Mystery story in Hindi | रहस्यमयी कहानियाँ

Mystery story in Hindi:- आज हम आपके लिए कुछ रस्यमयी सच्ची घटनाओं पर आधारित कहानियाँ दे रहें हैं जिनको आप जरूर पढ़े। ये सभी कहानियाँ सच्ची घटनाओं पर आधारित हैं आपको ये सभी कहानियाँ पढ़ने के बाद आप बहुत ही रोमांचित होने वाले हैं तो आप सभी से अनुरोध हैं कि आपको अगर Mystery story in Hindi का शौक है तो आप इन कहानियों को जरूर पढ़े।

उड़ता समुन्द्री जहाज

फ्लाइंग डचमैन एक ऐसा जहाज जिसकी परछाई पानी में नहीं हवा में उलटी दिखाई देती है!

अफ्रीका के तटीय समुन्द्र में जहाज पर नाविक ईश्वर से मौसम खराब ना होने की प्रार्थना करते हैं इसलिए नहीं कि ये नाविक तूफानों से डरते हैं बल्कि इसलिए क्योंकि मौसम खराब होने पर उन्हें “फ्लाइंग डचमैन” दिखाई देता है और इस जहाज का दिखना एक अभिशापित भविष्यवाणी है जो किसी की मौत के साथ पूरी होती है। १७ वीं सदी की मिथक लोककथाओं के मुताबिक़ फ्लाइंग डचमैन एक ऐसा भूतिया जहाज है जो कभी बंदरगाह तक नहीं पहुँच पाया। इन मिथक कथाओं के अनुसार इस भूतिया जहाज को तेज रोशनी फैंकने वाले जहाज के तौर पर देखा जाता है और जब ये रोशनी किसी को दिखाई देती है तो वो जल्द ही मौत की नींद में सो जाता है।

उद्गम-: समय समय पर कई लेखकों ने अपनी किताबों में इस भूतिया जहाज का जिक्र किया है। सबसे पुराना मौजूदा संस्करण १७९० में जॉन मैकडोनाल्ड द्वारा लिखित किताब है,जिसमे वो लिखता है कि –: नाविकों ने बताया कि तूफानी मौसम में उन्होंने फ्लाइंग डचमैन को साक्षात देखा था। ये कहानी इस तरह है कि लबादा ओढे डचमैन को खराब मौसम में अपनी नाव को बंदरगाह तक ले जाने के लिए कोई पायलट नहीं मिला और उसकी नाव खो गई और तबसे खराब मौसम में उसकी झलक नज़र आती है।

अगला संपादित संस्मण १७९५ में जॉर्ज बर्रिन्गटन द्वारा लिखित “न्यू साउथ वैल्स की एक यात्रा” में मिलता है-: मैंने कभी ऐसे अंधविश्वास पर यकीन नहीं किया पर प्राप्त जानकारी के मुताबिक़ ,कुछ साल पहले एक डच मैन अपनी नाव समेत समुन्द्र में कहीं खो गया और उस नाव में से कोई जिन्दा वापिस नहीं बचा और जल्द ही उसके गम में उसकी पत्नी भी मर गई और जहाँ ये हादसा हुआ वहां से गुजरती नावों के नाविकों का कहना है कि उन्होंने खराब मौसम में किसी को समुन्द्र में देखा,ये सच था या सिर्फ नाविकों की कल्पना ,ये नहीं पता लेकिन ये खबर जंगल में आग की तरह फ़ैल गई और अब जो भी नाविक वहाँ से गुजरते वे कहते कि रात में या कोहरे में उन्होंने किसी को देखा है,जिसकी एक झलक दिखते ही वो अगले पल गायब हो जाता है।

साक्षत्कार -: राजा जॉर्ज ५वे ने अपने भाई और कुछ और लोगों के साथ इस जहाज को देखने का दावा किया है –

११ जुलाई १८८० को सुबह ४ बजे फ्लाइंग डचमैन को मैंने,मेरे भाई ने और कप्तान ने तेज लाल रोशनी में देखा और जब उस भूतिया जहाज को ढूँढा गया तो समुन्द्र में उसका नामो निशान भी नहीं था, लेकिन फिर से वहीँ पर इस भूतिया जहाज को १०:४५ पर १३ लोगों ने एक साथ देखा।

भ्रम (मिराज़)-: एक जहाज पर कुछ नाविकों ने कोहरे में कुछ दुरी पर आसमान में एक समुंन्द्री जहाज की उल्टी परछाई देखी ,जिसे देख कर वो डर गए और उनमे से एक बोला के ये भूतिया जहाज एक अपशगुन है और अब उनमे से कोई भी बंदरगाह तक नहीं पहुँच पायेगा लेकिन उनका कप्तान जो इन बातों में यकीन नहीं करता था उसने बताया के ये कोहरे के कारण बना एक ऑप्टिकल प्रभाव यानि भ्रम है और जब वे लोग तट पर सही सलामत पहुँचे तब उन्हें कप्तान की बातों पर यकीन हुआ और उन्होंने ऐसी बातों पर यकीन ना करने का फैसला किया।

सच चाहें कुछ भी हो लेकिन फ्लाइंग डचमैन की इस छवि को टीवी और फिल्मो में काफी प्रभावी तरीके से इस्तेमाल किया गया है – :

• सोल ईटर नामक प्रोग्राम में फ्लाइंग डचमैन एक भूतिया जहाज की आत्मा है।

• स्पाइडर मैन के कार्टून में फ्लाइंग डचमैन को एक खलनायक की तरह पेश किया गया। जिसे मार कर स्पाइडरमैन गाँव वालो को उसके जुल्मो से आज़ाद करवाता है

• सुपर नेचुरल प्रोगाम में फ्लाइंग डचमैन को एक भूतिया किरदार की तरह पेश किया गया।

टीवी के साथ साथ फिल्मों में भी इसका बखूबी इस्तेमाल हुआ है -:

१९५१ में बनी पैंडोरा एंड द फ्लाइंग डचमैन नामक फिल्म इसी समुद्री लोककथा से प्रेरित है इसमें नायक फ्लाइंग डचमैन है,जो ग़लतफहमी में अपनी पत्नी को बेवफा समझ कर उसका क़त्ल कर देता है और उसे काला पानी की सज़ा मिलती है लेकिन उसके अच्छे बर्ताव को देखते हुए उसे सात साल में एक बार छ महीने के लिए अपना सच्चा प्यार ढूंढने के लिए रिहा किया जाता है।

ऐज ऑफ़ एम्पायरस कम्प्यूटर गेम में फ्लाइंग डचमैन एक चीट कोड है,ये एक जहाज है जो जमीन और पानी दोनों में चलता है।

इतिहास के सबसे परेशान करने वाले मानव प्रयोग

३०. टी रूम सेक्स अध्ययन
समाजशास्त्री लौड़ हुम्फ्रेय्स अक्सर उन आदमियों के बारे में सोचते थे जो दुसरे आदमियों के साथ सार्वजानिक विश्रामगृहों में यौन सम्बन्ध स्थापित करते थे | वह सोचते थे की क्यूँ “टी – रूम सेक्स”- सार्वजानिक विश्राम गृह में मुखमैथुन – के कारण ही यूनाइटेड स्टेट्स में सबसे ज्यादा सम्लेंगिक गिरफ्तारियां होती थी | हम्फ्रे ने अपनी वाशिंगटन विश्वविद्यालय में चल रही पीएच .डी के लिए चौकीदार ( वह जो किसी अजनबी या पुलिस अधिकारी के नज़दीक आने पर इशारा कर देता है) बनने का फैसला किया | अपनी शोध के दौरान हम्फ्रे ने 100 से ऊपर मुखमैथुन की क्रियाओं को होते देखा और कई भागीदारों से बात भी की | उन्हें पता चला की इनमें से ५४% शादीशुदा थे, और ३८% साफ़ तौर पर न तो सम्लेंगिक थे न द्विलिंगी | हम्फ्रे की शोध ने जनता और क़ानून के अधिकारीयों की काफी धारणाओं को तोड़ डाला |

२९. जेल के कैदीयों का परिक्षण वस्तुओं की तरह इस्तेमाल
१९५१ में डॉ अल्बर्ट एम् .क्लिग्मन, पेंन्य्स्लावानिया के विश्वविद्यालय के त्वचा विशेषज्ञ और रेटिन-ऐ के भावी आविष्कारक ने फ़िलेडैल्फ़िया के होल्मेस्बुर्ग जेल में कैदीयों पर अपना परिक्षण शुरू किया | जैसे क्लिग्मन ने बाद में एक पत्रकार को बताया ” मुझे सिर्फ बहुत सारी त्वचा दिख रही थी | ये ऐसा था जैसा एक किसान को पहली बार खेत देख कर महसूस होता है”| अगले २० साल तक कैदीयों ने क्लिग्मन को अलग अलग शोधों के लिए अपने शरीर का इस्तेमाल करने की इजाज़त दे दी | इन शोधों में शामिल थे दंतमंजन, डीओडेरनट,शैम्पू,त्वचा की क्रीम,डिटर्जेंट,तरल आहार,ऑय ड्रॉप्स, पैरों का पाउडर और हेयर डाई | हांलाकि इन शोधों में लगातार बायोप्सी और दर्दनाक प्रक्रियाओं की ज़रुरत होती थी फिर भी किसी भी कैदी को इस से लम्बे समय तक नुक्सान नहीं पहुंचा |

२८ हेनरीएत्ता लाच्क्स
१९५५ में हेनरीएत्ता लाच्क्स, बाल्टिमोर से एक गरीब अनपढ़ अफ्रीकन –अमेरिकन औरत कुछ ऐसी कोशिकाओं की स्रोत थी जिन्हें चिकित्सा अनुसन्धान के लिए सुसंस्कृत किया गया | हांलाकि शोधकर्ताओं ने पहले भी कोशिकाओं को सुसंस्कृत करने की कोशिश की थी लेकिन हेनरीता की कोशिकाओं को सबसे पहले जीवित रख क्लोन किया गया | हेनरीता की कोशिकाओं ( उपनाम हेला कोशिकाएं) ने पोलियो वैक्सीन, कैंसर अनुसंधान, एड्स अनुसंधान, जीन मैपिंग, और अनगिनत अन्य वैज्ञानिक प्रयासों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है | हेनरीता गरीबी के हालातों में ख़तम हो गयी और परिवार के कब्रिस्तान में बिना समाधी के दफनाई गयीं | कई दशकों तक उनके पति और पांच बच्चों को अपनी पत्नी और माँ के आधुनिक चिकित्सा के लिए अद्भुत योगदान के बारे में अँधेरे में रखा गया |

२७ QKHILLTOP परियोजना
१९५४ में सी आई ऐ ने एक शोध जिसका नाम था QKHILLTOP परियोजना की शुरुआत की चाइना के लोगों द्वारा अपनाई गयीं दिमाग मापने की तकनीक को समझने के लिए, जिसका इस्तेमाल उन्होनें बाद में पूछताछ के नए तरीक विकसित करने के लिए किया | इस शोध का नेतृत्व कर रहे थे कॉर्नेल उनिवेरिस्टी मेडिकल स्कूल के डॉ हेरोल्ड वोल्फ्फ़ | सी आई ऐ से गुजारिश करने के बाद की वह उन्हें कारावास, अभाव, अपमान, अत्याचार, दिमाग मापने, सम्मोहन, और अन्य के बारे में जानकारी दें वोल्फ्फ़ का शोध गुट एक योजना बनाने लगा जिसके अंतर्गत वह गुप्त दवाइयां और मस्तिष्क को हानि पहुँचाने वाली प्रक्रियाओं का अविष्कार करने वाले थे | अपने लिखे ख़त में वोल्फ्फ़ ने अपनी शोध के हानिकारक असर को जांचने के लिए सी आई ऐ से “उपयुक्त परिक्षण वस्तुओं को उपलप्ध” करने के लिए कहा |

२६. स्टेटविल्ले जेल मलेरिया अध्ययन
दुसरे विश्व युद्ध के दौरान मलेरिया और अन्य उष्णदेशीय बीमारियाँ पसिफ़िक में अमेरिकन सेना के प्रयत्नों पर असर डाल रही थीं | इस स्थिति को काबू में लाने के लिए मलेरिया शोध परियोजना को जोलीएट इलेनॉइस के स्टेटविल्ले जेल में शुरू किया गया | शिकागो विश्वविद्यालय के डॉक्टरों ने ४४१ स्वयंसेवी कैदीयों को मलेरिया संक्रमित मछरों का शिकार बनवाया | हांलाकि एक कैदी की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गयी शोधकर्ताओं ने कहा की उसकी मौत का इस शोध से कोई लेना देना नहीं है | ये व्यापक रूप से प्रशंसित शोध २९ साल तक स्टेटविल्ले में चलता रहा, और इसमें शामिल था प्रिमक़ुइने, एक दवाई जिसका अभी भी मलेरिया और प्नयूमोसिस्तिस निमोनिया के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है, का सबसे पहला इंसानी परिक्षण |

२५ एमा एक्स्टीन और सिग्मुंड फ्रेयूड
हांलाकि २७ साल की एमा एक्सटीन ने सिग्मुंड फ्रेयूड से साधारण लक्षण जैसे पेट की तकलीफ और मानसिक तनाव के लिए संपर्क किया था,लेकिन उन्होनें उसका इलाज किया पागलपन और अत्यधिक हस्तमैथुन के लिए, एक ऐसी आदत जिसे उस वक़्त दिमागी सेहत के लिए बुरा माना जाता था | एमा के इलाज में एक हैरान करने वाली प्रयोगात्मक सर्जरी थी जिसमें उसको स्थानीय बेहोशी की दवाई और कोकीन दे कर उसकी नाक के अंदरूनी हिस्से को दाग दिया गया | इसमें कोई आश्चर्य नहीं की एमा की सर्जरी एक दुर्घटना थी | एमा एक जायज़ रोगी थी या एक हाल की मूवी के हिसाब से फ्रेयूड की उसमें कामुक रूचि थी ये पता नहीं लेकिन फ्रेयूड ३ साल तक एमा का इलाज करते रहे |

२४. डॉ विलियम बेऔमोंट और पेट
१८२२ में मिशिगन के मच्किनाक टापू के एक फर व्यापारी को गलती से पेट में गोली लग गयी और उनका इलाज किया डॉ विलियम बेऔमोंट ने | अनुमान से विपरीत वह फर व्यापारी बच गया – पर उसके पेट में एक छेद बन गया जो कभी ठीक नहीं हुआ | इसको एक पाचन प्रक्रिया समझने का अनूठा अवसर मान बेऔमोंट ने शोध शुरू कर दिया | बेऔमोंट ने एक धागे से खाने को बाँध दिया और इस छेद के रास्ते व्यापारी के पेट में डाल दिया | हर कुछ घंटे बाद बेऔमोंट उस खाने को बाहर निकाल ये देखते थे की उसका पाचन हुआ की नहीं | भयानक होने के बावजूद बेऔमोंट के शोधों से विश्वभर में इस बात को माना गया की पाचन एक यांत्रिक नहीं रासायनिक प्रक्रिया है |

२३. बच्चों पर एलेक्ट्रोशॉक प्रक्रिया
१९६० के दशक में न्यू यॉर्क के क्रीडमूर अस्पताल की डॉ लौरेट्टा बेंडर ने जो उन्हें लगा सामाजिक मुद्दों वाले बच्चों के लिए एक क्रन्तिकारी इलाज –इलेक्ट्रोशॉक प्रक्रिया की शुरुआत की | बेंडर के तरीकों में शामिल था एक संवेदनशील बच्चे का एक बड़े गुट के सामने साक्षात्कार और विश्लेषण करना और फिर उस बच्चे के सर पर हलके से दबाव लगाना | अगर कोई बच्चा दबाव से हिल जाता था तो इसका मतलबथा की ये स्चिज़ोफ्रेनिया के शुरुआती लक्षण हैं | खुद एक परेशान बचपन का शिकार हुई कहा जाता है की बेंडर अपनी निगरानी में रह रहे बच्चों के प्रति दया नहीं दिखाती थीं | जब तक उनके इलाज बंद हुए, बेंडर ने करीबन 100 बच्चों से ज्यादा पर इलेक्ट्रोशॉक प्रक्रिया अपनाई थी जिसमें सबसे छोटा ३ साल का था |

२२. आर्टीचोक परियोजना
१९५० के दशक में सीआईऐ के वैज्ञानिक इंटेलिजेंस के कार्यालय ने एक सवाल ” क्या हम एक इंसान पर इतना नियंत्रण कर सकते हैं की वह हमारे इशारे पर काम करे और प्रकृति के नियमों के विरुद्ध भी जाए ?” के जवाब में दिमाग नियंत्रण की परियोजनाओं की श्रृंखला की शुरुआत की | इनमें से एक आर्टीचोक परियोजना में सम्मोहन, ज़बरदस्ती अफीम की लत, मादक पदार्थ छोड़ने की प्रक्रिया और अनजाने इंसानों में स्मृतिलोप को उभारने के लिए रसायिनों का इस्तेमाल का अध्ययन किया गया | हांलाकि इस परियोजना को १९६० में आखिरकार बंद कर दिया गया, इस परियोजना ने फील्ड ऑपरेशन में दिमागी नियंत्रण की व्यापक शोध का रास्ता खोल दिया |

२२. मानसिक रूप से विकलांग बच्चों में हेपेटाइटिस
१९५० के दशक में न्यू यॉर्क के राज्य द्वारा नियंत्रित विल्लोब्रूक राज्य विद्यालय, एक मानसिक रूप से विकलांग बच्चों के विद्यालय में हेपेटाइटिस फ़ैल गया | गन्दगी की वजह से अपरिहार्य था की इन बच्चों को हेपेटाइटिस होगा ही | इस रोग की जांच के लिए डॉ सौल क्रुगमन ने एक शोध का प्रस्ताव दिया जो वैक्सीन विकसित करने में मदद करेगा | लेकिन इसके लिए बच्चों को जान बूझकर इस बीमारी का शिकार बनाना पड़ता| हांलाकि क्रुगमन की शोध शुरू से ही आपतिजनक थी, आलोचकों का मुंह माँ बाप के अनुमति पत्रों ने बंद कर दिया | हकीकत में अपने बच्चे को इस शोध के लिए हाज़िर कर देना इस भीड़ वाले संसथान में अपनी जगह बनाने का एक और तरीका था |

२०. मिडनाइट क्लाइमेक्स परियोजना
शुरुआत में १९५० में सीआईऐ के उप परियोजना की तरह स्थापित, मिडनाइट क्लाइमेक्स व्यक्तियों पर एल एस डी का प्रभाव समझने के लिए शुरू किया गया था | सन फ्रांसिस्को और न्यू यॉर्क में अनभिज्ञ व्यक्तियों को सीआईऐ के लिए काम करने वाली वेश्याओं द्वारा अकेले घर में ले जा कर एलएसडी और अन्य दिमाग –बदलने वाले पदार्थ दिए जाते थे और एक तरफ़ा शीशे की मदद से उन पर नज़र रखी जाती थी | हांलाकि जब ये बात सामने आई की सी आई ऐ इंसानों को एलएसडी की खुराक दे रहा है इन घरों को १९६५ में बंद कर दिया गया,फिर भी मिडनाइट क्लाइमेक्स परियोजना यौन ब्लैकमेल, निगरानी प्रौद्योगिकी, और क्षेत्र के संचालन पर मन-फेरबदल दवाओं के उपयोग की व्यापक शोध की नाटक शाला थी |

१९. गलती से विकरण का शिकार हुए मनुष्यों का अध्ययन
१९५४ में “स्टडी ऑफ़ वेपन्स ऑफ़ ह्यूमन बींग्स एक्सपोज्ड तो सिग्निफिकेंट बीटा एंड गामा रेडिएशन डयू टू फॉल आउट फ्रॉम हाई यील्ड वेपन्स,” दूसरा नाम परियोजना ४.1 अमेरिका द्वारा मार्शल द्वीपों के निवासियों पर की गयी एक चिकित्सिक शोध थी | जब कैसल ब्रावो परमाणु अध्यान का नतीजा ज्यादा हो गया तो सरकार ने एक गुप्त अध्यन का गठन किया गलती से विकरण का शिकार हुए मनुष्यों पर ” उसके असर की तीव्रता को जांचने के लिए” | हांलाकि सब लोगों का मानना है की ये गलती से हुआ, लेकिन कई मार्शल निवासी मानते हैं की परियोजना ४.1 का ख्याल कैसल ब्रावो टेस्ट से पहले ही जनम ले चुका था | पूर्ण रूप से २३९ मार्शल के निवासी विकरण की अत्यधिक मात्रा का शिकार हुए |

१८. राक्षसों का विश्लेषण
१९३९ में आयोवा विश्वविद्यालय के दो शोधकर्ताओं वेन्डेल जोहन्सन और मैरी तुदोर ने डेवनपोर्ट आयोवा में २२ अनाथ बच्चों पर एक हकलाने पर शोध किया | बच्चों को दो गुटों में बांटा गया जहाँ पहले गुट को सकरात्मक वाक् चिकित्सा दी गयी और बच्चों को उनकी वाक् कुशलता के लिए सराहा गया | दुसरे गुट को नकरात्मक वाक् चिकित्सा दी गयी और उनकी हर वाक गलती के लिए टोका गया | दुसरे गुट में शामिल सामान्य रूप से बोलने वाले बच्चों में ऐसी भाषण समस्याएँ विकसित हो गयीं जिन्होनें ज़िंदगी भर उनका साथ नहीं छोड़ा | नाज़ी द्वारा इंसानी परीक्षणों की ख़बरों से डर,जॉनसन और तुदोर ने अपनी “राक्षस शोध” के नतीजे कभी सामने नहीं आने दिए |

१७ एम्के अल्ट्रा प्रयोजना
एम्के अल्ट्रा प्रयोजना एक सीआईऐ द्वारा प्रायोजित शोध का नाम है जो मानव व्यवहार को समझने के लिए अलग अलग परिक्षण करती थी | १९५३ से १९७३ तक इस प्रयोजना ने अमेरिकन और कैनेडियन निवासियों की दिमागी अवस्था समझने के लिए कई तरीके अपनाये | इन अनभिज्ञ इंसानी परिक्षण व्यक्तियों को एलएसडी और अन्य दिमाग प्रभावी दवाइयां,सम्मोहन,संवेदी अभाव, अलगाव, मौखिक और यौन शोषण, और यातना के विभिन्न रूपों से प्रताड़ित किया गया | शोध विश्वविद्यालयों,अस्पतालों,जेलों और दवाइयों की कंपनियों में होते थे | हांलाकि इस परियोजना का उद्देश्य था गुप्त कार्यों के संचालन में उपयोग करने के लिए सक्षम रासायनिक […] सामग्री विकसित करना, फिर भी एम्के अल्ट्रा परियोजना का अमेरिका के भीतर सीआईए की गतिविधियों को जांचने के लिए गठित कांग्रेस द्वारा कमीशनड जांच समिति ने बंद कर दिया |

Mystery story in Hindi (टियाटिहुआकन शहर, मेक्सिको)

मेक्सिको सिटी से बाहर निकलने पर आपको टियाटिहुआकन शहर मिलेगा |यह शहर प्य्रामिड्स की खंडहर सिटी है |मूल रूप से इस स्थान का ये नाम नहीं था | इस जगह की खोज जब अज्तेकस ने की तो उन्होनें इसे ये नाम प्रदान किया |असल में टियाटिहुआकन का अर्थ होता है प्लेस ऑफ़ गॉड| अज्तेक्स को लगता था की ये शहर अपने आप ही मध्य युग में प्रकट हो गया था |कुछ 500 साल पहले ये स्थान खंडहर में परिवर्तित हो गया |लेकिन इस जगह को लेकर कहीं भी कुछ भी जानकारी हासिल नहीं है |इसलिए ये स्ट्रक्चर आज भी एक रहस्य बना हुआ है | इसको देखकर ऐसा लगता है की यहाँ पर करीब 25000 लोग वास करते होंगे |ध्यान से देखा जाये तो इस शहर का निर्माण अर्बन ग्रिड सिस्टम से हुआ है बिलकुल वैसे ही जैसे न्यू यॉर्क सिटी का है |इस शहर के अन्दर बने एक पिरामिड के अन्दर कई इंसानों की हड्डियों मिली हैं | इससे पता चलता है की उस स्थान पर इंसानों का बलिदान दिया जाता होगा | Mystery story in Hindi

Mystery story in Hindi (लाल किताब)

भृगु संहिता से कहीं अधिक रहस्यमी ज्ञान है लाल किताब का। आप मानें या न मानें, लेकिन इसे पढ़कर यदि आप इसे समझ गए तो निश्‍चित ही आपका दिमाग पहले जैसा नहीं रहेगा। माना जाता है कि लाल किताब के ज्ञान को सबसे पहले अरुणदेव ने खोजा था जिसे अरुण संहिता कहा जाता है। फिर इस ज्ञान को रावण ने खोजा और इसके बारे में रावण ने लिखा था।

फिर यह ज्ञान खो गया, लेकिन यह ज्ञान लोकपरंपराओं में जीवित रहा। कहते हैं कि आकाश से आकाशवाणी होती थी कि ऐसा करो तो जीवन में खुशहाली होगी। बुरा करोगे तो तुम्हारे लिए सजा तैयार करके रख दी गई है। हमने तुम्हारा सब कुछ अगला-पिछला हिसाब करके रखा है। उक्त तरह की आकाशवाणी को लोग मुखाग्र याद करके पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाते थे। इस रहस्यमय विद्या को कुछ लोगों ने लिपिबद्ध कर लिया। जब 1939 को रूपचंद जोशी ने इसे लिखा था तो कहते हैं कि उनके पास हिमाचल से एक प्राचीन पांडुलिपि प्राप्त हुई थी तब उक्त पांडुलिपि का उन्होंने अनुवाद किया था। Mystery story in Hindi

इस किताब को मूल रूप से प्रारंभ में उर्दू और फारसी भाषा में लिखा गया था। इस कारण ज्योतिष के कई प्रचलित और स्थानीय शब्दों की जगह इसमें उर्दू-फारसी के शब्द शामिल हैं, जिससे इस किताब को समझने में आसानी नहीं होती। उर्दू में इसलिए लिखा गया क्योंकि उक्त काल में पंजाब में उर्दू और फारसी भाषा का ही ज्यादा प्रचलन था। Mystery story in Hindi

लाल किताब ज्योतिष की पारम्परिक प्राचीतम विद्या का ग्रंथ है। उक्त विद्या उत्तरांचल और हिमाचल क्षेत्र से हिमालय के सुदूर इलाके तक फैली थी। बाद में इसका प्रचलन पंजाब से अफगानिस्तान के इलाके तक फैल गया। उक्त विद्या के जानकार लोगों ने इसे पीढ़ी दर पीढ़ी सम्भाल कर रखा था। बाद में अंग्रेजों के काल में इस विद्या के बिखरे सूत्रों को इकट्ठा कर जालंधर निवासी पंडित रूपचंद जोशी ने सन् 1939 को ‘लाल किताब के फरमान’ नाम से एक किताब प्रकाशित की। इस किताब के कुल 383 पृष्ठ थे। Mystery story in Hindi

लाल किताब ज्योतिष की पारम्परिक प्राचीतम विद्या का ग्रंथ है। उक्त विद्या उत्तरांचल और हिमाचल क्षेत्र से हिमालय के सुदूर इलाके तक फैली थी। बाद में इसका प्रचलन पंजाब से अफगानिस्तान के इलाके तक फैल गया। उक्त विद्या के जानकार लोगों ने इसे पीढ़ी दर पीढ़ी सम्भाल कर रखा था। बाद में अंग्रेजों के काल में इस विद्या के बिखरे सूत्रों को इकट्ठा कर जालंधर निवासी पंडित रूपचंद जोशी ने सन् 1939 को ‘लाल किताब के फरमान’ नाम से एक किताब प्रकाशित की। इस किताब के कुल 383 पृष्ठ थे। Mystery story in Hindi

Final Words:- आशा करता हू कि ये सभी कहांनिया Mystery story in Hindi आपको जरूर पसंद आई होगी । और ये सभी कहानियां और को बहुत ही प्रेरित भी की होगा । अगर आप ऐसे ही प्रेरित और रोचक कहानियां प्रतिदिन पाना चाहते हैं तो आप हमारे इस वेबसाइट को जरूर सब्सक्राइब करले जिससे कि आप रोजाना नई काहानियों को पढ़ सके धन्यवाद।

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