Mangal Beej Mantra (मंगल अष्टोत्तरशतनामावलिः)
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॥ मंगल अष्टोत्तरशतनामावलिः ॥
मङ्गल बीज मन्त्र –
ॐ क्राँ क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः ॥
ॐ महीसुताय नमः ॥
ॐ महाभागाय नमः ॥
ॐ मङ्गलाय नमः ॥
ॐ मङ्गलप्रदाय नमः ॥
ॐ महावीराय नमः ॥
ॐ महाशूराय नमः ॥
ॐ महाबलपराक्रमाय नमः ॥
ॐ महारौद्राय नमः ॥
ॐ महाभद्राय नमः ॥
ॐ माननीयाय नमः ॥
ॐ दयाकराय नमः ॥
ॐ मानदाय नमः ॥
ॐ अपर्वणाय नमः ॥
ॐ क्रूराय नमः ॥
ॐ तापत्रयविवर्जिताय नमः ॥
ॐ सुप्रतीपाय नमः ॥
ॐ सुताम्राक्षाय नमः ॥
ॐ सुब्रह्मण्याय नमः ॥
ॐ सुखप्रदाय नमः ॥
ॐ वक्रस्तम्भादिगमनाय नमः ॥
ॐ वरेण्याय नमः ॥
ॐ वरदाय नमः ॥
ॐ सुखिने नमः ॥
ॐ वीरभद्राय नमः ॥
ॐ विरूपाक्षाय नमः ॥
ॐ विदूरस्थाय नमः ॥
ॐ विभावसवे नमः ॥
ॐ नक्षत्रचक्रसञ्चारिणे नमः ॥
ॐ क्षत्रपाय नमः ॥
ॐ क्षात्रवर्जिताय नमः ॥
ॐ क्षयवृद्धिविनिर्मुक्ताय नमः ॥
ॐ क्षमायुक्ताय नमः ॥
ॐ विचक्षणाय नमः ॥
ॐ अक्षीणफलदाय नमः ॥
ॐ चतुर्वर्गफलप्रदाय नमः ॥
ॐ वीतरागाय नमः ॥
ॐ वीतभयाय नमः ॥
ॐ विज्वराय नमः ॥
ॐ विश्वकारणाय नमः ॥
ॐ नक्षत्रराशिसंचाराय नमः ॥
ॐ नानाभयनिकृन्तनाय नमः ॥
ॐ वन्दारुजनमन्दाराय नमः ॥
ॐ वक्रकुञ्चितमूर्धजाय नमः ॥
ॐ कमनीयाय नमः ॥
ॐ दयासाराय नमः ॥
ॐ कनत्कनकभूषणाय नमः ॥
ॐ भयघ्नाय नमः ॥
ॐ भव्यफलदाय नमः ॥
ॐ भक्ताभयवरप्रदाय नमः ॥
ॐ शत्रुहन्त्रे नमः ॥
ॐ शमोपेताय नमः ॥
ॐ शरणागतपोषनाय नमः ॥
ॐ साहसिने नमः ॥
ॐ सद्गुणाध्यक्षाय नमः ॥
ॐ साधवे नमः ॥
ॐ समरदुर्जयाय नमः ॥
ॐ दुष्टदूराय नमः ॥
ॐ शिष्टपूज्याय नमः ॥
ॐ सर्वकष्टनिवारकाय नमः ॥
ॐ दुश्चेष्टवारकाय नमः ॥
ॐ दुःखभञ्जनाय नमः ॥
ॐ दुर्धराय नमः ॥
ॐ हरये नमः ॥
ॐ दुःस्वप्नहन्त्रे नमः ॥
ॐ दुर्धर्षाय नमः ॥
ॐ दुष्टगर्वविमोचनाय नमः ॥
ॐ भरद्वाजकुलोद्भूताय नमः ॥
ॐ भूसुताय नमः ॥
ॐ भव्यभूषणाय नमः ॥
ॐ रक्ताम्बराय नमः ॥
ॐ रक्तवपुषे नमः ॥
ॐ भक्तपालनतत्पराय नमः ॥
ॐ चतुर्भुजाय नमः ॥
ॐ गदाधारिणे नमः ॥
ॐ मेषवाहाय नमः ॥
ॐ मिताशनाय नमः ॥
ॐ शक्तिशूलधराय नमः ॥
ॐ शाक्ताय नमः ॥
ॐ शस्त्रविद्याविशारदाय नमः ॥
ॐ तार्किकाय नमः ॥
ॐ तामसाधाराय नमः ॥
ॐ तपस्विने नमः ॥
ॐ ताम्रलोचनाय नमः ॥
ॐ तप्तकाञ्चनसंकाशाय नमः ॥
ॐ रक्तकिञ्जल्कसंनिभाय नमः ॥
ॐ गोत्राधिदेवाय नमः ॥
ॐ गोमध्यचराय नमः ॥
ॐ गुणविभूषणाय नमः ॥
ॐ असृजे नमः ॥
ॐ अङ्गारकाय नमः ॥
ॐ अवन्तीदेशाधीशाय नमः ॥
ॐ जनार्दनाय नमः ॥
ॐ सूर्ययाम्यप्रदेशस्थाय नमः ॥
ॐ घुने नमः ॥
ॐ यौवनाय नमः ॥
ॐ याम्यहरिन्मुखाय नमः ॥
ॐ याम्यदिङ्मुखाय नमः ॥
ॐ त्रिकोणमण्डलगताय नमः ॥
ॐ त्रिदशाधिपसन्नुताय नमः ॥
ॐ शुचये नमः ॥
ॐ शुचिकराय नमः ॥
ॐ शूराय नमः ॥
ॐ शुचिवश्याय नमः ॥
ॐ शुभावहाय नमः ॥
ॐ मेषवृश्चिकराशीशाय नमः ॥
ॐ मेधाविने नमः ॥
ॐ मितभाषणाय नमः ॥
ॐ सुखप्रदाय नमः ॥
ॐ सुरूपाक्षाय नमः ॥
ॐ सर्वाभीष्टफलप्रदाय नमः ॥
॥ इति मङ्गल अष्टोत्तरशतनामावलिः सम्पूर्णम् ॥
समाप्त
ॐ सूर्ययाम्यप्रदेशस्थाय नमः
Mangal Mantra (मंगल के लिए मंत्र:)
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॥ मंगल के लिए मंत्र ॥
ज्योतिष में सभी नौ ग्रह का अपना विशिष्ट महत्व होता है. सभी ग्रह अपनी दशा/अन्तर्दशा में अपने फल प्रदान करने की क्षमता रखते हैं. यदि ग्रह शुभ होकर पीड़ित है तब उन्हें कई प्रकार से बली बनाया जा सकता है और यदि ग्रह कुंडली में अशुभ भाव का स्वामी है तब भी उसका उपचार किया जा सकता है. ग्रह को शुभ अथवा बली बनाने के लिए कई प्रकार के उपाय किए जाते है. सबसे आसान, सरल और बिना पैसा खर्च किए काम आने वाला उपाय होता है मंत्र जाप. इसमें आपका थोड़ा सा समय लगता है और फल बहुत अच्छे और शुभ प्राप्त होते हैं.
मंगल की दशा में नीचे लिखे मंत्रों में से किसी एक मंत्र का जाप किया जा सकता है. आप किसी भी एक मंत्र का चुनाव अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं. रात्रि समय में ही मंगल के मंत्र का जाप करें तो बेहतर होता है. किसी भी मंत्र की एक माला का जाप करें. एक माला अर्थात 108 बार मंत्र जाप करना.
मंगल के लिए वैदिक मंत्र –
“ऊँ अग्निमूर्धादिव: ककुत्पति: पृथिव्यअयम। अपा रेता सिजिन्नवति ।”
मंगल के लिए तांत्रोक्त मंत्र –
ऊँ हां हंस: खं ख:
ऊँ हूं श्रीं मंगलाय नम:
ऊँ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:
Mangal Mantra मंगल का नाम मंत्र –
ऊँ अं अंगारकाय नम:
ऊँ भौं भौमाय नम:
मंगल का पौराणिक मंत्र –
ऊँ धरणीगर्भसंभूतं विद्युतकान्तिसमप्रभम । कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम ।।
मंगल गायत्री मंत्र –
ऊँ क्षिति पुत्राय विदमहे लोहितांगाय धीमहि-तन्नो भौम: प्रचोदयात
समाप्त
ॐ असृजे नमः
मंगल ग्रह की अशुभता को दूर करने के लिए करें ये उपाय
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॥ मंगल ग्रह की अशुभता को दूर करने के लिए करें ये उपाय ॥
ज्योतिष शास्त्र में मंगल को सेनापति माना गया है। मंगल की प्रधानता वाले जातक साहसी, स्वस्थ और आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते हैं। ये अपने सिद्धांतों एवं निर्णयों पर अडिग रहते हैं। मेष, मंगल, वृश्चिक राशि के स्वामी होते हैं।
लग्न कुंडली के दशम भाव में मंगल विशिष्ट माने गए हैं। सेना, पुलिस, जमीन, डॉक्टरी अध्ययन एवं हथियार संचालन इनके विषय हैं। हमारे शास्त्रों में मंगल को भूमि पुत्र भी कहा गया है।
मकर राशि में 28 डिग्री अंश पर उच्च के तथा इन्हीं अंशों पर कर्क राशि में नीच के कहलाते हैं। दशम भाव सबसे बली भाव है, तो तृतीय एवं छठे भाव में भी यह कारक होते हैं। सूर्य, चंद्र, बृहस्पति इनके मित्र ग्रह हैं एवं इनके साथ युति शुभ मानी गई है जबकि बुध एवं राहु इनके शत्रु हैं।
जिनकी कुंडली में मंगल शुभ स्थिति में होते हैं, वे उच्च स्तरीय साहसिक कार्य करते हैं, इनके विपरीत यदि मंगल नीच के हैं या पाप ग्रहों से प्रभावित होते हैं तो जातक के हिंसात्मक कार्यों में लिप्त होने की संभावनाएं पाई जाती हैं। चौथे भाव के मंगल शास्त्रों में अशुभ माने गए हैं।
विवाह प्रकरणों में मंगल की विशेष भूमिका होती है। जिन जातकों के प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भाव में मंगल हो, तो ऐसे जातक को मांगलिक कहा जाता है एवं इनके रिश्ते उसी जातक से किए जाते हैं जो मांगलिक हो। यद्यपि शास्त्रों में मांगलिक दोषों का परिहार भी बताया गया है परंतु इसकी जांच विज्ञ-ज्योतिषी से करा कर ही संबंध तय करने चाहिएं।
मंगल प्रधान जातकों का भाग्योदय देरी से होता है। यदि कोई जातक शारीरिक व्याधियों से ग्रसित रहता है, ऋण ग्रस्तता, जिगर के रोग, होंठ निरंतर फटना या नीचे के होंठ का फटना आदि हों तो समझें मंगल उचित परिणाम नहीं दे रहे हैं। भाइयों से आपसी विवाद, अचल संपत्ति को लेकर झगड़ा-फसाद या न्यायिक प्रक्रिया में उलझना, अग्रि प्रकोप आदि अशुभ मंगल के कारण होता है।
यदि किसी जातक को मंगल ग्रह के विपरीत परिणाम प्राप्त हो रहे हों तो उनकी अशुभता को दूर करने के लिए निम्र उपाय करने चाहिएं-
- यदि संतान को कष्ट या नुक्सान हो रहा हो तो नीम का पेड़ लगाएं, रात्रि सिरहाने जल से भरा पात्र रखें एवं सुबह पेड़ में डाल दें।
- पितरों का आशीर्वाद लें। बड़े भाई एवं भाभी की सेवा करें, फायदा होगा।
- लाल कनेर के फूल, रक्त चंदन आदि डाल कर स्नान करें।
- मूंगा, मसूर की दाल, ताम्र, स्वर्ण, गुड़, घी, जायफल आदि दान करें।
- मंगल यंत्र बनवा कर विधि-विधानपूर्वक मंत्र जप करें और इसे घर में स्थापित करें।
- मंगल मंत्र ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाया नम:।’ मंत्र के 40000 जप करें या कराएं फिर दशांश तर्पण, मार्जन व खदिर की समिधा से हवन करें।
- मूंगा धारण करें।
उपरोक्त मंत्र के अलावा मंगल के निम्र मंत्रों का जप भी कर सकते हैं-
ॐ अंगारकाय नम:।’
ॐ अंङ्गारकाय विद्यमहे, शक्ति हस्ताय’ धीमहि, तन्नौ भौम: प्रचोदयात्।।
अन्य उपाय : हमेशा लाल रुमाल रखें, बाएं हाथ में चांदी की अंगूठी धारण करें, कन्याओं की पूजा करें और स्वर्ण न पहनें, मीठी तंदूरी रोटियां कुत्ते को खिलाएं, ध्यान रखें, घर में दूध उबल कर बाहर न गिरे।
समाप्त
ॐ असृजे नमः
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