Mahamrityunjaya Mantra Hindi | संपूर्ण महामृत्युंजय मंत्र (अर्थ सहित)

Mahamrityunjaya Mantra Hindi (महा मृत्युंजय मंत्र)

☀☀☀☀☀ महा मृत्युंजय मंत्र ☀☀☀☀☀
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम उर्वारुकमिव बंधनान मृत्योर मुक्षीय मा अमृतात ||

भावार्थ :- ” हे त्र्यम्बक वेदरूप पुण्यात्मा परमेश्वर ! मृत्यु के पाश से हमको बचाओ, जन्म-मरण से हमें मुक्त करो और हमको अमृतत्व प्रदान करो.
या के =

हे ईश्वर, जिनके तीन नेत्र हैं उनकी प्यार, सम्मान और आदर से उपासना करते हैं जिसमे संसार की समस्त सुगंध हैं अर्थात जिसका स्वभाव मीठा हैं जो सम्पूर्ण हैं जिसके कारण स्वस्थ जीवन हैं जो रोग,लालसा एवम बुराई का नाश करता है जिस कारण जीवन समृध्द होता हैं | उस एक अनश्वर से प्रार्थना हैं कि वह हमारे सारे बन्धनों को काटकर हमें मोक्ष का द्वारा दिखाए |”

महा मृत्युंजय मन्त्र का अक्षरशः अर्थ

  • त्र्यंबकम् = त्रि-नेत्रों वाला (कर्मकारक), तीनों कालों में हमारी रक्षा करने वाले भगवान को
  • यजामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय
  • सुगंधिम = मीठी महक वाला, सुगन्धित (कर्मकारक)
  • पुष्टिः = एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्* पुष्टिः = एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता
  • वर्धनम् = वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में) वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा माली
  • उर्वारुकम् = ककड़ी (कर्मका* उर्वारुकम् = ककड़ी (कर्मकारक)
  • इव = जैसे, इस तरह
  • बन्धनात् = तना (लौकी का); (“तने से” पंचम विभक्ति – वास्तव में समाप्ति -द से अधिक लंबी है जो सन्धि के माध्यम से न/अनुस्वार में परिवर्तित होती है)
  • मृत्योः = * मृत्योः = मृत्यु से
  • मुक्षीय = हमें स्वतन्त्र करें, मुक्ति दें
  • मा = नहीं वंचित होएँ
  • अमृतात् = अमरता, मोक्ष के आनन्द से

~ इस महामन्त्र से लाभ निम्न है –

  • धन प्राप्त होता
  • .जो आप सोच के जाप करते वह कार्य सफल होता
  • परिवार मे सुख सम्रद्बि रहती है
  1. जीवन मे आगे बढते जाते है आप

~ जप करने कि विधि –

  • सुबह और सायं काल में प्रायः अपेक्षित एकान्त स्थान में बैठकर आँखों को बन्द करके इस मन्त्र का जाप (अपेक्षित दस-ग्यारह बार) करने से मन को शान्ति मिलती है और मृत्यु का भय दूर हो जाता है। आयु भी बढ़ती है।

☀☀☀☀☀स्वास्थ्य प्राप्ति के लिए शिवजी के मंत्र☀☀☀☀☀

निरोग रहने और अच्छे स्वास्थ्य के लिए शिव जी के इस मंत्र का जाप करना चाहिए:

सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ।।
कावेरिकानर्मदयो: पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय।
सदैव मान्धातृपुरे वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीडे।।


शिव जी की पूजा के दौरान इन मंत्रो का जाप करना चाहिए-

शिव जी की पूजा के दौरान इस मंत्र के द्वारा उन्हें स्नान समर्पण करना चाहिए-
ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य सकम्भ सर्ज्जनीस्थो |
वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमासीद् ||


भगवान शिव की पूजा करते समय इस मंत्र के द्वारा उन्हें यज्ञोपवीत समर्पण करना चाहिए-

ॐ ब्रह्म ज्ज्ञानप्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेन आवः |
स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च विवः ||


शिवजी की पूजा में इस मंत्र के द्वारा भगवान भोलेनाथ को गंध समर्पण करना चाहिए-

ॐ नमः श्वभ्यः श्वपतिभ्यश्च वो नमो नमो भवाय च रुद्राय च नमः |
शर्वाय च पशुपतये च नमो नीलग्रीवाय च शितिकण्ठाय च ||


शिव की पूजा में इस मंत्र के द्वारा अर्धनारीश्वर भगवान भोलेनाथ को धूप समर्पण करना चाहिए-

ॐ नमः कपर्दिने च व्युप्त केशाय च नमः सहस्त्राक्षाय च शतधन्वने च |
नमो गिरिशयाय च शिपिविष्टाय च नमो मेढुष्टमाय चेषुमते च ||


भगवान भोलेनाथ की पूजा के दौरान इस मंत्र के द्वारा त्रिलोचनाय भगवान शिव को पुष्प समर्पण करना चाहिए-

ॐ नमः पार्याय चावार्याय च नमः प्रतरणाय चोत्तरणाय च |
नमस्तीर्थ्याय च कूल्याय च नमः शष्प्याय च फेन्याय च ||


इस मंत्र के द्वारा चन्द्रशेखर भगवान भोलेनाथ को नैवेद्य अर्पण करना चाहिए-

ॐ नमो ज्येष्ठाय च कनिष्ठाय च नमः पूर्वजाय चापरजाय च |
नमो मध्यमाय चापगल्भाय च नमो जघन्याय च बुधन्याय च ||


शिव पूजा के दौरान इस मंत्र के द्वारा भगवान शिव को ताम्बूल पूगीफल समर्पण करना चाहिए-

ॐ इमा रुद्राय तवसे कपर्दिने क्षयद्वीराय प्रभरामहे मतीः |
यशा शमशद् द्विपदे चतुष्पदे विश्वं पुष्टं ग्रामे अस्तिमन्ननातुराम् ||


भगवान शिव की पूजा करते समय इस मंत्र से भोलेनाथ को सुगन्धित तेल समर्पण करना चाहिए-

ॐ नमः कपर्दिने च व्युप्त केशाय च नमः सहस्त्राक्षाय च शतधन्वने च |
नमो गिरिशयाय च शिपिविष्टाय च नमो मेढुष्टमाय चेषुमते च ||


इस मंत्र के द्वारा भगवान भोलेनाथ को दीप दर्शन कराना चाहिए-

ॐ नमः आराधे चात्रिराय च नमः शीघ्रयाय च शीभ्याय च |
नमः ऊर्म्याय चावस्वन्याय च नमो नादेयाय च द्वीप्याय च ||


इस मंत्र से भगवान शिवजी को बिल्वपत्र समर्पण करना चाहिए-

दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनं पापनाशनम् |
अघोरपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम् ||

समाप्त ॐ नटराजाय नम:

शिव 108 नाम

1. शिव- कल्याण स्वरूप

2. महेश्वर- माया के अधीश्वर

3. शम्भू- आनंद स्स्वरूप वाले

4. पिनाकी- पिनाक धनुष धारण करने वाले

5. शशिशेखर- सिर पर चंद्रमा धारण करने वाले

6. वामदेव- अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले

7. विरूपाक्ष- भौंडी आंख वाले

8. कपर्दी- जटाजूट धारण करने वाले

9. नीललोहित- नीले और लाल रंग वाले

10. शंकर- सबका कल्याण करने वाले

11. शूलपाणी- हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले

12. खटवांगी- खटिया का एक पाया रखने वाले

13. विष्णुवल्लभ- भगवान विष्णु के अतिप्रेमी

14. शिपिविष्ट- सितुहा में प्रवेश करने वाले

15. अंबिकानाथ- भगवति के पति

16. श्रीकण्ठ – सुंदर कण्ठ वाले

17. भक्तवत्सल- भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले

18. भव- संसार के रूप में प्रकट होने वाले

19. शर्व – कष्टों को नष्ट करने वाले

20. त्रिलोकेश- तीनों लोकों के स्वामी

21. शितिकण्ठ – सफेद कण्ठ वाले

22. शिवाप्रिय- पार्वती के प्रिय

23. उग्र- अत्यंत उग्र रूप वाले

24. कपाली- कपाल धारण करने वाले

25. कामारी – कामदेव के शत्रु

26. अंधकारसुरसूदन – अंधक दैत्य को मारने वाले

27. गंगाधर – गंगा जी को धारण करने वाले

28. ललाटाक्ष – ललाट में आँख वाले

29. कालकाल- काल के भी काल

30. कृपानिधि – करूणा की खान

31. भीम – भयंकर रूप वाले

32. परशुहस्त – हाथ में फरसा धारण करने वाले

33. मृगपाणी – हाथ में हिरण धारण करने वाले

34. जटाधर – जटा रखने वाले 35. कैलाशवासी – कैलाश के निवासी

36. कवची- कवच धारण करने वाले

37. कठोर- अत्यन्त मजबूत देह वाले

38. त्रिपुरांतक – त्रिपुरासुर को मारने वाले

39. वृषांक – बैल के चिह्न वाली झंडा वाले

40. वृषभारूढ़- बैल की सवारी वाले

41. भस्मोद्धूलितविग्रह – सारे शरीर में भस्म लगाने वाले

42. सामप्रिय – सामगान से प्रेम करने वाले

43. स्वरमयी – सातों स्वरों में निवास करने वाले

44. त्रयीमूर्ति – वेदरूपी विग्रह करने वाले

45. अनीश्वर – जिसका और कोई मालिक नहीं है

46. सर्वज्ञ – सब कुछ जानने वाले

47. परमात्मा – सबका अपना आपा

48. सोमसूर्याग्निलोचन – चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आँख वाले

49. हवि – आहूति रूपी द्रव्य वाले

50. यज्ञमय – यज्ञस्वरूप वाले

51. सोम – उमा के सहित रूप वाले

52. पंचवक्त्र – पांच मुख वाले

53. सदाशिव – नित्य कल्याण रूप वाले

54. विश्वेश्वर – सारे विश्व के ईश्वर

55. वीरभद्र – बहादुर होते हुए भी शांत रूप वाले

56. गणनाथ – गणों के स्वामी

57. प्रजापति – प्रजाओं का पालन करने वाले

58. हिरण्यरेता – स्वर्ण तेज वाले

59. दुर्धुर्ष – किसी से नहीं दबने वाले

60. गिरीश – पहाड़ों के मालिक

61. गिरिश – कैलाश पर्वत पर सोने वाले

62. अनघ – पापरहित

63. भुजंगभूषण – सांप के आभूषण वाले

64. भर्ग – पापों को भूंज देने वाले

65. गिरिधन्वा – मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले

66. गिरिप्रिय – पर्वत प्रेमी

67. कृत्तिवासा – गजचर्म पहनने वाले

68. पुराराति – पुरों का नाश करने वाले

69. भगवान् – सर्वसमर्थ षड्ऐश्वर्य संपन्न

70. प्रमथाधिप – प्रमथगणों के अधिपति

71. मृत्युंजय – मृत्यु को जीतने वाले

72. सूक्ष्मतनु – सूक्ष्म शरीर वाले

73. जगद्व्यापी – जगत् में व्याप्त होकर रहने वाले

74. जगद्गुरू – जगत् के गुरू

75. व्योमकेश – आकाश रूपी बाल वाले

76. महासेनजनक – कार्तिकेय के पिता

77. चारुविक्रम – सुन्दर पराक्रम वाले

78. रूद्र – भक्तों के दुख देखकर रोने वाले

79. भूतपति – भूतप्रेत या पंचभूतों के स्वामी

80. स्थाणु – स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले

81. अहिर्बुध्न्य – कुण्डलिनी को धारण करने वाले

82. दिगम्बर – नग्न, आकाशरूपी वस्त्र वाले

83. अष्टमूर्ति – आठ रूप वाले

84. अनेकात्मा – अनेक रूप धारण करने वाले

85. सात्त्विक – सत्व गुण वाले

86. शुद्धविग्रह – शुद्धमूर्ति वाले

87. शाश्वत – नित्य रहने वाले

88. खण्डपरशु – टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले

89. अज – जन्म रहित

90. पाशविमोचन – बंधन से छुड़ाने वाले

91. मृड – सुखस्वरूप वाले

92. पशुपति – पशुओं के मालिक

93. देव – स्वयं प्रकाश रूप

94. महादेव – देवों के भी देव

95. अव्यय – खर्च होने पर भी न घटने वाले

96. हरि – विष्णुस्वरूप

97. पूषदन्तभित् – पूषा के दांत उखाडऩे वाले

98. अव्यग्र – कभी भी व्यथित न होने वाले

99. दक्षाध्वरहर – दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने वाले

100. हर – पापों व तापों को हरने वाले

101. भगनेत्रभिद् – भग देवता की आंख फोडऩे वाले

102. अव्यक्त – इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले

103. सहस्राक्ष – अनंत आँख वाले

104. सहस्रपाद – अनंत पैर वाले

105. अपवर्गप्रद – कैवल्य मोक्ष देने वाले

106. अनंत – देशकालवस्तुरूपी परिछेद से रहित

107. तारक – सबको तारने वाला

108. परमेश्वर – सबसे परे ईश्वर

समाप्त ॐ अघोराय नम:

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पढ़े:-Hanuman Chalisa In Hindi | श्री हनुमान चालीसा ( अर्थ सहित )

Final Words:- आशा करता हू कि ये सभी कहांनिया Mahamrityunjaya Mantra Hindi आपको जरूर पसंद आई होगी । और ये सभी कहानियां और को बहुत ही प्रेरित भी की होगा । अगर आप ऐसे ही प्रेरित कथाएँ प्रतिदिन पाना चाहते हैं तो आप हमारे इस वेबसाइट को जरूर सब्सक्राइब करले जिससे कि आप रोजाना नई काहानियों को पढ़ सके और आपको यह Post कैसी लगी हमें Comment Box में Comment करके जरूर बताए धन्यवाद।

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