Moral Story In Hindi | Moral kahani in hindi | शिक्षाप्रद काहानियाँ

Moral Story In Hindi:- हम सभी को काहानियाँ पढ़ने का शौक होता ही हैं और kahani पढ़ने के साथ ही साथ अगर हमे कोई शिक्षा भी मिले तो इससे बढ़िया और क्या बात होगी। तो इसी लिए हम आपके लिए बहुत ही शिक्षाप्रद वाली Hindi Moral stories लाए हैं जिनको आप जरूर पढि़ए क्योकि अगर आप इन Moral Story को पढ़ते हैं तो आप को जरूर एक अंदर से ऊर्जा मिलेगीं जिससे की आप अपने जीवन में जरूर कुछ न कुछ बड़ा कर सकेगें। यह सभी Moral Story In Hindi सभी बच्चो और बड़ो के लिए हैं । तो आप इन सभी Moral kahani In Hindi को जरूर पढ़े। moral story in hindi for kids

मनुष्य की कीमत

लोहे की दुकान में अपने पिता के साथ काम कर रहे एक बालक ने अचानक ही अपने पिता से पुछा – “पिताजी इस दुनिया में मनुष्य की क्या कीमत होती है ?”

पिताजी एक छोटे से बच्चे से ऐसा गंभीर सवाल सुन कर हैरान रह गये.

फिर वे बोले “बेटे एक मनुष्य की कीमत आंकना बहुत मुश्किल है, वो तो अनमोल है.”

बालक – क्या सभी उतना ही कीमती और महत्त्वपूर्ण हैं ?

पिताजी – हाँ बेटे.

बालक कुछ समझा नही उसने फिर सवाल किया – तो फिर इस दुनिया मे कोई गरीब तो कोई अमीर क्यो है? किसी की कम रिस्पेक्ट तो कीसी की ज्यादा क्यो होती है?

सवाल सुनकर पिताजी कुछ देर तक शांत रहे और फिर बालक से स्टोर रूम में पड़ा एक लोहे का रॉड लाने को कहा.

रॉड लाते ही पिताजी ने पुछा – इसकी क्या कीमत होगी?

बालक – 200 रूपये.

पिताजी – अगर मै इसके बहुत से छोटे-छटे कील बना दू तो इसकी क्या कीमत हो जायेगी ?

बालक कुछ देर सोच कर बोला – तब तो ये और महंगा बिकेगा लगभग 1000 रूपये का .

पिताजी – अगर मै इस लोहे से घड़ी के बहुत सारे स्प्रिंग बना दूँ तो?

बालक कुछ देर गणना करता रहा और फिर एकदम से उत्साहित होकर बोला ” तब तो इसकी कीमत बहुत ज्यादा हो जायेगी.”

फिर पिताजी उसे समझाते हुए बोले – “ठीक इसी तरह मनुष्य की कीमत इसमे नही है की अभी वो क्या है, बल्की इसमे है कि वो अपने आप को क्या बना सकता है.”

बालक अपने पिता की बात समझ चुका था .

Moral:-Friends अक्सर हम अपनी सही कीमत आंकने मे गलती कर देते है. हम अपनी present status को देख कर अपने आप को valueless समझने लगते है. लेकिन हममें हमेशा अथाह शक्ति होती है. हमारा जीवन हमेशा सम्भावनाओ से भरा होता है. हमारी जीवन मे कई बार स्थितियाँ अच्छी नही होती है पर इससे हमारी Value कम नही होती है. मनुष्य के रूप में हमारा जन्म इस दुनिया मे हुआ है इसका मतलब है हम बहुत special और important हैं . हमें हमेशा अपने आप को improve करते रहना चाहिये और अपनी सही कीमत प्राप्त करने की दिशा में बढ़ते रहना चाहिये.

प्रेम और परमात्मा

संतो की उपदेश देने की रीति-नीति भी अनूठी होती है. कई संत अपने पास आने वाले से ही प्रश्न करते है और उसकी जिज्ञासा को जगाते है; और सही-सही मार्गदर्शन कर देते है.

आचार्य रामानुजाचार्य एक महान संत एवं संप्रदाय-धर्म के आचार्य थे . दूर दूर से लोग उनके दर्शन एवं मार्गदर्शन के लिए आते थे. सहज तथा सरल रीति से वे उपदेश देते थे.

एक दिन एक युवक उनके पास आया और पैर में वंदना करके बोला :

“मुझे आपका शिष्य होना है. आप मुझे अपना शिष्य बना लीजिए.”

रामानुजाचार्यने कहा : “तुझे शिष्य क्यों बनना है ?” युवक ने कहा : “मेरा शिष्य होने का हेतु तो परमात्मा से प्रेम करना है.”

संत रामानुजाचार्य ने तब कहा : “इसका अर्थ है कि तुझे परमात्मा से प्रीति करनी है. परन्तु मुझे एक बात बता दे कि क्या तुझे तेरे घर के किसी व्यक्ति से प्रेम है ?”

युवक ने कहा : “ना, किसीसे भी मुझे प्रेम नहीं.” तब फिर संतश्री ने पूछा : “तुझे तेरे माता-पिता या भाई-बहन पर स्नेह आता है क्या ?”

युवक ने नकारते हुए कहा ,“मुझे किसी पर भी तनिकमात्र भी स्नेह नहीं आता. पूरी दुनिया स्वार्थपरायण है, ये सब मिथ्या मायाजाल है. इसीलिए तो मै आपकी शरण में आया हूँ.”

तब संत रामानुज ने कहा : “बेटा, मेरा और तेरा कोई मेल नहीं. तुझे जो चाहिए वह मै नहीं दे सकता.”

युवक यह सुन स्तब्ध हो गया.

उसने कहा : “संसार को मिथ्या मानकर मैने किसी से प्रीति नहीं की. परमात्मा के लिए मैं इधर-उधर भटका. सब कहते थे कि परमात्मा के साथ प्रीति जोड़ना हो तो संत रामानुजके पास जा; पर आप तो इन्कार कर रहे है.”

संत रामानुज ने कहा : “यदि तुझे तेरे परिवार से प्रेम होता, जिन्दगी में तूने तेरे निकट के लोगों में से किसी से भी स्नेह किया होता तो मै उसे विशाल स्वरुप दे सकता था . थोड़ा भी प्रेमभाव होता, तो मैं उसे ही विशाल बना के परमात्मा के चरणों तक पहोंचा सकता था .

छोटे से बीजमें से विशाल वटवृक्ष बनता है. परन्तु बीज तो होना चाहिए. जो पत्थर जैसा कठोर एवं शुष्क हो उस में से प्रेम का झरना कैसे बह सकता हूँ? यदि बीज ही नही तो वटवृक्ष कहाँ से बना सकता हूँ? तूने किसी से प्रेम किया ही नही, तो तेरे भीतर परमात्मा के प्रति प्रेम की गंगा कैसे बहा सकता हूँ?

Moral:- काहानी का सार ये है कि जिसे अपने निकट के भाई-बंधुओं से प्रेमभाव नही, उसे ईश्वर से प्रेम भाव नही हो सकता हमें अपने आस पास के लोगों और कर्तव्यों से मुंह नही मोड़ सकते । यदि हमें आध्यात्मिक कल्याण चाहिए तो अपने धर्म-कर्तव्यो का भी उत्तम रीति से पालन करना होगा।

तीन विकल्प

बहुत समय पहले की बात है , किसी गाँव में एक किसान रहता था. उस किसान की एक बहुत ही सुन्दर बेटी थी. दुर्भाग्यवश, गाँव के जमींदार से उसने बहुत सारा धन उधार लिया हुआ था. जमीनदार बूढा और कुरूप था. किसान की सुंदर बेटी को देखकर उसने सोचा क्यूँ न कर्जे के बदले किसान के सामने उसकी बेटी से विवाह का प्रस्ताव रखा जाये.

जमींदार किसान के पास गया और उसने कहा – तुम अपनी बेटी का विवाह मेरे साथ कर दो, बदले में मैं तुम्हारा सारा कर्ज माफ़ कर दूंगा . जमींदार की बात सुन कर किसान और किसान की बेटी के होश उड़ गए.तब जमींदार ने कहा –चलो गाँव की पंचायत के पास चलते हैं और जो निर्णय वे लेंगे उसे हम दोनों को ही मानना होगा.वो सब मिल कर पंचायत के पास गए और उन्हें सब कह सुनाया. उनकी बात सुन कर पंचायत ने थोडा सोच विचार किया और कहा-

ये मामला बड़ा उलझा हुआ है अतः हम इसका फैसला किस्मत पर छोड़ते हैं . जमींदार सामने पड़े सफ़ेद और काले रोड़ों के ढेर से एक काला और एक सफ़ेद रोड़ा उठाकर एक थैले में रख देगा फिर लड़की बिना देखे उस थैले से एक रोड़ा उठाएगी, और उस आधार पर उसके पास तीन विकल्प होंगे :

१. अगर वो काला रोड़ा उठाती है तो उसे जमींदार से शादी करनी पड़ेगी और उसके पिता का कर्ज माफ़ कर दिया जायेगा.

२. अगर वो सफ़ेद पत्थर उठती है तो उसे जमींदार से शादी नहीं करनी पड़ेगी और उसके पिता का कर्फ़ भी माफ़ कर दिया जायेगा.

३. अगर लड़की पत्थर उठाने से मना करती है तो उसके पिता को जेल भेज दिया जायेगा।

पंचायत के आदेशानुसार जमींदार झुका और उसने दो रोड़े उठा लिए . जब वो रोड़ा उठा रहा था तो तब तेज आँखों वाली किसान की बेटी ने देखा कि उस जमींदार ने दोनों काले रोड़े ही उठाये हैं और उन्हें थैले में डाल दिया है।

लड़की इस स्थिति से घबराये बिना सोचने लगी कि वो क्या कर सकती है , उसे तीन रास्ते नज़र आये:

१. वह रोड़ा उठाने से मना कर दे और अपने पिता को जेल जाने दे.

२. सबको बता दे कि जमींदार दोनों काले पत्थर उठा कर सबको धोखा दे रहा हैं।

3. वह चुप रहकर काला पत्थर उठा ले और अपने पिता को कर्ज से बचाने के लिए जमींदार से सादी करके अपना जीवन बलिदान कर दे.

उसे लगा कि दूसरा तरीका सही हैं , पर तभी उसे एक और भी अच्छा उपाय सूझा उसने थैले में अपना हाथ डाला और एक रोड़ा अपने हाथ में ले लिया और बिना रोड़े कि तरफ देखे उसके हाथ से फिसलने का नाटक किया, उसका रोड़ा अव हाजारों रोड़े के के ढेर में गिर चुका था और उनमें ही कही खो चुका था।

लड़की ने कहां- हे भगवान मैं कितनी फूहड़ हूँ लेकिन कोई बात नही आप लोग थैले के अंदर देख लिजिए कि कौन से रंग का रोड़ा बचा हैं तब आपको पता चल जायेगा कि मैने कौन सा उठाया था जो मेंरे हाथ से गिर गया।

थैले में बचा रोड़ा काला था सब लोगों नें मान लिया कि लड़की ने सफेद पत्थर ही उठाया था जमींदार के अंदर इतना साहस नही था कि कि वह अपनी चोरी मान ले लड़की ने अपने सोच से असम्भव को संभव कर दिया।

Moral:-मित्रो, हमारे जीवन में कई बार ऐसी ही परिस्थितियां आ जाती हैं जहां सबकुछ धुधला दिखता हैं हर रास्ता नाकामयाबी की ओर जाता महसूस होता हैं पर ऐसे समय पर यदि हम परम्परा से हटकर सोचने का प्रयास करे तो उस लड़की की तरह अपनी मुश्किलो को दूर कर सकते है।

Moral Story In Hindi सही दिशा

एक पहलवान जैसा, हट्टा-कट्टा, लंबा-चौड़ा व्यक्ति सामान लेकर किसी स्टेशन पर उतरा। उसनेँ एक टैक्सी वाले से कहा कि मुझे साईँ बाबा के मंदिर जाना है।

टैक्सी वाले नेँ कहा- 200 रुपये लगेँगे। उस पहलवान आदमी नेँ बुद्दिमानी दिखाते हुए कहा- इतने पास के दो सौ रुपये, आप टैक्सी वाले तो लूट रहे हो। मैँ अपना सामान खुद ही उठा कर चला जाऊँगा।

वह व्यक्ति काफी दूर तक सामान लेकर चलता रहा। कुछ देर बाद पुन: उसे वही टैक्सी वाला दिखा, अब उस आदमी ने फिर टैक्सी वाले से पूछा – भैया अब तो मैने आधा से ज्यादा दुरी तर कर ली है तो अब आप कितना रुपये लेँगे?

टैक्सी वाले नेँ जवाब दिया- 400 रुपये।

उस आदमी नेँ फिर कहा- पहले दो सौ रुपये, अब चार सौ रुपये, ऐसा क्योँ।

टैक्सी वाले नेँ जवाब दिया- महोदय, इतनी देर से आप साईँ मंदिर की विपरीत दिशा मेँ दौड़ लगा रहे हैँ जबकि साईँ मँदिर तो दुसरी तरफ है।

उस पहलवान व्यक्ति नेँ कुछ भी नहीँ कहा और चुपचाप टैक्सी मेँ बैठ गया।

इसी तरह जिँदगी के कई मुकाम मेँ हम किसी चीज को बिना गंभीरता से सोचे सीधे काम शुरु कर देते हैँ, और फिर अपनी मेहनत और समय को बर्बाद कर उस काम को आधा ही करके छोड़ देते हैँ। किसी भी काम को हाथ मेँ लेनेँ से पहले पुरी तरह सोच विचार लेवेँ कि क्या जो आप कर रहे हैँ वो आपके लक्ष्य का हिस्सा है कि नहीँ। Moral Story In Hindi

Moral:-हमेशा एक बात याद रखेँ कि दिशा सही होनेँ पर ही मेहनत पूरा रंग लाती है और यदि दिशा ही गलत हो तो आप कितनी भी मेहनत का कोई लाभ नहीं मिल पायेगा। इसीलिए दिशा तय करेँ और आगे बढ़ेँ कामयाबी आपके हाथ जरुर थामेगी।

Moral Story In Hindi दिखावे का फल

मैनेजमेंट की शिक्षा प्राप्त एक युवा नौजवान की बहुत अच्छी नौकरी लग जाती है, उसे कंपनी की और से काम करने के लिए अलग से एक केबिन दे दिया जाता है।

वह नौजवान जब पहले दिन office जाता है और बैठ कर अपने शानदार केबिन को निहार रहा होता है तभी दरवाजा खट -खटाने की आवाज आती है दरवाजे पर एक साधारण सा व्यक्ति रहता है , पर उसे अंदर आने कहनेँ के बजाय वह युवा व्यक्ति उसे आधा घँटा बाहर इंतजार करनेँ के लिए कहता है। आधा घँटा बीतनेँ के पश्चात वह आदमी पुन: office के अंदर जानेँ की अनुमति मांगता है, उसे अंदर आते देख युवक टेलीफोन से बात करना शुरु कर देता है. वह फोन पर बहुत सारे पैसोँ की बातेँ करता है, अपनेँ ऐशो – आराम के बारे मेँ कई प्रकार की डींगें हाँकनेँ लगता है, सामनेँ वाला व्यक्ति उसकी सारी बातेँ सुन रहा होता है, पर वो युवा व्यक्ति फोन पर बड़ी-बड़ी डींगें हांकना जारी रखता है.

जब उसकी बातेँ खत्म हो जाती हैँ तब जाकर वह उस साधारण व्यक्ति से पूछता है है कि तुम यहाँ क्या करनेँ आये हो?

वह आदमी उस युवा व्यक्ति को विनम्र भाव से देखते हुए कहता है , “साहब, मैँ यहाँ टेलीफोन रिपेयर करनेँ के लिए आया हुँ, मुझे खबर मिली है कि आप जिस टेलीफोन से बात कर रह थे वो हफ्ते भर से बँद पड़ा है इसीलिए मैँ इस टेलीफोन को रिपेयर करनेँ के लिए आया हूँ।”

इतना सुनते ही युवा व्यक्ति शर्म से लाल हो जाता है और चुप-चाप कमरे से बाहर चला जाता है। उसे उसके दिखावे का फल मिल चुका होता है.

कहानी का सार यह है कि जब हम सफल होते हैँ तब हम अपनेँ आप पर बहुत गर्व होता हैँ और यह स्वाभाविक भी है। गर्व करनेँ से हमे स्वाभिमानी होने का एहसास होता है लेकिन एक सी के बाद ये अहंकार का रूप ले लेता है और आप स्वाभिमानी से अभिमानी बन जाते हैं और अभिमानी बनते ही आप दुसरोँ के सामनेँ दिखावा करने लगते हैं । Moral Story In Hindi

Moral:– अतः हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम चाहे कितने भी सफल क्यों ना हो जाएं व्यर्थ के अहंकार और झूठे दिखावे में ना पड़े अन्यथा उस युवक की तरह हमें भी कभी न कभी शर्मिंदा होना पड़ सकता हैं।

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Final Words:- आशा करता हू कि ये सभी कहांनिया Moral Story In Hindi आपको जरूर पसंद आई होगी । और ये सभी कहानियां और को बहुत ही प्रेरित भी की होगा । अगर आप ऐसे ही प्रेरित और रोचक Kahani प्रतिदिन पाना चाहते हैं तो आप हमारे इस वेबसाइट को जरूर सब्सक्राइब करले जिससे कि आप रोजाना नई काहानियों को पढ़ सके धन्यवाद।

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