें इंसान बनाती है। उस किसान की तरह हमें भी हर किसी को जैसा है वैसे ही स्वीकार करना चाहिए। उसकी अच्छाई की तरफ ध्यान देना चाहिए और जब हम ऐसा करेंगे तो फूटा घड़ा भी अच्छे घड़े से मूल्यवान हो जाएगा।
Dadimaa ki kahaniya (गिद्ध की उड़ान)
एक घने जंगल में गिद्धों का एक झुण्ड रहता था। गिद्ध झुण्ड बनाकर लम्बी उड़ान भरते और शिकार की तलाश किया करते थे। एक बार गिद्धों का झुण्ड उड़ते उड़ते एक ऐसे टापू पर पहुँच गया जहां पर बहुत ज्यादा मछली और मेंढक खाने को थे।
इस टापू पर गिद्धों को रहने के लिए सारी सुविधाएँ मौजूद थीं। अब तो सारे गिद्ध बड़े खुश हुए, मजे से वो उसी टापू पर रहने लगे, अब ना ही रोज शिकार की तलाश में जाना पड़ता और ना ही कुछ मेहनत करनी पड़ती। दिन रात गिद्ध बिना कोई काम किये मौज करते और आलस्य में पड़े रहते थे। Dadimaa ki kahaniya
उस झुण्ड में एक बूढ़ा गिद्ध भी था, बूढ़े गिद्ध को अपने साथियों की ऐसी दशा देखकर बहुत चिंता हुई। वो गिद्धों को चेतावनी देते हुए बोला – मित्रों हम गिद्धों को ऊँची उड़ान और अचूक निशाने और उत्तम शिकारी के रूप में जाना जाता है।
लेकिन इस टापू पर आकर सभी गिद्धों को आराम की आदत हो गई है और कुछ तो कई दिन से उड़े ही नहीं हैं। ये चीज़ें हमारी क्षमता और हमारे भविष्य के लिए घातक हो सकती हैं। इसलिए हम आज ही अपने पुराने जंगलों में वापस जायेंगे। Dadimaa ki kahaniya
अब बाकि सारे गिद्ध उस बूढ़े गिद्ध की हंसी उड़ाने लगे कि ये बूढ़े हो चुके हैं इनका दिमाग सही से काम नहीं कर रहा है, यहाँ हम कितनी मौज मस्ती से रह रहे हैं वापस वहां जंगल में क्यों जाएँ ? ये कहकर सभी गिद्धों ने जाने से मना कर दिया। लेकिन बूढ़ा गिद्ध वापस चला गया।
कुछ दिन बाद जंगल में रहते रहते एक दिन बूढ़े गिद्ध ने सोचा कि मेरा जीवन अब बहुत थोड़ा ही बचा है तो क्यों ना अपने सगे लोगों से मिल लिया जाये। यही सोचकर गिद्ध ने ऊँची उड़ान भरी और टापू पर पहुँच गया।
वहाँ जाकर उसने जो द्रश्य देखा वो सचमुच भयावह था। पूरे टापू पर एक भी गिद्ध जिन्दा नहीं बचा था, चारों तरफ गिद्धों की लाश ही पड़ी थी।
अचानक एक घायल गिद्ध पर नजर पड़ी उसने बताया कि यहाँ कुछ दिन पहले चीतों का एक झुण्ड आया। जब चीतों ने हम पर हमला किया तो हम लोगों ने उड़ना चाहा लेकिन हम ऊँचा उड़ ही नहीं पाए और ना ही हमारे पंजों में इतनी ताकत थी कि हम उनका मुकाबला कर पाते। चीतों ने एक एक कर सारे गिद्धों को खत्म कर दिया। बूढ़ा गिद्ध दुखी होता हुआ वापस जंगल की ओर उड़ चला।
तो बच्चों हमारे जीवन में भी कुछ ऐसा ही होता है, हम अगर अपनी शक्तियों का लगातार प्रयोग नहीं करेंगे तो हम कमजोर पड़ते जायेंगे और एक दिन हमारी शक्तियां हमारे काम की ही नहीं रहेंगी। Dadimaa ki kahaniya
अगर आप अपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं करते तो आपके दिमाग की क्षमता घटने लगेगी। आप अपने शरीर का उपयोग नहीं करेंगे तो आपकी ताकत घटने लगेगी।
Dadimaa ki kahaniya (मुन्ना हाथी)
मुन्ना हाथी का कारोबार सारे जंगल में फैला था। सारे पेड़-पौधों पर उसका एकछत्र अधिकार था। जहां भी उसकी तबीयत होती वहां जाकर पेड़ों की डालें तोड़ता, पत्ते चबाता और पेड़ हिला डालता।
किसकी मजाल कि उसे रोके। जंगल में शेर ही उसकी बराबरी का जानवर था किंतु उसे पेड़-पौधों से क्या लेना-देना? उसे जानवरों के मांस से मतलब था।
मुन्ना खूब पत्ते खाता, घूमता और मौज करता। एक दिन जंगल के रास्ते से कारों का काफिला निकला। रंग-बिरंगी कारें देखकर मुन्ना का भी मूड हो गया कि वह भी कार में घूमे, हॉर्न बजाकर लोगों को सड़क से दूर हटाए और सर्र से कट मारकर आगे निकल जाए।
दौड़कर वह टिल्लुमल के शोरूम में जा पहुंचा और टिल्लुमल से अच्छी-सी कार दिखाने को कहा। टिल्लु चकरा गया। अब हाथी के लायक कार कहां से लाए।
टिल्लुमल बोला हाथी से- ‘भैया तुम्हारे लायक कार कहां मिलेगी? इतनी बड़ी कार तो कोई कंपनी नहीं बनाती।’
परंतु मुन्नाभाई ने तो जैसे जिद ही पकड़ ली कि कार लेकर ही जाएंगे।
टिल्लुमल ने समझाना चाहा- ‘अरे भाई, तुम्हारे लायक कार कंपनी को अलग से आदेश देकर बनवाना पड़ेगा”। Dadimaa ki kahaniya
मुन्ना हाथी झल्लाकर बोला- ‘तो बनवाओ, इसमें क्या परेशानी है?’
मुन्ना हाथी चीखा-‘बहुत बड़ी कार बनेगी तो बनने दो, तुम्हें क्या कष्ट है।
टिल्लुमल बोला- ‘जब कार चलेगी तो जंगल के बहुत से पेड़ काटने पड़ेंगे।’
मुन्ना हाथी बोला- ‘क्यों… क्यों… काटना पड़ें ?
टिल्लु ने समझाना चाहा- ‘कार इतनी बड़ी होगी तो पेड़ तो काटना ही पड़ेंगे मुन्ना भैया’, ‘क्या पेड़ काटना ठीक होगा अपने जरा से शौक के लिए?’ Dadimaa ki kahaniya
‘अरे टिल्लुमलजी, कार के लिए पेड़ काटना! अपनी मौज-मस्ती के लिए जंगल काटे, यह मुझे स्वीकार नहीं है। जंगल ही तो जीवन है, ऐसा कहकर वह जंगल वापस चला गया।
Final Words:- आशा करता हू कि ये सभी कहांनिया Dadimaa ki kahaniya आपको जरूर पसंद आई होगी । और ये सभी कहानियां और को बहुत ही प्रेरित भी की होगा । अगर आप ऐसे ही प्रेरित और रोचक कहानियां प्रतिदिन पाना चाहते हैं तो आप हमारे इस वेबसाइट को जरूर सब्सक्राइब करले जिससे कि आप रोजाना नई काहानियों को पढ़ सके धन्यवाद।