
Gayatri Mantra
ॐ भूर् भुवः स्वः।तत् सवितुर्वरेण्यं।भर्गो देवस्य धीमहि।धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
Gayatri Mantra In Hindi | गायत्री मंत्र अर्थ सहित अनुवाद
उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
मन्त्र जप के लाभ- गायत्री मन्त्र का नियमित रुप से सात बार जप करने से व्यक्ति के आसपास नकारात्मक शक्तियाँ बिलकुल नहीं आती।
- जप से कई प्रकार के लाभ होते हैं, व्यक्ति का तेज बढ़ता है और मानसिक चिन्ताओं से मुक्ति मिलती है। बौद्धिक क्षमता और मेधाशक्ति यानी स्मरणशक्ति बढ़ती है।
- गायत्री मन्त्र में चौबीस अक्षर होते हैं, यह 24 अक्षर चौबीस शक्तियों-सिद्धियों के प्रतीक हैं।
- इसी कारण ऋषियों ने गायत्री मन्त्र को सभी प्रकार की मनोकामना को पूर्ण करने वाला बताया है।
श्री गायत्री माता की आरती
जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता। सत् मारग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता॥ जयति जय गायत्री माता…
आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जग पालन कर्त्री। दुःख शोक भय क्लेश कलह दारिद्र्य दैन्य हर्त्री॥१॥ ब्रह्मरूपिणी, प्रणत पालिनी, जगत धातृ अम्बे।
भव-भय हारी, जन हितकारी, सुखदा जगदम्बे॥२॥ भयहारिणि, भवतारिणि, अनघे अज आनन्द राशी।
अविकारी, अघहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी॥३॥ कामधेनु सत-चित-आनन्दा जय गंगा गीता।
सविता की शाश्वती, शक्ति तुम सावित्री सीता॥४॥ ऋग्, यजु, साम, अथर्व, प्रणयिनी, प्रणव महामहिमे।
कुण्डलिनी सहस्रार सुषुम्रा शोभा गुण गरिमे॥५॥ स्वाहा, स्वधा, शची, ब्रह्माणी, राधा, रुद्राणी।
जय सतरूपा वाणी, विद्या, कमला, कल्याणी॥६॥ जननी हम हैं दीन, हीन, दुःख दारिद के घेरे।
यदपि कुटिल, कपटी कपूत तऊ बालक हैं तेरे॥७॥ स्नेह सनी करुणामयि माता चरण शरण दीजै।
बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै॥८॥ काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव द्वेष हरिये।
शुद्ध, बुद्धि, निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये॥९॥ तुम समर्थ सब भाँति तारिणी, तुष्टि, पुष्टि त्राता।
सत मारग पर हमें चलाओ जो है सुखदाता॥१०॥ जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता॥
माँ गायत्री की आरती करते समय इस मंत्र
का उच्चारण करना चाहिए-
इदर्ठ हविः प्रजननं मे अस्तु दशवीरः सर्व्गणर्ठ स्वस्तये | आत्मसनि प्रजासनि पशुसनि लोकसन्यभयसनि ||
माँ गायत्री की पूजा में इस मंत्र का उच्चारण करते हुए पूगीफल समर्पण करना चाहिए- ॐ याः फ़लिनीर्या अफ़ला अपुष्पायाश्च पुष्पिणीः | बृहस्पतिप्रसूतास्तानो मुंचन्त्वर्ठ हसः ||
माँ गायत्री की पूजा में इस मंत्र का उच्चारण करते हुए उन्हें पुष्प अर्पित करना चाहिए- ॐ ओषधीः प्रतिमोददध्वं पुष्पवतीः प्रसूवरीः | अश्चा इव सजित्वरीवींरूधः पारियिष्णवः ||
माँ गायत्री की पूजा के दौरान इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें ताम्बूल समर्पण करना चाहिए- कर्पूर्-जातीफ़ल-जायकेन ह्येला-लवंगेन समन्वितेन | मया प्रदत्तं मुखवासनार्थं ताम्बूलमंगी कुरू मातरेतत् ||
इस मंत्र को पढ़ते हुए मां गायत्री को सिन्दूर समर्पण करना चाहिए- ॐ अहिरिव भोगैः पर्येति बाहुं ज्यायाहेतिं परिबाधमानाः | हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान्पुमान पुमार्ठ सम्परिपातु विश्वतः ||
माँ गायत्री की पूजा के दौरान इस मंत्र का उच्चारण करते हुए उनका आवाहन करना चाहिए- आयाहि वरदे देवि त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि | गायत्रि छन्दसां मातर्ब्रह्ययोने नमोस्तु ते ||
श्री गायत्री स्तोत्रम
जयस्व देवि गायत्रि महामाये महाप्रभे । महादेवि महाभागे महासत्त्वे महोत्सवे ।।1।।
दिव्यगन्धानुलिप्ताड़्गि दिव्यस्त्रग्दामभूषिते । वेदमातर्नमस्तुभ्यं त्र्यक्षरस्थे महेश्वरि ।।2।।
त्रिलोकस्थे त्रितत्वस्थे त्रिवह्निस्थे त्रिशूलनि । त्रिनेत्रे भीमवक्त्रे च भीमनेत्रे भयानके ।।3।।
कमलासनजे देवि सरस्वति नमोSस्तु ते । नम: पंकजपत्राक्षि महामायेSमृतस्त्रवे ।।4।।
सर्वगे सर्वभूतेशि स्वाहाकारे स्वधेsम्बिके । सम्पूर्णे पूर्णचन्द्राभे भास्वरांगे भवोद्भवे ।।5।।
महाविद्ये महावेद्ये महादैत्यविनाशिनी । महाबुद्ध्युद्भवे देवि वीतशोके किरातिनि ।।6।।
त्वं नीतिस्त्वं महाभागे त्वं गीस्त्वं गौस्त्वमक्षरम । त्वं धीस्त्वं श्रीस्त्वमोंकारस्तत्त्वे चापि परिस्थिता । सर्वसत्त्वहिते देवि नमस्ते परमेश्वरि ।।7।।
इत्येवं संस्तुता देवी भवेन परमेष्ठिना । देवैरपि जयेत्युच्चैरित्युक्ता परमेश्वरि ।।8।।
श्री गायत्री-वन्दना
गायत्री माता, जय, गायत्री माता! तू है परम पुनीत वेद-ध्वनि, अनुपम, अभिजाता, भक्त समूह समुद युग-युग से तेरे गुण गाता। तू ही संकट शमन- कारिणी, तू सब की त्राता, तेरे ही प्रताप से बनते बुध, पण्डित, ज्ञाता! भक्ति-भाव से जो भी तेरे चरणों में आता, माता! तेरी कृपा-कोर से वाञ्छित फल पाता! तू है रिद्धि-सिद्धि, सुख-वैभव, नव-जीव-दाता, दे ‘रजेश’ को वह दयामयि! जो तेरा भाता! गायत्री माता! जय, गायत्री माता!!
Gayatri Chalisa
(श्री गायत्री चालीसा)
॥दोहा॥ ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीवन ज्योति प्रचण्ड। शान्ति कान्ति जागृत प्रगति रचना शक्ति अखण्ड॥ जगत जननी मङ्गल करनि गायत्री सुखधाम। प्रणवों सावित्री स्वधा स्वाहा पूरन काम॥
॥चौपाई॥ भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी। गायत्री नित कलिमल दहनी॥ अक्षर चौविस परम पुनीता। इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता॥
शाश्वत सतोगुणी सत रूपा। सत्य सनातन सुधा अनूपा॥ हंसारूढ श्वेताम्बर धारी। स्वर्ण कान्ति शुचि गगन-बिहारी॥
पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला। शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला॥ ध्यान धरत पुलकित हिय होई। सुख उपजत दुःख दुर्मति खोई॥
कामधेनु तुम सुर तरु छाया। निराकार की अद्भुत माया॥ तुम्हरी शरण गहै जो कोई। तरै सकल संकट सों सोई॥
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली। दिपै तुम्हारी ज्योति निराली॥ तुम्हरी महिमा पार न पावैं। जो शारद शत मुख गुन गावैं॥
चार वेद की मात पुनीता। तुम ब्रह्माणी गौरी सीता॥ महामन्त्र जितने जग माहीं। कोउ गायत्री सम नाहीं॥
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै। आलस पाप अविद्या नासै॥ सृष्टि बीज जग जननि भवानी। कालरात्रि वरदा कल्याणी॥
ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते। तुम सों पावें सुरता तेते॥ तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे। जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे॥
महिमा अपरम्पार तुम्हारी। जय जय जय त्रिपदा भयहारी॥ पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना। तुम सम अधिक न जगमे आना॥
तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा। तुमहिं पाय कछु रहै न कलेशा॥ जानत तुमहिं तुमहिं व्है जाई। पारस परसि कुधातु सुहाई॥
तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई। माता तुम सब ठौर समाई॥ ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे। सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे॥
सकल सृष्टि की प्राण विधाता। पालक पोषक नाशक त्राता॥ मातेश्वरी दया व्रत धारी। तुम सन तरे पातकी भारी॥
जापर कृपा तुम्हारी होई। तापर कृपा करें सब कोई॥ मन्द बुद्धि ते बुधि बल पावें। रोगी रोग रहित हो जावें॥
दरिद्र मिटै कटै सब पीरा। नाशै दुःख हरै भव भीरा॥ गृह क्लेश चित चिन्ता भारी। नासै गायत्री भय हारी॥
सन्तति हीन सुसन्तति पावें। सुख संपति युत मोद मनावें॥ भूत पिशाच सबै भय खावें। यम के दूत निकट नहिं आवें॥
जो सधवा सुमिरें चित लाई। अछत सुहाग सदा सुखदाई॥ घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी। विधवा रहें सत्य व्रत धारी॥
जयति जयति जगदम्ब भवानी। तुम सम ओर दयालु न दानी॥ जो सतगुरु सो दीक्षा पावे। सो साधन को सफल बनावे॥
सुमिरन करे सुरूचि बडभागी। लहै मनोरथ गृही विरागी॥ अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता। सब समर्थ गायत्री माता॥
ऋषि मुनि यती तपस्वी योगी। आरत अर्थी चिन्तित भोगी॥ जो जो शरण तुम्हारी आवें। सो सो मन वांछित फल पावें॥
बल बुधि विद्या शील स्वभाउ। धन वैभव यश तेज उछाउ॥ सकल बढें उपजें सुख नाना। जे यह पाठ करै धरि ध्याना॥
॥दोहा॥ यह चालीसा भक्ति युत पाठ करै जो कोई। तापर कृपा प्रसन्नता गायत्री की होय॥
Gayatri Mantra
(श्री गायत्री माता के मंत्र)
माँ गायत्री की पूजा के दौरान इस मंत्र को पढ़ते हुए वस्त्र अथवा ओढ़नी चढ़ाना चाहिए- ॐ सुजातो ज्योतिषा सह शर्मवरूथमासदत्स्वः | वासोग्ने विश्वरूपर्ठ संव्ययस्व विभावसो ||
माँ गायत्री की पूजा में उन्हें इस मंत्र के द्वारा मुकुट चढ़ाना चाहिए- मातस्तवेमं मुकुटं हरिन्मणि-प्रवाल-मुक्तामणिभि-र्विराजितम् | गारूत्मतैश्चापि मनोहरं कृत गृहाण मातः शिरसो विभूषणम् ||
इस मंत्र के द्वारा मां गायत्री को धूप दिखलाना चाहिए- दशांगधूपं तव रंजनार्थं नाशाय मे विघ्नविधायकानाम् | दत्तं मया सौरभचूर्णयुक्तं गृहाण मातस्तव सन्निधौ च ||
माँ गायत्री की पूजा में इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें पुष्पांजलि अर्पित करना चाहिए- ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् | ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ||
श्री गायत्री माता
गायत्री माता हिंदू धर्म की देवी हैं। मान्यता के अनुसार गायत्री माता शक्ति का केंद्र है जिनमें सभी प्रकार की शक्तियों का समावेश है। पुराणों के अनुसार देवी गायत्री का जिक्र ब्रह्माजी की पत्नी के रूप में किया गया है।
गायत्री माता को वेद माता भी कहा जाता है। माना जाता है की इनके मंत्र जाप से व्यक्ति के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं तथा मोक्ष की प्राप्ति हो जाती हैं। अथर्ववेद में गायत्री माता को आयु, विद्या, संतान, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली कहा गया है।
श्री गायत्री देवी की
शादी से जुड़ी कहानी
गायत्री नाम से ऋग्वेद में एक सबसे लंबा छंद है। गायत्री को आद्याशक्ति प्रकृति के 5 स्वरूपों में एक माना गया है। यही वेद माता कहलाती हैं। किसी समय ये सविता देव की पुत्री के रूप में अवतीर्ण हुई थीं इसलिए इनका नाम सावित्री पड़ गया। इनका विग्रह तपाए हुए स्वर्ण के समान है। वेदों में अदिति के अलावा सविता का भी कई जगहों पर उल्लेख मिलता है।
पद्म पुराण के अनुसार वज्रनाश नामक राक्षस का वध करने के पश्चात ब्रह्माजी ने संसार की भलाई के लिए पुष्कर में एक यज्ञ करने का फैसला किया। ब्रह्माजी यज्ञ करने हेतु पुष्कर पहुंच गए, लेकिन किसी कारणवश सावित्री समय पर नहीं पहुंच सकीं। यज्ञ को पूर्ण करने के लिए उनके साथ उनकी पत्नी का होना जरूरी था, लेकिन सावित्रीजी के नहीं पहुंचने की वजह से उन्होंने एक कन्या ‘गायत्री’ से विवाह कर यज्ञ शुरू किया।
उसी दौरान देवी सावित्री वहां पहुंचीं और ब्रह्मा के बगल में दूसरी कन्या को बैठा देख क्रोधित हो गईं। उन्होंने ब्रह्माजी को शाप दिया कि देवता होने के बावजूद कभी भी उनकी पूजा नहीं होगी, तब सावित्री से सभी देवताओं ने विनती की कि अपना शाप वापस ले लीजिए, लेकिन उन्होंने नहीं लिया। जब गुस्सा ठंडा हुआ तो सावित्री ने कहा कि इस धरती पर सिर्फ पुष्कर में आपकी पूजा होगी।
श्री गायत्री जयंती
हिंदू धर्म में माँ गायत्री को वेदमाता कहा जाता है अर्थात सभी वेदों की उत्पत्ति इन्हीं से हुई है। माँ गायत्री को भारतीय संस्कृति की जननी भी कहा जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन माँ गायत्री का अवतरण माना जाता है। इस दिन को हम गायत्री जयंती के रूप में मनाते है। माँ गायत्री को हमारे वेदों में वेदमाता कहा गया है। माँ गायत्री की महिमा चारों ही वेद गाते हैं, जो फल चारों वेदों के अध्ययन से होता है, वह एक मात्र गायत्री मंत्र के जाप से हो सकता है, इसलिए गायत्री मंत्र की शास्त्रों में बड़ी महिमा बताई गई है।
श्री गायत्री माँ के
108 नाम के मंत्र
- ॐ श्री गायत्र्यै नमः।
- ॐ जगन्मात्रे नमः।
- ॐ परब्रह्मस्वरूपिण्यै नमः।
- ॐ परमार्थप्रदायै नमः।
- ॐ जप्यायै नमः।
- ॐ ब्रह्मतेजोविवर्धिन्यै नमः।
- ॐ ब्रह्मास्त्ररूपिण्यै नमः।
- ॐ भव्यायै नमः।
- ॐ त्रिकालध्येयरूपिण्यै नमः।
- ॐ त्रिमूर्तिरूपायै नमः।
- ॐ सर्वज्ञायै नमः।
- ॐ वेदमात्रे नमः।
- ॐ मनोन्मन्यै नमः।
- ॐ बालिकायै नमः।
- ॐ तरुण्यै नमः।
- ॐ वृद्धायै नमः।
- ॐ सूर्यमण्डलवासिन्यै नमः।
- ॐ मन्देहदानवध्वंसकारिण्यै नमः।
- ॐ सर्वकारणायै नमः।
- ॐ हंसारूढायै नमः।
- ॐ गरुडारूढायै नमः।
- ॐ वृषभारूढायै नमः।
- ॐ शुभायै नमः।
- ॐ षट्कुक्षिण्यै नमः।
- ॐ त्रिपदायै नमः।
- ॐ शुद्धायै नमः।
- ॐ पञ्चशीर्षायै नमः।
- ॐ त्रिलोचनायै नमः।
- ॐ त्रिवेदरूपायै नमः।
- ॐ त्रिविधायै नमः।
- ॐ त्रिवर्गफलदायिन्यै नमः।
- ॐ दशहस्तायै नमः।
- ॐ चन्द्रवर्णायै नमः।
- ॐ विश्वामित्रवरप्रदायै नमः।
- ॐ दशायुधधरायै नमः।
- ॐ नित्यायै नमः।
- ॐ सन्तुष्टायै नमः।
- ॐ ब्रह्मपूजितायै नमः।
- ॐ आदिशक्त्यै नमः।
- ॐ महाविद्यायै नमः।
- ॐ सुषुम्नाख्यायै नमः।
- ॐ सरस्वत्यै नमः।
- ॐ चतुर्विंशत्यक्षराढ्यायै नमः।
- ॐ सावित्र्यै नमः।
- ॐ सत्यवत्सलायै नमः।
- ॐ सन्ध्यायै नमः।
- ॐ रात्र्यै नमः।
- ॐ प्रभाताख्यायै नमः।
- ॐ सांख्यायनकुलोद्भवायै नमः।
- ॐ सर्वेश्वर्यै नमः।
- ॐ सर्वविद्यायै नमः।
- ॐ सर्वमन्त्राद्यै नमः।
- ॐ अव्ययायै नमः।
- ॐ शुद्धवस्त्रायै नमः।
- ॐ शुक्लमाल्यानुलेपनायै नमः।
- ॐ सुरसिन्धुसमायै नमः।
- ॐ सौम्यायै नमः।
- ॐ ब्रह्मलोकनिवासिन्यै नमः।
- ॐ प्रणवप्रतिपाद्यार्थायै नमः।
- ॐ प्रणतोद्धरणक्षमायै नमः।
- ॐ जलाञ्जलिसुसन्तुष्टायै नमः।
- ॐ जलगर्भायै नमः।
- ॐ जलप्रियायै नमः।
- ॐ स्वाहायै नमः।
- ॐ स्वधायै नमः।
- ॐ सुधासंस्थायै नमः।
- ॐ श्रौषट्वौषट्वषट्क्रियायै नमः।
- ॐ सुरभ्यै नमः।
- ॐ षोडशकलायै नमः।
- ॐ मुनिबृन्दनिषेवितायै नमः।
- ॐ यज्ञप्रियायै नमः।
- ॐ यज्ञमूर्त्यै नमः।
- ॐ स्रुक्स्रुवाज्यस्वरूपिण्यै नमः।
- ॐ अक्षमालाधरायै नमः।
- ॐ अक्षमालासंस्थायै नमः।
- ॐ अक्षराकृत्यै नमः।
- ॐ मधुछन्दसे नमः।
- ॐ ऋषिप्रीतायै नमः।
- ॐ स्वच्छन्दायै नमः।
- ॐ छन्दसांनिधये नमः।
- ॐ अङ्गुलीपर्वसंस्थानायै नमः।
- ॐ चतुर्विंशतिमुद्रिकायै नमः।
- ॐ ब्रह्ममूर्त्यै नमः।
- ॐ रुद्रशिखायै नमः।
- ॐ सहस्रपरमाम्बिकायै नमः।
- ॐ विष्णुहृदयायै नमः।
- ॐ अग्निमुख्यै नमः।
- ॐ शतमध्यायै नमः।
- ॐ दशावरणायै नमः।
- ॐ सहस्रदलपद्मस्थायै नमः।
- ॐ हंसरूपायै नमः।
- ॐ निरञ्जनायै नमः।
- ॐ चराचरस्थायै नमः।
- ॐ चतुरायै नमः।
- ॐ सूर्यकोटिसमप्रभायै नमः।
- ॐ पञ्चवर्णमुख्यै नमः।
- ॐ धात्र्यै नमः।
- ॐ चन्द्रकोटिशुचिस्मितायै नमः।
- ॐ महामायायै नमः।
- ॐ विचित्राङ्ग्यै नमः।
- ॐ मायाबीजनिवासिन्यै नमः।
- ॐ सर्वयन्त्रात्मिकायै नमः।
- ॐ सर्वतन्त्ररूपायै नमः।
- ॐ जगद्धितायै नमः।
- ॐ मर्यादापालिकायै नमः।
- ॐ मान्यायै नमः।
- ॐ महामन्त्रफलप्रदायै नमः।
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Final Words:- आशा करता हू कि ये सभी कहांनिया Gayatri Mantra In Hindi आपको जरूर पसंद आई होगी । और ये सभी कहानियां और को बहुत ही प्रेरित भी की होगा । अगर आप ऐसे ही प्रेरित कथाएँ प्रतिदिन पाना चाहते हैं तो आप हमारे इस वेबसाइट को जरूर सब्सक्राइब करले जिससे कि आप रोजाना नई काहानियों को पढ़ सके और आपको यह Post कैसी लगी हमें Comment Box में Comment करके जरूर बताए धन्यवाद।