
जैसे को तैसा
Majedar kahaniya:-एक जमींदार के लिए उसके कुछ किसान एक भुना हुआ मुर्गा और एक बोतल फल का रस ले आए. जमींदार ने अपने नौकर को बुलाकर चीजें उनके घर ले जाने को कहा. नौकर एक चालाक, शरीर लड़का था. यह जानते हुए जमींदार ने उससे कहा, “देखो, उस कपड़े में जिंदा चिड़िया है और बोतल में जहर है. खबरदार, जो रास्ते में उस कपड़े को हटाया, क्योंकि अगर उसने ऐसा किया तो चिड़िया उड़ जाएगी. और बोतल सूंघ भी ली तो तुम मर जाओगे. समझे?”
नौकर भी अपने मालिक को खूब पहचानता था. उसने एक आरामदेह कोना ढूंढा और बैठकर भुना मुर्गा खा गया. उसने बोतल में जो रस था वह भी सारा पी डाला. एक बूंद भी नहीं छोड़ा.
उधर जमींदार भोजन के समय घर पहुँचा और पत्नी से भोजन परोसने को कहा. उसकी पत्नी ने कहा, “जरा देर ठहरो. खाना अभी तैयार नहीं है.” जमींदार ने कहा, “मैंने जो मुर्गा और रस की बोतल नौकर के हाथ वही दे दो. वही काफी है.”
उसके गुस्से की सीमा न रही जब उसकी पत्नी ने बताया कि नौकर तो सुबह का गया अभी तक लौटा ही नहीं.
बिना कुछ बोले गुस्से से भरा जमींदार अपने काम की जगह वापस गया तो देखा नौकर तान कर सो रहा है. उसने उसे लात मारकर जगाया और किसान द्वारा लाई गई भेंट के बारे में पूछा.
लड़के ने कहा, “मालिक, मैं घर जा रहा था तो इतने जोर की हवा चली कि मुर्गे के ऊपर ढका कपड़ा उड़ गया और जैसा आपने कहा था, वह भी उड़ गया. मुझको बहुत डर लगा कि आप सज़ा देंगें और मैंने बचने के लिए बोतल में जो जहर था वह पी लिया. और अब यहाँ लेटा-लेटा मौत के आने का इंतजार कर रहा था.”
रावण से मुलाकात
कल सुबह-सुबह रास्ते में दस सिर वाला हट्टा कट्टा बंदा अचानक मेरी बाइक के आगे आ गया खैर जैसे तैसे ब्रेक लगाई और पूछा …
क्या अंकल 20-20 आँखें हैं … फिर भी दिखाई नहीं देता
जवाब मिला : तमीज से बोलो, हम लंकेश्वर रावण हैं
मैंने कहा : ओह अच्छा !
तो आप ही हो श्रीमान रावण एक बात बताओ ये दस-दस मुंह संभालने थोड़े मुश्किल नहीं हो जाते ? मेरा मतलब शैम्पू वगैरह करते टाइम … यू नो … और कभी सर दर्द शुरू हो जाए तो पता करना मुश्किल हो जाता होगा कि कौनसे सर में दर्द हो रहा है…?
रावण : पहले ये बताओ तुम लोग कैसे डील करते हो इतने सारे मुखोटों से ? हर रोज चेहरे पे एक नया मुखोटा उस पर एक और मुखोटा, उस पर एक और ! यार एक ही मुंह पर इतने नकाब … थक नहीं जाते ?
मैंने झेंपते हुए कहा : अरे-अरे आप तो सिरियस ले गए … मै तो वैसे ही … अच्छा ये बताओ मैंने सुना है आप कुछ ज्यादा ही अहंकारी हो?
रावण- हाहाहाहाहाहाहा
अब इसमे हंसने वाली क्या बात थी , कोई जोक मारा क्या मैंने ?
रावण- और नहीं तो क्या…एक कलियुगी इन्सान के मुंह से ये शब्द सुनकर हंसी नहीं आएगी तो और क्या होगा ?
तुम लोग साले एक छोटी मोटी डिग्री क्या ले लो, अँग्रेजी के दो-पवरी अक्षर क्या सीख लो, यूं इतरा के चलते हो जैसे तुमसे बड़ा ज्ञानी कोई है ही नहीं इस धरती पर … एक तुम ही समझदार बाकी सब गँवार ! और मैंने चारों वेद पढ़ के उनपे टीका टिप्पणी तक कर दी ! चंद्रमा की रोशनी से खाना पकवा लिया ! इतने-इतने क्लोन बना डाले, दुनिया का पहला विमान और खरे सोने की लंका बना दी ! तो थोड़ा बहुत घमंड कर भी लिया तो कौन आफत आ पड़ी… हैं?
मैं थोडा सा और सकुचाते हुए : चलो ठीक है बॉस,ये तो जस्टिफ़ाई कर दिया आपने, लेकिन … लेकिन गुस्सा आने पर बदला चुकाने को किसी की बीवी ही उठा के ले गए ! ससुरा मजाक है का ? बीवी न हुई छोटी मोटी साइकल हो गयी…दिल किया, उठा ले गए बताओ !
(एक पल के लिए रावण महाशय तनिक सोच में पड़ गए, मेरे चेहरे पर एक विजयी मुस्कान आने ही वाली थी कि फिर वही इरिटेटिंग अट्टहास )
हाहाहाहाहाहहह लुक हू इज़ सेइंग ! अबे मैंने श्री राम की बीवी को उठाया, मानता हूँ बहुत बड़ा पाप किया और उसका परिणाम भी भुगता ,पर मेघनाथ की कसम-कभी जबरदस्ती दूर…हाथ तक नहीं लगाया,उनकी गरिमा को रत्ती भर भी ठेस नहीं पहुंचाई और तुम …
तुम कलियुगी इन्सान !! छोटी-2 बच्चियों तक को नहीं बख्शते ! अपनी हवस के लिए किसी भी लड़की को शिकार बना लेते हो…कभी जबरदस्ती तो कभी झूठे वादों,छलावों से ! अरे तुम दरिंदों के पास कोई नैतिक अधिकार बचा भी है भी मेरे चरित्र पर उंगली उठाने का ?? फोकट में ही !
इस बार शर्म से सर झुकाने की बारी मेरी थी…पर मै भी ठहरा पक्का इन्सान ! मज़ाक उड़ाते हुए बोला…अरे जाओ-जाओ अंकल ! दशहरा कल ही है, सारी हेकड़ी निकाल देंगे देखना
(और इस बार लंकवेशवर जी इतनी ज़ोर से हँसे कि मै गिरते-गिरते बचा !)
यार तुम तो नवजोत सिंह सिद्धू के भी बाप हो ,बिना बात इतनी ज़ोर-2 से काहे हँसते हो…ऊपर से एक भी नहीं दस-दस मुंह लेके, कान का पर्दा फाड़ दो, जरा और ज़ोर से हंसो तो !
रावण- यार तुम बात ही ऐसी करते हो । वैसे कमाल है तुम इन्सानो की भी..विज्ञान में तो बहुत तरक्की कर ली पर कॉमन सैन्स ढेले का भी नहीं ! हर साल मेरा पुतला भर जला के खुश हो जाते हो …घुटन मुझे होती है तुम लोगों का लैवल देख कर…मतलब जानते नही दशहरा का ,बदनाम मुझे हर साल फालतू मे करते हो
किसी दिन टाइम निकाल कर तुम सब अपने अंदर के रावण को देख सको तो
पता चले की क्या तुम मुझे जलाने लायक हो ??
जलाना छोडो ! तुम आज के तुच्छ इन्सान मेरे पैर छूने लायकभी नही..
बाकी दिल बहलाने को कुछ भी करो
और उसके बाद मेरी हिम्मत जवाब दे गयी और मैं पतली गली से निकल लिया …
Majedar kahaniya (तुम्हारे साथ क्या हुआ)
एक सवेरे एक मरीज़ डॉक्टर के पास आता है और बोलता है की उसे पीठ में बहुत ज्यादा दर्द है । डॉक्टर उसे देखता है और पूछता है कि “ये दर्द कैसे शुरू हुआ”. मरीज़ बोलता है कि “जैसा आप जानते है कि मैं एक नाईट क्लब में काम करता हूँ ?आज सुबह मैं जल्दी घर चला गया , मुझे आपने घर के अन्दर से कुछ आवाज आती हुई सुनाई दी. जब मैं अन्दर गया तो मुझे पता चल गया कि अन्दर मेरी पत्नी के साथ कोई था क्योंकि बालकनी का दरवाजा खुला हुआ था. मैं बालकनी की तरफ़ दौड़ के गया तो मुझे कोई दिखाई नही दिया. तब मैंने नीचे देखा तो एक आदमी कपड़े पहनता हुआ भागा जा रहा है . मैंने पास में रक्खा फ्रिज उठाया और उसके ऊपर फेंक दिया तभी से ये दर्द है.”
तभी दूसरा मरीज़ आता है , उसे देख के ऐसा लग रहा था की उसके ऊपर से कार गुज़र गई है .डॉक्टर बोलता है “मेरे पहले मरीज़ की हालत ख़राब है लेकिन तुम्हारी तो बहुत ज्यादा बिगड़ी हुई है . तुम्हारे साथ क्या हुआ ?” वह बोला “जैसा आप जानते है की मैं बहुत दिनों से बेरोजगार था , आज मेरी नौकरी का पहला दिन था , मैं रात को घड़ी में अलार्म लगाना भूल गया सुबह मेरी आंख देर से खुली तो मैं जल्दी में कपडे पहनता हुआ घर से निकल रहा , आप विश्वास नही करोगे किसी ने मेरे ऊपर फ्रिज फ़ेंक दिया”.
तभी तीसरा मरीज आता है , उसकी हालत उन दोनों से ख़राब दिख रही थी . डॉक्टर चकरा जाता है और पूछता है कि “तुम्हारे साथ क्या हुआ ?””मैं एक फ्रिज में बैठा हुआ था किसी ने उसे तीसरे मंजिल से नीचे फ़ेंक दिया”
Majedar kahaniya (अति का भला)
मेरे एक मित्र है वो बेचारे अपने बोलने से परेशान हैं कई बार वो कुछ ऐसा बोल जाते है जो सामने वाले को बुरा लग जाता है । कुछ दिनों से वे चुप रह रहे थे पर अचानक कल उन्होंने अपना मुंख खोल दिया और सामने वाले से लडाई होते-होते बची कारण ये था की काफी दिनों से चुप रहने के कारण उनके पास बहुत सारी बातें इकट्ठी हो गई थी जो कल उन्होंने एक बार में ही बाहर निकल दी और सामने वाला इस बात के लिए तैयार नही था बाद में मैंने उनसे कहा की मालिक
“अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप । अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप”
वो बोले कह तो आप सही रहे हो “लेकिन क्या करे बोलते समय मैं भूल जाता हूँ की मेरी बात सामने वाले को बुरी लग जायेगी ।” Majedar kahaniya
अक्सर ऐसा होता है की हम बोलते समय ये भूल जाते है की सामने वाला इस बात से नाराज़ हो सकता है, चाहे वो बात सच ही क्यों न हो। इससे बचने का एक ही उपाय है की हम थोड़ा सा कम बोले और बोलने से पहले एक बार सोच ले ।
चाणक्य ने भी कहा है
“अति छबि ते सिय हरण भौ, नशि रावण अति गर्व ।
अतिहि दान ते बलि बँधे, अति तजिये थल सर्व ॥”
अर्थात
“अतिशय रूपवती होने के कारण सीता हरी गई । अतिशय गर्व से रावण का नाश हुआ ।
अतिशय दानी होने के कारण वलि को बँधना पडा । इसलिये लोगों को चाहिये कि किसी
बात में ‘अति’ न करें ॥” Majedar kahaniya
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