
Dhanteras Ki Katha (धनतेरस व्रत कथा)
Dhanteras Ki Katha:-धनतेरस से जुड़ी सबसे पौराणिक और प्रमाणित कथा है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं के कार्य में बार बार बाधा डालने और उनकी तपस्या भंग करने के कारण भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी थी.
कथानुसार, राजा बलि जो की बहुत ही पराक्रमी था देवताओं को अक्सर परेशन किया करता था. राजा बलि के भय से देवता बहुत परेशान थे. देवताओं ने भगवान विष्णु से उनकी रक्षा करने की प्रार्थना की. भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंच गये लेकिन भगवान विष्णु के वामन रूप को शुक्राचार्य ने पहचान लिया. शुक्राचार्य ने राजा बलि से कहा की वामन कोई और नही स्वयं भगवान विष्णु हैं जो देवताओं की सहायता के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आए हैं इसलिए वो जो भी माँगे उन्हें इंकार कर देना.
राजा बलि ने गुरु शुक्राचार्य की एक भी बात नहीं मानी. भगवान विष्णु जो की वामन रूप में राजा बलि के पास आए थे उन्होने राजा बलि से तीन पग भूमि दान में माँगी. राजा बलि भगवान के वामन रूप को टीन प्स्ग भूमि दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे, तभी शुक्राचार्य ने लघु रूप धारण कर राजा बलि के कमंडल में प्रवेश कर गये ताकि राजा बलि संकल्प ना ले सके और भगवान वामन को दान ना दे सके.
शुक्राचार्य के कमंडल में प्रवेश करने से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया. लेकिन भगवान वामन शुक्रचार्य कीिस चाल को समझ गाए और तभी भगवान वामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गयी और शुक्राचार्य छटपटाकर कमण्डल से निकल आए.
शुक्राचार्य के कमण्डल से निकल जाने के बाद राजा बलि ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया. दान में भगवान वामन ने एक पैर से पूरी पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पग से अंतरिक्ष को. इस तरह तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर राजा बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया. इस तरह राजा बलि दान में अपना सब कुछ गंवा बैठा. दान में सब कुछ खो देने राजा बलि कमजोर हो गया और इस तरह उसके भय से देवताओं को मुक्ति मिली. कहा जाता है की राजा बलि ने जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुना धन-संपत्ति देवताओं को मिल गयी. इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है.
आरती श्री कुबेर जी
ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे,
स्वामी जै यक्ष जै यक्ष कुबेर हरे।
शरण पड़े भगतों के,
भण्डार कुबेर भरे।
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे…॥
शिव भक्तों में भक्त कुबेर बड़े,
स्वामी भक्त कुबेर बड़े।
दैत्य दानव मानव से,
कई-कई युद्ध लड़े ॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे…॥
स्वर्ण सिंहासन बैठे,
सिर पर छत्र फिरे,
स्वामी सिर पर छत्र फिरे।
योगिनी मंगल गावैं,
सब जय जय कार करैं॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे…॥
गदा त्रिशूल हाथ में,
शस्त्र बहुत धरे,
स्वामी शस्त्र बहुत धरे।
दुख भय संकट मोचन,
धनुष टंकार करें॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे…॥
भांति भांति के व्यंजन बहुत बने,
स्वामी व्यंजन बहुत बने।
मोहन भोग लगावैं,
साथ में उड़द चने॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे…॥
बल बुद्धि विद्या दाता,
हम तेरी शरण पड़े,
स्वामी हम तेरी शरण पड़े,
अपने भक्त जनों के,
सारे काम संवारे॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे…॥
मुकुट मणी की शोभा,
मोतियन हार गले,
स्वामी मोतियन हार गले।
अगर कपूर की बाती,
घी की जोत जले॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे…॥
यक्ष कुबेर जी की आरती,
जो कोई नर गावे,
स्वामी जो कोई नर गावे ।
कहत प्रेमपाल स्वामी,
मनवांछित फल पावे।
॥ इति श्री कुबेर आरती ॥
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